Chara Ghotala: गाय-भैंस के साथ जब 'लालू' ने किया धोखा... कैसे खुद खा गए सारा चारा? जानिए अब तक चारा घोटाला मामले में क्या-क्या हुआ
ये मामला कोई दो चार करोड़ का नहीं बल्कि करीब 950 करोड़ का है। 80 और 90 के दशक में फर्जी बिलों के आधार पर बिहार के विभिन्न कोषागारों से करीब 950 करोड़ रुपये की अवैध निकासी की गई थी। कोषागार की जांच करते वक्त अधिकारियों को पैसों की निकासी के बारे में पता चला तो वह यकीन नहीं कर पा रहे थे।
Highlights
- बिहार में हुआ था 950 करोड़ रुपये का चारा घोटाला
- लालू प्रसाद यादव कई मामलों में ठहराए गए दोषी
- राज्य के विभिन्न कोषागारों से की गई थी अवैध निकासी
Chara Ghotala: महागठबंधन का साथ छोड़कर बीजेपी में आए नीतीश कुमार ने एक बार फिर एनडीए से गठबंधन तोड़ लिया है। उन्होंने आज 8वीं बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस खास मौके पर तेजस्वी यादव सहित बिहार के तमाम नेता शपथ ग्रहण के लिए राजभवन पहुंचे। उन्होंने उप मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली। नीतीश सात दलों के महागठबंधन की सरकार बनाने जा रहे हैं। तेजस्वी ने एक दिन पहले ही आरजेडी, कांग्रेस और वामदलों के साथ बैठक भी की थी। इन सबके बीच अब एक बार फिर लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी दोबारा सत्ता में आ गई है। इसके बाद लोगों को वही चारा घोटाला याद आ गया है, जिसमें लालू यादव को एक से अधिक सजा मिली हैं। लालू फिलहाल दिल्ली में अपनी बेटी और राज्यसभा सासंद मीसा भारत के घर हैं। यहीं से उन्होंने नीतीश कुमार से फोन पर बात की। तो चलिए आज चारा घोटाला मामले के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को इसी साल फरवरी महीने में झारखंड के रांची में सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के पांचवें मामले में पांच साल की जेल और 60 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। उन्हें 15 फरवरी को दोषी ठहराया गया था। यह झारखंड में लालू के खिलाफ पशुपालन घोटाला यानी चारा घोटाले का पांचवां और आखिरी मामला था। इसमें उनपर डोरंडा ट्रेजरी से कुल 139.35 करोड़ रुपये की अवैध निकासी के आरोप थे। लालू को इससे पहले बाकी चार मामलों में भी सजा दी गई थी।
सीबीआई ने इस घोटाले को लेकर कुल 66 मामले दर्ज किए थे। जिनमें से छह में बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव को अभियुक्त बनाया गया था। उनके खिलाफ एक मामला लंबित बताया जा रहा है, जिसपर राजधानी पटना की सीबीआई अदालत में सुनवाई चल रही है। बिहार के बंटवारे से पहले साल 2000 में सभी मामलों की सुनवाई पटना की विशेष सीबीआई अदालत में चल रही थी। लेकिन जब झारखंड बना तो उसके बाद पांच मामलों को झारखंड में ट्रांसफर कर दिया गया। लालू लंबे वक्त तक कस्टडी में रहते हुए राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (रिम्स) में भर्ती रहे हैं। यह रांची का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। 74 साल के लालू कई बीमारियों से पीड़ित हैं। वह अस्पताल में रहते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत की कार्यवाही में शामिल हुए थे।
अब तक कितनी बार गए जेल?
लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में सात बार जेल जा चुके हैं। उन्हें चाईबासा ट्रेजरी से अवैध निकासी करने के मामले में 3 अक्टूबर 2013 को पहली सजा मिली थी। जिसके बाद वह तीन से अधिक साल तक जेल में रहे। इनमें से आठ महीने वह रांची की बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल में रहे। बाकी के समय वह रांची, दिल्ली और मुंबई के अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती रहते हुए न्यायिक हिरासत में रहे।
कौन से नेता बने थे अभियुक्त?
चारा घोटाला मामले में लालू यादव के अलावा बिहार के पूर्व सीएम डॉ जगन्नाथ मिश्र, पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद, चंद्रदेव प्रसाद वर्मा, भोलाराम तूफानी, डॉ आर के राणा, जगदीश शर्मा और ध्रुव भगत जैसे राजनेता अभियुक्त बनाए गए थे। इनका ताल्लुक आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियों से हैं। इनमें से ज्यादातर को अदालत ने सजा सुना दी है। हालांकि डॉ जगन्नाथ मिश्र का मामला थोड़ा अलग रहा। अदालत ने उनकी खराब सेहत को देखते हुए उन्हें सजा सुनाए जाने के बाद बरी कर दिया। मिश्र का बाद में निधन हो गया। इस मामले में कई आईएएस अधिकारी भी शामिल थे और उन्हें भी अलग-अलग मामलों में सजा सुनाई गई थी।
लालू यादव को कितनी सजा मिली है?
पहली सजा-
लालू यादव को पहली सजा 3 अक्टूबर, 2013 में मिली। उन्हें चाईबासा ट्रेजरी के मामले (आरसी 20-ए/ 96) में सीबीआई अदालत ने पांच साल की जेल और 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। जिसके बाद वह दो महीने तक रांची की जेल में रहे। हालांकि 13 दिसंबर को उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी। ये 37.7 करोड़ रुपये की अवैध निकासी का पहला मामला था।
दूसरी सजा-
दूसरी सजा 6 जनवरी, 2017 को सुनाई गई। इस बार लालू यादव को देवघर ट्रेजरी के (आरसी 64-ए/96) मामले में साढ़े तीन साल कैद की सजा मिली। यह 89.27 लाख की अवैध निकासी का मामला था।
तीसरी सजा-
लालू यादव को तीसरी सजा 23 जनवरी, 2018 में मिली। इस मामले (आरसी 68-ए/96) में सीबीआई की अदालत ने उन्हें पांच साल की कैद और 10 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। ये चाईबासा ट्रेजरी यानी कोषागार से 33.67 करोड़ रुपये की अवैध निकासी का मामला था।
चौथी सजा-
बिहार के पूर्व सीएम लालू को 15 मार्च, 2018 में दुमका ट्रेजरी से 3.13 करोड़ की अवैध निकासी के मामले (आरसी 38-ए/ 96) में सात-सात साल की अलग-अलग कैद की सजा मिली। साथ ही एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया। अदालत ने लालू को पीसी एक्ट और आईपीसी एक्ट के तहत दोषी करार दिया था।
पांचवीं सजा-
पांचवीं सजा 21 फरवरी, 2022 में सुनाई गई। उन्हें डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी के मामले पांच साल की कैद मिली और 60 लाख रुपये का जुर्माना देने को कहा गया। ये मामला 139.35 करोड़ रुपये की अवैध निकासी का था।
चारा घोटाला आखिर है क्या?
ये मामला कोई दो चार करोड़ का नहीं बल्कि करीब 950 करोड़ का है। 80 और 90 के दशक में फर्जी बिलों के आधार पर बिहार के विभिन्न कोषागारों से करीब 950 करोड़ रुपये की अवैध निकासी की गई थी। कोषागार की जांच करते वक्त अधिकारियों को पैसों की निकासी के बारे में पता चला तो वह यकीन नहीं कर पा रहे थे। ऐसा इसलिए क्योंकि तय बजट से अधिक पैसा खर्च हो रहा था। इस पर 1985 में बिहार के तत्कालीन महालेखाकार ने भी आपत्ति जताई थी। उन्हें आवश्यक ब्योरे नहीं मिल रहे थे। ये वो समय था, जब बिहार में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी और वहां के मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्र थे।
इस दौरान बिहार में सरकार बदली और 1990 में तत्कालीन जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव राज्य के मुख्यमंत्री बन गए। 1996 में इस मामले में चर्चा तेज हो गई। फिर बिहार सरकार ने आईएएस अधिकारी अमित खरे को चाइबासा जिले का उपायुक्त बनाकर भेजा। जो पश्चिम सिंहभूम में है। उन्होंने चाईबासा ट्रेजरी में छापा मारा और कई लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई। इसके बाद ट्रेजरी को सील किया गया। तब जाकर ये घोटाला पकड़ में आया। तब के सीएम लालू के आदेश पर कई कोषागारों में छापेमारी की गई। बिहार पुलिस ने भी कई रिपोर्ट दर्ज कीं। बाद में मामला सीबीआई के हाथों में चला गया। जिसके बाद लालू को भी अभियुक्त बनाया गया।
इस मामले में पहली बार एफआईआर करने वाले अमित खरे अब रिटयर हो गए हैं। वह इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार हैं। इस घोटाले की वजह से लालू को 25 जुलाई, 1997 को मुख्यमंत्री के अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन्होंने इसी साल 30 जुलाई को पटना में सरेंडर कर दिया। तब वह इस घोटाला मामले में पहली बार जेल गए थे।