Independence Day 2022: अपनी सीमाओं की रक्षा कैसे करता है भारत? BSF से लेकर ITBP तक, जानें कहां-कहां तैनात होते हैं इन पैरामिलिट्री फोर्स के जवान
ये अर्धसैनिक बल सेना का हिस्सा नहीं हैं और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं। हालांकि इन्हें अपने कर्तव्य निर्वहन में सेना की सहायता मिलती है। तो चलिए अब जान लेते हैं कि कौन से अर्धसैनिक बल कौन सी सीमा की रक्षा करते हैं।
Highlights
- युद्धों के बाद से तैनात हो रहे अर्धसैनिक बल
- अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा करते हैं जवान
- विभिन्न सीमाओं पर अलग-अलग बल तैनात हैं
Independence Day 2022: देश की आजादी के बाद उसकी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की हुआ करती थी। लेकिन 1962 और 1965 के युद्ध के समय यह नाकाफी साबित हुआ। जिसके बाद देश की सीमाओं की रक्षा के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया। हालांकि कोई एक सशस्त्र बल सभी सीमाओं की रक्षा नहीं करता है। बल्कि अलग-अलग सीमाओं की सुरक्षा अलग-अलग बलों द्वारा की जाती है। ये अर्धसैनिक बल सेना का हिस्सा नहीं हैं और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आते हैं। हालांकि इन्हें अपने कर्तव्य निर्वहन में सेना की सहायता मिलती है। तो चलिए अब जान लेते हैं कि कौन से अर्धसैनिक बल कौन सी सीमाओं की रक्षा करते हैं।
बीएसएफ- पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ लगी सीमाओं की रक्षा
1962 में हुए युद्ध के बाद पाकिस्तान के साथ लगने वाली सीमा की रक्षा करने के उद्देश्य से 1 दिसंबर, 1965 में बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) का गठन हुआ था। शुरुआत में बीएसएफ में 25 बटालियन थीं लेकिन आज 192 बटालियन हैं। इन्हें तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान की सीमाओं पर तैनात किया गया था। 1971 के युद्ध के बाद से बीएसएफ नवगठित देश बांग्लादेश से लगने वाली सीमा पर आज भी तैनात है। आज बीएसएफ में 2.72 लाख जवान हैं, जो 6386 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा की रक्षा करते हैं। सीमाओं की रक्षा के साथ ही बीएसएफ को जम्मू-कश्मीर और पंजाब में उग्रवाद के दौरान और नक्सल क्षेत्रों में आतंकवादियों से लड़ने के लिए तैनात किया जाता है।
आईटीबीपी- भारत और चीन सीमा की रक्षा
भारत-तिब्बत सीमा पर सीमावर्ती खुफिया और सुरक्षा व्यवस्था को पुनर्गठित करने के लिए भारत-तिब्बत सीमा पुलिस की 24 अक्टूबर, 1962 को स्थापना की गई थी। शुरुआत में सिर्फ चार बटालियनों को मंजूरी दी गई थी। आईटीबीपी की स्थापना सबसे पहले सीआरपीएफ अधिनियम के तहत की गई थी। वहीं आईटीबीपी अधिनियम 1992 में संसद द्वारा स्थापित किया गया। आईटीबीपी को साल 2014 में 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा की जिम्मेदारी दी गई थी। 2004 में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में असम राइफल्स की जगह आ गए थे।
आईटीबीपी ने समय-समय पर अतिरिक्स सीमा की सुरक्षा की है। उग्रवाद विरोधी अभियान चलाए हैं और आंतरिक सुरक्षा से जुडे़ कार्य किए हैं। जिसके चलते इसी बटालियन की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। आज आईटीबीपी में 56 सर्विस बटालियान, 4 स्पेशलिस्ट बटालियन, 17 ट्रेनिंग सेंटर और 07 लॉजिस्टिक्स प्रतिष्ठान हैं, जिनमें करीब 90,000 कर्मी हैं। आईटीबीपी ने इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए वास्तिव नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ बॉर्डर आउट पोस्ट्स (BOPs) की स्थापना की है। आईटीबीपी ने भारत चीन सीमा पर कुल 173 बीओपी स्थापित किए हैं।
एसएसबी- भारत-नेपाल और भारत-भूटान सीमा की सुरक्षा
1962 में चीनी घुसपैठ के बाद एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) की स्थापना मई 1963 में एक विशेष सेवा ब्यूरो के रूप में की गई थी। जून 2001 में एसएसबी को भारत-नेपाल के लिए प्रमुख खुफिया एजेंसी के रूप में नामित किया गया और भारत-नेपाल सीमा की जिम्मेदारी दी गई। मार्च 2004 में एसएसबी को भारत-भूटान सीमा पर भी तैनात किया गया। गृह मंत्रालय सशस्त्र सीमा बल का इंचार्ज है। एसएसबी का मुख्य मिशन इंटेलिजेंस ब्यूरो के विदेशी खुफिया विभाग को सशस्त्र सहायता प्रदान करना है, जो अंततः अनुसंधान और विश्लेषण विंग बन गया है।
एसएसबी को 2001 में रॉ से गृह मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया था। 2001 में, एसएसबी को 1751 किलोमीटर लंबी भारत-नेपाल सीमा की रक्षा करने का काम दिया गया था, जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम राज्यों से होकर गुजरती है। मार्च 2004 में एसएसबी को भारत-भूटान सीमा के 699 किलोमीटर के सेक्शन की रखवाली करने का काम सौंपा गया था, जो सिक्किम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरता है।
असम राइफल्स- भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा
असम राइफल्स भारतीय सेना का सबसे पुराना अर्धसैनिक संगठन और एक विशेष बल है, जो पूर्वोत्तर में उग्रवाद विरोधी अभियान चलाता है। असम राइफल्स ने अपने पूरे इतिहास में कई तरह के कर्तव्यों, संघर्षों और थिएटरों में भाग लिया है, जिसमें प्रथम विश्व युद्ध, जहां वे यूरोप और मध्य पूर्व में तैनात थे, और द्वितीय विश्व युद्ध, जहां वे ज्यादातर बर्मा में सेवा करते थे, शामिल हैं। चीन के तिब्बत पर कब्जे के बाद असम राइफल्स को असम हिमालयी क्षेत्र की तिब्बती सीमा की रक्षा करने का काम सौंपा गया। इसने पूर्वोत्तर में हुए संघर्ष में हिस्सा लिया। असम राइफल्स 2002 से भारत-म्यांमार सीमा की रक्षा भी कर रहा है।
सेना की कमान के तहत, असम राइफल्स ने उत्तर-पूर्व और अन्य क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए हैं। वे शांति और 'छद्म युद्ध' के दौरान भारत-चीन और भारत-म्यांमार सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। जब स्थिति केंद्रीय अर्धसैनिक ऑपरेशंस के नियंत्रण से बाहर हो जाती है, तो वे आंतरिक सुरक्षा स्थितियों में केंद्र सरकार के अंतिम हस्तक्षेप करने वाले बल के रूप में कार्य करते हैं। यह ऐसा एकमात्र सीमा सुरक्षा बल हैं, जो केंद्रीय अर्धसैनिक बल नहीं है, बल्कि सेना के अर्धसैनिक बल हैं। अन्य बॉर्डर गार्ड्स के विपरीत, अलम राइफल्स का प्राथमिक कार्य सीमाओं की रक्षा करना नहीं है।