गाय के गोबर से बने पेंट से रंगे जा रहे शासकीय भवन, जानें किस राज्य में शुरू हुई पहल
इस राज्य की सरकार ने एक अनूठी पहल करते हुए राज्य के सरकारी भवनों, स्कूलों और छात्रावासों में गाय के गोबर से बने जैविक पेंट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
ये बात सबको पता है कि गाय का मलमूत्र काफी उपयोगी होता है। खेती-किसानी से लेकर औषधियों तक गाय के गोबर और गौमूत्र का इस्तेमाल होता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा था कि गाय के गोबर से पेंट भी बनाया जा सकता है। जी हां, गाय के गोबर से ना सिर्फ पेंट बनाया गया बल्कि अब इस पेंट से सरकारी इमारतों की रंगाई-पुताई भी की जा रही है। दरअसल, छत्तीसगढ़ सरकार ने एक अनूठी पहल करते हुए राज्य के सरकारी भवनों, स्कूलों और छात्रावासों में गाय के गोबर से बने जैविक पेंट का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि गाय के गोबर से पेंट बनाने की इकाई राज्य के रायपुर और कांकेर जिले के गौठानों में स्थापित की गई है।
दो रुपये प्रति किलो गोबर और चार रुपए प्रति लीटर गोमूत्र
अगले साल जनवरी के अंत तक सभी जिलों में इसका विस्तार किया जाएगा। अधिकारियों ने बताया कि प्राकृतिक पेंट के इस्तेमाल से न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। उन्होंने बताया कि गौठानों में इसके निर्माण से स्थानीय महिलाएं जुड़ी हुई हैं। राज्य सरकार ने राज्य में दो साल पहले गोधन न्याय योजना की शुरुआत की थी। इसके तहत आठ हजार से अधिक गौठान स्थापित किए गए हैं। इन गौठानों में पशुपालकों और किसानों से दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर और चार रुपए प्रति लीटर के हिसाब से गोमूत्र खरीदा जा रहा है। अधिकारियों ने बताया कि गौठान समितियों और स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को वर्मी-कम्पोस्ट, अगरबत्ती, दीपक, रंगोली पाउडर, दोना-पत्तल आदि कई उत्पादों के निर्माण के लिए सुविधा प्रदान की गयी है।
गाय के गोबर से बिजली उत्पादन की भी पहल
अधिकारियों ने बताया कि इस साल की शुरुआत में राज्य सरकार ने गाय के गोबर से पेंट बनाने के लिए के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था। वहीं गाय के गोबर से बिजली उत्पादन की तकनीकी सहायता के लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के साथ समझौता किया गया था। गोधन न्याय योजना के संयुक्त निदेशक आरएल खरे ने बताया कि रायपुर जिले के हीरापुर जरवाय गांव और कांकेर जिले के सरधू नवागांव गांव स्थित गौठानों में प्राकृतिक पेंट का निर्माण शुरू किया गया है। खरे ने बताया कि अगले साल जनवरी के अंत तक राज्य के सभी जिलों में ऐसी 73 और इकाइयां शुरू की जाएंगी। उन्होंने बताया कि राज्य के बेमेतरा, दुर्ग और रायपुर जिले के तीन गौठानों में गोबर से बिजली बनाने की इकाई शुरू की गई है। खरे ने बताया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर राज्य के कृषि विभाग ने सभी जिला कलेक्टरों और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को गौठानों में पेंट निर्माण इकाइयों की स्थापना की प्रक्रिया में तेजी लाने और सभी सरकारी भवनों की पेंटिंग रासायनिक पेंट की जगह गोबर से बने पेंट का उपयोग करने का निर्देश दिया है।
गाय के गोबर से बने पेंट के बारे में जानें
अधिकारी ने बताया कि कार्बोक्सिमिथाइल सेल्युलोज़ गाय के गोबर से निर्मित प्राकृतिक पेंट का मुख्य घटक है। उन्होंने बताया कि एक सौ किलो गोबर से करीब 10 किलो सूखा सेल्युलोज तैयार किया जाता है। खरे ने बताया, ''यह पेंट एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, नॉन-टॉक्सिक, इको-फ्रेंडली और गंध-मुक्त होता है। गाय के गोबर से निर्मित होने वाले पेंट के दो प्रकार की कीमत क्रमशः 120 रुपए प्रति लीटर और 225 रुपए प्रति लीटर है।'' उन्होंने बताया कि प्रत्येक लीटर से 130 से 139 रुपए और 55 रुपए से 64 रुपये तक का लाभ प्राप्त होगा। खरे ने बताया कि रायपुर के बाहरी इलाके हीरापुर जरवाय गांव में स्थापित इकाई में 22 महिलाओं को जोड़ा गया है और इस साल जून में वहां उत्पादन शुरू किया गया था। उन्होंने बताया कि रायपुर के पशु चिकित्सालयों सहित सरकारी भवनों की पेंटिंग में गाय के गोबर से बने पेंट का इस्तेमाल किया गया था।