Independence Day: आजादी के 75 साल पूरे होने पर देश स्वतंत्रता दिवस को अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है। आज आप को उसी से जुड़ी एक रोचक जानकारी हम बताते हैं। जब देश आजाद हुआ था यानी 15 अगस्त 1947 में मसूरी (Mussoorie) में सार्वजनिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया था। हालांकि, सवॉय होटल में कुछ लोगों ने गुपचुप तरीके से तिरंगा फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाया था। जबकि, स्वतंत्रता से पहले अंग्रेज मसूरी के गांधी चौक पर झंडा फहराते थे। आज इसी चौक पर आजादी का जश्न धूमधाम से मनाया जाता है।
मसूरी में कर्फ्यू की वजह से नहीं फहराया गया था तिरंगा
मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि 15 अगस्त 1947 को मसूरी में कर्फ्यू लगाया गया था। जिस कारण सार्वजनिक तौर पर गांधी चौक पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया गया था। उन्होंने बताया कि नेहरू सरकार में मंत्री रहे और मसूरी के प्रशासक शफी अहमद किदवई ने 15 अगस्त को सार्वजनिक रूप ने राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की अनुमति नहीं दी थी। वे रफी अहमद किदवई के छोटे भाई थे।
असामाजिक तत्वों ने मसूरी में कराया था दंगा
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने बताया कि जब देश आजाद हो रहा था तो मसूरी में काफी ज्यादा मुस्लिम परिवार थे, जो पाकिस्तान जा रहे थे। उन्हें मसूरी के रामपुर हाउस में एकत्रित किया गया था। जहां पर वर्तमान में मसूरी मॉडल स्कूल है। वहीं से सभी को पाकिस्तान भेजा गया लेकिन उस दौरान कुछ असामाजिक तत्वों ने मसूरी में दंगा कर कई लोगों के ऊपर हमला कर दिया था। जिसको लेकर मसूरी में कर्फ्यू लगा दिया गया था। यही वजह थी कि अंग्रेजों ने मसूरी के गांधी चौक पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराने दिया था। वहीं, मसूरी में कुछ नेताओं ने मसूरी के सवॉय होटल और मसूरी क्लब में गुपचुप तरीके से राष्ट्रीय ध्वज लहराकर आजादी की खुशी मनाई थी।
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स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ शर्मा ने स्कूल की छत पर फहराया था तिरंगा
स्वतंत्रता सेनानी जगन्नाथ शर्मा का जिक्र करते हुए गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि साल 1938 में मसूरी के घनानंद इंटर कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करने के दौरान गांधी और नेहरू से प्रेरित होकर उन्होंने स्कूल परिसर में राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था, जो उस समय अद्भुत और विस्मयकारी घटना थी। इसको लेकर जगन्नाथ शर्मा को यातनाएं भी झेलनी पड़ी थी। उन्होंने कहा कि जगन्नाथ शर्मा जब 8वीं कक्षा में थे, तब उन्होंने स्कूल की छत पर राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया था।
मसूरी में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू बनाते थे रणनीति
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि मसूरी गांधी, नेहरू के साथ कई नेताओं की पसंदीदा जगह थी। स्वतंत्रता से पूर्व इन सभी का यहां आना-जाना लगा रहता था। मसूरी के बंद कमरों में देश को आजाद करने के लिये रणनीति बनाई जाती थी। मसूरी के सिल्वर्टन ग्राउंड में कई सभाएं आयोजित की जाती थीं। उन्होंने बताया मसूरी गांधी, नेहरू के साथ कई नेताओं की पसंदीदा जगह थी। स्वतंत्रता से पूर्व इन सभी का यहां आना-जाना लगा रहता था। मसूरी के बंद कमरों में देश को आजाद करने के लिए रणनीति बनाई जाती थी। मसूरी के सिल्वर्टन ग्राउंड में सभाएं आयोजित की जाती थी।
देश के विभाजन के वक्त मसूरी से पाकिस्तान गए कई लोग, भावुक करने वाला था पल
गोपाल भारद्वाज ने बताया उनके पिता प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ऋषि भारद्वाज को लेने के लिए गांधी जी उनके आवास पर रिक्शा भिजवाते थे। देश के बड़े नेताओं से उनके पिता का सीधा संवाद होता था। समय-समय पर पत्राचार के माध्यम से आजादी के साथ मसूरी के विकास के लिए भी वे वार्ता करते रहते थे। उन्होंने बताया कि जो लोग मसूरी से पाकिस्तान चले गए थे, वो उसके बाद भी पाकिस्तान से पत्राचार कर उनसे संवाद कायम रखते थे। उन्होंने कहा कि मसूरी में सभी जाति धर्मों में भाईचारा था और जब देश का बटवारा हो रहा था तो सभी लोग भावुक थे।
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