हिमाचल के सेबों से चमकेगी पूर्वांचल की किस्मत! जानें, किसानों पर कैसे होगी पैसों की बारिश
हिमाचल प्रदेश के सेबों की कुछ प्रजातियों को उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में लगाया गया और मात्र 2-3 साल बाद ही इनमें फल आ गए।
लखनऊ: पहाड़ों के बीच सेब की होने वाली खेती अब तराई के किसानों के लिए वरदान बन सकती है। गोरखपुर के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। बता दें कि लगभग 3 साल पहले गोरखपुर के बेलीपार स्थित कृषि विकास केंद्र ने इसका अनूठा प्रयोग किया था। साल 2021 में संस्थान ने हिमाचल प्रदेश से सेब की कुछ प्रजातियां मंगाई गई थीं और खेतों में लगाने के बाद 2023 में इनमें फल आ गए। इस सफल प्रयोग ने किसानों को अपनी ओर आकर्षित किया और एक किसान ने इसकी खेती अपने दम पर शुरू कर दी।
…तो पूर्वांचल के किसानों पर भी बरसेंगे पैसे!
संस्थान की सफलता से प्रेरित होकर गोरखपुर के पिपराइच के उनौला गांव के किसान धर्मेंद्र सिंह ने सेबों की खेती का रिस्क लिया। उन्होंने साल 2022 में हिमाचल से सेब के 50 पौधे मंगा खेती शुरू की और अब उनके पौधों में फल भी आ चुके हैं। सेब उत्पादन में मिली सफलता के बाद अब किसान इसकी खेती का दायरा बढ़ाने की तैयारी में है। कुछ किसानों से बातचीत चल रही है और इस साल एक एकड़ में सेब के बाग लगाने के साथ इसकी शुरुआत करने की तैयारी है। बता दें कि अगर यह प्रयोग आगे भी सफल रहता है तो पूर्वांचल के किसानों पर भी पैसों की बारिश हो सकती है।
पूर्वांचल के लिए अनुकूल हैं सेब की 3 प्रजातियां
धर्मेंद्र के मुताबिक, 2022 में उन्होंने हिमाचल से अन्ना और हरमन-99 प्रजातियों के 50 पौधे मंगाए थे। इस साल उनमें फल आए हैं। उन्होंने कहा, ‘सेब की खेती के विचार आने के बाद से ही जुनून सा रहने लगा। पैसे की कमी की वजह से सरकारी अनुदान के बारे में पता किया गया। जरूरत पड़ने पर कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह भी ली गई। अब इसे विस्तार देने की तैयारी है। पौधों का ऑर्डर दिया जा चुका है।’ KVK के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह ने कहा कि जनवरी 2021 में सेब की 3 प्रजातियों अन्ना, हरमन- 99 और डोरसेट गोल्डन को हिमाचल प्रदेश से मंगवाकर केंद्र पर लगाया गया था और 2 साल बाद इनमें फल आ गए। यही तीनों प्रजातियां पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के भी अनुकूल हैं।
जानें, कैसे करनी होगी सेब के पेड़ों की रोपाई
डॉ. एसपी सिंह ने कहा, ‘अन्ना, हरमन-99, डोरसेट गोल्डन में से ही पौधों का चयन करें। बाग में कम से कम 2 प्रजातियां के पौधों का रोपण करें जिससे कि अच्छा परागण हो। इससे फलों की संख्या अच्छी आएगी। चार-चार के गुच्छे में फल आएंगे। फलों की अच्छी साइज के लिए शुरुआत में ही कुछ फलों को निकाल दें। नवंबर से फरवरी रोपड़ का उचित समय है। लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10 गुणा 12 फीट रखें। प्रति एकड़ लगभग 400 पौधे का रोपण करें। रोपाई के 3 से 4 वर्ष में ही 80 फीसद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं। तराई क्षेत्र में कम समय की बागवानी के लिए सेब बहुत अनुकूल है।’ (IANS)