नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि भारत 1965 और 1971 के 62 युद्ध कैदियों सहित 83 लापता सैन्य कर्मियों की राजनयिक एवं अन्य उपलब्ध माध्यमों के जरिए रिहाई और उन्हें स्वदेश वापस भेजने की पाकिस्तान से मांग कर रहा है। सरकार ने एक याचिका पर विदेश मंत्रालय के जरिए न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया है। याचिका, थल सेना के अधिकारी कैप्टन संजीत भट्टाचार्य की मां ने दायर की है, जिन्होंने केंद्र को उनके बेटे की स्वदेश वापसी के लिए राजनयिक माध्यमों के जरिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।
महिला ने याचिका में कहा है कि उनका बेटा 24 साल से अधिक समय से पाकिस्तान की जेल में कैद है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उन्हें यह सूचना मिली थी कि संजीत, जो अगस्त 1992 में थल सेना के गोरखा राइफल्स रेजिमेंट के अधिकारी के तौर पर सेना में शामिल हुआ था, वह लाहौर की कोट लखपत जेल में कैद है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि उनके परिवार को अप्रैल 1997 में सूचना दी गई कि उनका बेटा गुजरात में कच्छ के रण में संयुक्त सीमा पर रात्रिकालीन ड्यूटी के दौरान गश्त पर गया था और उसे पाकिस्तानी अधिकारियों ने 20 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पकड़ लिया।
सरकार ने अपने हलफनामे में आठ मार्च 2021 के राजनयिक पत्र को संलग्न किया है, जिसमें उसने पाकिस्तान स्थित भारतीय उच्चायोग द्वारा जारी कई राजनयिक पत्रों और 83 लापता भारतीय सैन्य कर्मियों का जिक्र किया है। साथ ही, उसमें उनका पता लगाने और लापता भारतीय रक्षा कर्मियों की शीघ्र रिहाई एवं स्वदेश वापस भेजने का अनुरोध किया है। सूची के मुताबिक, 83 लापता सैन्य कर्मियों में चार 1965 के युद्ध में लापता हुए कैदी हैं और ज्यादातर 1971 के युद्ध में लापता हुए कैदी हैं। वहीं, कुल 21 रक्षा कर्मी 1996 से 2010 तक लापता हुए थे।
केंद्र ने हलफनामे में कहा है, ‘‘यह जानकारी दी जा रही है कि भारत सरकार कैप्टन संजीत भट्टाचार्य का मामला नियमित रूप से राजनयिक एवं अन्य उपलब्ध माध्यमों से उठा रही है।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘लापता रक्षा कर्मियों की शीघ्र रिहाई एवं स्वदेश वापसी के लिए इस्लामाबाद में स्थित भारतीय उच्चायोग पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के समक्ष नियमित रूप से यह विषय उठाता रहा है। ’’ विदेश मंत्रालय में अवर सचिव (पाकिस्तान), नेहा सिंह के मार्फत दाखिल हलफनामे में कहा गया है, ‘‘पाकिस्तान सरकार ने कैप्टन संजीत भट्टाचार्य के अपनी हिरासत में मौजूदगी की बात उल्लेखित तारीख तक स्वीकार नहीं की है। ’’
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