आखिर एग्जिट पोल से कैसे पता लगता है किसकी बन रही सरकार, मतदान के बाद ही ये क्यों होते हैं जारी; जानें सभी सवालों के जवाब
एग्जिट पोल को लेकर आपके मन में कई सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर क्या होता है एग्जिट पोल? इसकी प्रक्रिया क्या होती है? ऐसे सभी सवालों के जवाब आप यहां जान सकते हैं।
साल 2023 खत्म होने को हैं और इसी के साथ 5 राज्यों के चुनाव भी संपन्न हो गए हैं। अब 3 दिसंबर को इन पांचों राज्यों के चुनावी रिजल्ट आने बाकी हैं। इससे पहले सबी मीडिया संस्थान अपने-अपने एग्जिट पोल जारी करते हैं और कयास लगाते हैं कि किस राज्य में कौन-सी पार्टी की जीतने की संभावना है। ऐसे में लोगों के मन में कई सवाल उठते हैं कि आखिर एग्जिट पोल क्या होते हैं और ये कैसे पता लगाते हैं कि किस राज्य में किस पार्टी की सरकार बनने की संभावना है। इस कहानी में जानेंगे एग्जिट पोल की सारी डिटेल...
होता क्या है एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वेक्षण है, जो मतदान वाले दिन लोगों के बीच जाकर किया जाता है। वोटिंग के दिन जब वोटर वोट डालने बूथ से आता है तो वहां अलग-अलग सर्वे करने वाली एंजेसियां व मीडिया के लोग मौजूद होते हैं और ये वोटर से मतदान को लेकर कुछ सवाल-जवाब करते हैं, जिससे ये पता चल जाता है कि आखिर लोगों ने किस पार्टी को अपना मत दिया है। बता दें कि यह सर्वे हर निर्वाचन क्षेत्र की अलग-अलग पोलिंग बूथ पर किया जाता है। जानकारी दे दें कि एग्जिट पोल में सिर्फ वोटर को ही शामिल किया जाता है।
कब और कैसे शुरू हुआ था एग्जिट पोल?
एग्जिट पोल की शुरुआत सबसे पहले अमेरिका में हुई। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल साल 1967 में अमेरिका के पॉलिटिकल रिसर्चर वॉरेन मिटोफस्की ने केंटुकी राज्य के गवर्नर इलेक्शन के दौरान किया था। इसी साल डच समाजशास्त्री मार्सेल वैनडैम ने नीदरलैंड्स के आम चुनाव के दौरान किया। इसके बाद 1970 के दशक में अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में इसका बढ़-चढ़कर इस्तेमाल होने लगा।
चुनाव के बाद ही क्यों जारी होते हैं एग्जिट पोल?
साल 1980 में एग्जिट पोल पहली बार विवाद में फंसा। इसी साल अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हो रहे थे इसी बीच न्यूज चैनल NBC ने वोटिंग खत्म होने से कुछ घंटे पहले ही एग्जिट पोल जारी कर दिए, जिसके बाद ये मामला अमेरिका की संसद में तेजी से गूंजा और संसद ने सर्वे को लेकर जांच बिठा दी जो ये पता लगाने में जुट गई कि इस सर्वे ने कितने मतदाताओं को प्रभावित किया। इसके बाद अमेरिकी संसद ने मतदान से पहले एग्जिट पोल जारी होने पर बैन लगा दिया। इसी को देखते हुए सभी देशों ने यही तरीका अपना लिया।
देश में कब हुई इसकी शुरुआत?
भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत IIPU यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन ने की थी। 1980 के दशक में देश में पहली बार नेशनल लेवल पर एग्जिट पोल को लेकर सर्वे किया गया था। वहीं, साल 1996 में दूरदर्शन ने CSDS के साथ साथ मिलकर पहली बार एग्जिट पोल जारी किए थे। इसके बाद सभी न्यूज चैनलों ने एग्जिट पोल जारी करना शुरू किया।
कैसे होते हैं एग्जिट पोल के सर्वे?
सबसे पहले एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियां चुनाव से पहले कुछ सवाल तैयार करती हैं। इसके बाद वे सर्वे के लिए अपनी एक टीम को ट्रेनिंग देकर अलग-अलग पोलिंग बूथों पर भेजती हैं। वहां जो लोग लाइन वोट देकर बाहर निकलते हैं, वे एजेंट उनसे कुछ सवाल पूछती हैं जैसे कि आपने अपना मत किसे दिया? फिर एंजेंसी सभी जगहों के सर्वे आंकड़ों को इकट्ठा करती हैं और उन पर रिसर्च शुरू करती हैं। रिसर्च पूरा होने के बाद एक टीम संभावित रिजल्ट का आंकड़ा तैयारी करती है। फिर अंतिम चरण के मतदान होने के आधे घंटे बाद इसे न्यूज चैनलों पर जारी कर दिया जाता है।
कौन-कौन से फैक्टर्स से तय होता है एग्जिट पोल का आकंड़ा?
एग्जिट पोल कितना सटीक है इसके लिए 3 पैमाने हैं अगर कोई एग्जिट पोल का आंकड़ा इस पैमाने पर खरा उतरता है तो वो पोल सटीक समझा जाता है-
पहला है सैंपल साइज- किसी भी एग्जिट पोल का आंकड़ा इस बात पर निर्भर करता है कि उसके सैंपल का साइज कितना कम या ज्यादा है यानी कि सर्वे में कितने लोगों से संपर्क किया गया। दूसरा है सर्वे में पूछे जानें वाले प्रश्न- सैंपल सर्वे में पूछा गया प्रश्न जितना बैलेंस होगा, एग्जिट पोल का आंकड़ा उतना ही सही आएगा। तीसरा है सर्वे का रेंज- किसी भी एग्जिट पोल का आंकड़ा इस बात पर भी निर्भर करता है कि सर्वे के दौरान उसका दायरा कितना बड़ा रहा। अगर दायरा बड़ा होगा तो एग्जिट पोल के सटीक होने की संभावना उतनी ही प्रबल रहेगी।
एग्जिट पोल को लेकर है ये कानून
एग्जिट पोल को लेकर देश में कानून व नियम भी है। रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट- 1951 के सेक्शन 126ए के मुताबिक वोटिंग खत्म होने के आधे घंटे बाद ही ये जारी किया जा सकता है। अगर कोई कंपनी या व्यक्ति विशेष वोटिंग खत्म होने के पहले पोल जारी करता है तो उसे अपराध माना जाएगा और उस व्यक्ति को 2 साल की सजा और जुर्माना या दोनों हो सकता है।
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