Clean Meat: दुनिया भर के तमाम देशों में आर्टिफिशियल तरीके से मीट बनाने की कोशिश लगातार जारी है। एक ऐसी ही तैयारी जर्मनी में भी चल रही है। जीव विज्ञानी और रॉयटलिंगन यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता टीम के साथ मिलकर लैब में कृत्रिम मांस बनाने के ऊपर शोध किया जा रहा है। इसका नाम क्लीनमीट रखा गया है जो कि 2019 में ही बनाने की शुरुआत हो गई थी। जर्मनी में बन रहे इस मीट को लेकर कई कयास लगाए जा रहे हैं कि ये कई मायने काफी अलग है। जैसे इसमें विटामिन डी समेत कई तरह के पोषक तत्व को मिक्स किया जा रहा है। अब सवाल उठता है कि क्लीनमीट क्या सबसे अलग है और दुनिया भर के वैज्ञानिक आखिर आर्टिफिशियल मीट को तैयार करने में क्यों लगे हुए हैं जानिए इन हर सवालों का जवाब।
असली मांस ही तैयारी होगी कृत्रिम मीट
क्लीनमीट को तैयार करने के लिए असली मांस के बहुत ही छोटे से टुकड़े की आवश्यकता होती है, इस छोटे टुकड़े से मूल कोशिकाएं यानी स्टेम सेल को पूरी तरह से अलग करते हैं जिसके बाद लैब में बायोलॉजिकल प्रोसेस के माध्यम से इन कोशिकाओं की संख्या में कई गुना वृद्धि कराई जाती है। ताकि कृत्रिम मांस बन कर तैयार हो सके। जैसा कि हमने आपको बताया है कि इस मीट का नाम क्लीन मीट दिया गया है। अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि इसे क्लीन मीट क्यों कहा जा रहा है तो आपको बता दें मीट तैयार करने की जो प्रोसेस है वो काफी साफ सुथरा है, जिसके कारण उसका नाम क्लीन मीट रखा गया है।
आने वाले समय में नहीं मिलेगा भोजन
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में रिसर्च करने वाले 80 से अधिक समूह कृत्रिम मीट बनाने पर लगे हुए हैं। 2013 में पहली बार इसे तैयार करने वाली मोसामीट ने आर्टिफिशियल मीट से बना पहला बर्गर दुनिया के सामने लाया था। जैसा कि हमने कहा था कि आपके हर सवाल का जवाब हम देंगे तो आप को हम बताने जा रहे हैं कि आखिर लैब में मांस बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? 2019 से क्लीनमीट प्रोजेक्ट पर काम कर रहे पेट्रा क्लूगर बताती हैं कि वर्तमान में जो हालात हैं उसे साफ है कि आने वाले 20 सालों में खाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाएगा। ऐसे में लैब में तैयार होने वाले मीट एक जरूरी भोजन के रूप में दुनिया के सामने आएगा। पेट्रा आगे बताती है कि लैब में मीट तैयार करने के लिए इसकी प्रक्रिया को और भी सरल किया जा रहा है इसके अलावा मीट को काफी सस्ता तैयार करने की भी काम चल रही है।
लोगों किया जा रहा है जागरुक
क्लीनमीट को ज्यादातर शक की निगाहों से लोग देखते हैं। हाल में ही इसके ऊपर एक सर्वे भी किया गया था, जिसमें मात्र 14 फ़ीसदी लोग हैं कृत्रिम मीट को खाने के लिए हामी भरा। इनमें सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की थी क्योंकि उनके लिए लैब में बना एक साइंस फिक्शन की कहानी की तरह है। वही इजरायल की एक स्टार्टअप सुपर मीट लंबे समय से कृत्रिम मीट के ऊपर भी काम कर रहा है। यह लोगों के बीच अवेयरनेस फैलाने के लिए काम कर रहा है। यह स्टार्टअप रेस्टोरेंट में जाकर फिर अपनी मां से बने हुए बर्गर के लिए पार्टी को ऑर्गेनाइज कराता है इस तरह के लोगों को क्लीनमीट में बने तैयार व्यंजन को चखने का मौका भी प्राप्त होता है।
जरूरत के मुताबिक तैयार हो जाएगा मीट
पेट्रा बताती है कि हम अपने तरीके से जो मांस तैयार कर रहे हैं, उससे लोगों की जरूरत के मुताबिक बदला जा सकेगा। जैसे कि गर्भवती महिलाओं के लिए ऐसा मीट तैयार किया जाएगा, जिसमें पर्याप्त मात्रा में फोलिक एसिड हो या फिर वृद्ध लोगों के लिए विटामिन डी और आसानी से चबाए जाने वाला मीट भी तैयार किया जा सकता है। यानी आसान भाषा में कहें तो जिसको जैसी जरूरत है उसके मुताबिक आर्टिफिशियल मीट बनाया जा सकता है।
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