हीराबेन ने दूसरों के घर बर्तन मांजकर किया गुजारा, पीएम मोदी ने खुद सुनाया था मुश्किल दौर में मां के संघर्ष का किस्सा
आज सुबह-सुबह एक बुरी खबर सामने आई है। पीएम मोदी की मां हीराबेन मोदी ने 100 साल की उम्र में संसार को अलविदा कह दिया है। आपको बता दें कि हीराबेन मोदी ने अपनी लाइफ में काफी स्ट्रगल किया है।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की मां हीराबेन का आज 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। पीएम मोदी के लिए उनकी मां किसी ईश्वर से कम नहीं थीं, हम आए दिन देखते थे कि वह मौका मिलते ही अपनी मां के पैर पखारने गुजरात पहुंच जाते थे। इस साल हीराबेन ने अपना 100वां जन्मदिन मनाया था, इस मौके पर PM ने एक ब्लॉग भी लिखा था। इस ब्लॉग में उन्होंने मां से जुड़ी अपने बचपन की यादों को साझा किया था। जिससे पता लगा था कि हीराबेन ने अपनी जिंदगी के संघर्ष को किस तरह अपनी मेहनत से मात दी थी।
हीराबेन को नहीं मिला था मां का प्यार
इस ब्लॉग में PM मोदी ने लिखा था, ''मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था। वडनगर से ये बहुत दूर नहीं है। मेरी मां को अपनी मां यानी मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था। एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था। उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था। मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी। उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है। आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वो अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव।''
बड़े में भी किया बहुत संघर्ष
इसके आगे पीएम मोदी ने ब्लॉग में लिखा था, ''बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वो अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वो अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। वडनगर के जिस घर में हम लोग रहा करते थे वो बहुत ही छोटा था। उस घर में कोई खिड़की नहीं थी, कोई बाथरूम नहीं था, कोई शौचालय नहीं था। कुल मिलाकर मिट्टी की दीवारों और खपरैल की छत से बना वो एक-डेढ़ कमरे का ढांचा ही हमारा घर था, उसी में मां-पिताजी, हम सब भाई-बहन रहा करते थ। उस छोटे से घर में मां को खाना बनाने में कुछ सहूलियत रहे इसलिए पिताजी ने घर में बांस की फट्टी और लकड़ी के पटरों की मदद से एक मचान जैसी बनवा दी थी। वही मचान हमारे घर की रसोई थी। मां उसी पर चढ़कर खाना बनाया करती थीं और हम लोग उसी पर बैठकर खाना खाया करते थे।''
घर चलाने के लिए किया दूसरे के घर काम
हीराबेन मोदी के जीवन का संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। इसके आगे पीएम मोदी ने लिखा था, 'घर चलाने के लिए दो चार पैसे ज्यादा मिल जाएं, इसके लिए मां दूसरों के घर के बर्तन भी मांजा करती थीं। समय निकालकर चरखा भी चलाया करती थीं क्योंकि उससे भी कुछ पैसे जुट जाते थे। कपास के छिलके से रूई निकालने का काम, रुई से धागे बनाने का काम, ये सब कुछ मां खुद ही करती थीं। उन्हें डर रहता था कि कपास के छिलकों के कांटें हमें चुभ ना जाएं।''