किसानों का 'दिल्ली चलो' प्रदर्शन 2020 के आंदोलन से कैसे अलग है? यहां 5 प्वाइंट्स में समझें
किसानों ने दिल्ली चलो की हुंकार भर दी है। सैकड़ों किसान अपने वाहनों से दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि दोबारा किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं?
साल 2024 के दूसरे महीने में ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान सड़कों पर उतर आए हैं। बीते सोमवार किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच आखिरी दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद मंगलवार को 200 से अधिक किसान संगठन दिल्ली की ओर बढ़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि किसानों द्वारा उठाए गए अधिकांश मुद्दों पर सहमति बन गई है और सरकार ने बाकी मुद्दों के समाधान के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा है। वहीं, किसान नेताओं ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की कोई स्पष्टता नहीं है।
हरियाणा सरकार ने सीमाएं की सील
किसान आज सुबह 10 बजे से अपना दिल्ली चलो मार्च शुरू करेंगे, लेकिन हरियाणा सरकार ने इन्हें रोकने के लिए राज्य के चारों ओर एक घेराबंदी कर दी है जिससे प्रदर्शनकारी पंजाब से हरियाणा में एंट्री न कर सकें। साथ ही किसानों के साल 2020-21 के विरोध प्रदर्शन को फिर से शुरू न होने देने के प्रयास में दिल्ली की सीमाओं को मजबूत कर दिया गया है।
5 प्वाइंट्स में समझें कि ये विरोध, 2020 के प्रदर्शन से कैसे अलग है?
1. सवाल उठता है कि अब फिर से किसान क्यों विरोध कर रहे हैं?
जवाब है कि साल 2020 में, किसानों ने उन तीन कृषि कानूनों का विरोध किया, जिन्हें दिल्ली की सीमाओं पर उनके एक साल के विरोध के बाद साल 2021 में वापस ले लिया गया था।
सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले को लागू करने, किसानों के लिए पूर्ण कर्ज माफी, किसानों और मजदूरों के लिए पेंशन, 2020-21 के विरोध के दौरान किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेने की मांग करते हुए 2023 में दिल्ली चलो की घोषणा की गई थी।
2. किसानों को दिल्ली न पहुंचने देने के लिए तगड़ी नाकेबंदी
साल 2020 में, किसान दिल्ली में आने में सक्षम थे, लेकिन इस बार प्रशासन ने सख्त एहतियाती कदम उठाए हैं। कंटीले तार, सीमेंट बैरिकेड, सड़कों पर कीलें - दिल्ली की सभी सड़कें अवरुद्ध कर दी गई हैं। दिल्ली में धारा 144 लागू कर दी गई है। यहां तक कि हरियाणा सरकार ने पंजाब से लगी अपनी सीमाएं सील कर दीं।
3. सरकार की क्या रही इस पर प्रतिक्रिया?
सरकार ने इस बार किसानों के दिल्ली चलो मार्च से पहले ही बातचीत की प्रक्रिया शुरू कर दी। किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच पहली बैठक 8 फरवरी और दूसरी बैठक 12 फरवरी को हुई। रिपोर्ट्स की मानें तो, सरकार ने अब निरस्त कृषि कानूनों के खिलाफ 2020-21 के आंदोलन के दौरान दर्ज किसानों के खिलाफ सभी मामलों को वापस लेने की मांग स्वीकार कर ली, लेकिन एमएसपी की कोई गारंटी नहीं दी थी।
4. राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चारुनी इस बार हिस्सा नहीं
किसानों के साल 2020 के विरोध के दो प्रमुख नेता राकेश टिकैत और गुरनाम सिंह चारुनी थे। लेकिन वे इस बार कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं क्योंकि 4 साल बाद किसान सड़क पर उतर आए हैं। एसकेएम (गैर राजनीतिक) के नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल और सरवन सिंह पंधेर के महासचिव सरवन सिंह पंधेर अब सबसे आगे हैं।
5. इस विरोध का नेतृत्व कौन कर रहा है?
किसान के दूसरे विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व विभिन्न यूनियनों द्वारा किया जा रहा है क्योंकि पिछले कुछ सालों में किसान यूनियनों का हुलिया बड़े पैमाने पर बदल गया है। वहीं, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने दिल्ली चलो 2.0 का ऐलान किया है।
वहीं, भारतीय किसान यूनियन, संयुक्त किसान मोर्चा, जिसने किसानों के 2020 के विरोध का नेतृत्व किया, में कई गुटबाजी देखी गई थी।
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