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Delhi AIIMS: अब घर बैठे करा सकेंगे आंख का इलाज, मोबाइल ऐप बना रहा है AIIMS

Delhi AIIMS: दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र कॉर्निया के प्रतिरोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को बेहतर इलाज देने तथा सर्जरी करा चुके लोगों की देखभाल के लिए एक मोबाइल ऐप विकसित कर रहा है।

AIIMS- India TV Hindi Image Source : PTI AIIMS

Highlights

  • मरीज इस ऐप के जरिए एम्स के डॉक्टरों से परामर्श कर सकेंगे
  • सर्जरी का इंतजार कर रहे मरीजों की लगातार निगरानी करने में भी मदद मिलेगी
  • दूरदराज के इलाकों में रह रहे लोगों को मिलेगा फायदा

Delhi AIIMS: दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का राजेंद्र प्रसाद नेत्र विज्ञान केंद्र कॉर्निया के प्रतिरोपण का इंतजार कर रहे मरीजों को बेहतर इलाज देने तथा सर्जरी करा चुके लोगों की देखभाल के लिए एक मोबाइल ऐप विकसित कर रहा है। देशभर में नेत्र संबंधी रोगों के मरीज इस ऐप के जरिए एम्स के डॉक्टरों से परामर्श कर सकेंगे। इससे सर्जरी का इंतजार कर रहे मरीजों की लगातार निगरानी करने में भी मदद मिलेगी। सेंटर के प्रमुख डॉ. जे एस टिटियाल ने कहा, ‘‘कोविड ने हमें यह भी अहसास कराया कि हर वक्त वैयक्तिक रूप से लोगों को देखना संभव नहीं होता है, ऐसे में लोगों से अलग-अलग तरीके से संवाद करना होता है, खासतौर से दूरदराज के इलाकों में रह रहे लोगों से।’’ 

ऐप के जरिए डॉक्टर सीधे मरीजों से बातचीत कर सकते हैं

उन्होंने कहा, ‘‘इस ऐप के जरिए डॉक्टर सीधे मरीजों से बातचीत कर सकते हैं। इसमें कैमरे की भी एक प्रणाली होगी, जिसका इस्तेमाल कर मरीज अपनी आंखों की तस्वीरें साझा कर सकते हैं तथा अपनी समस्या और लक्षण बता सकते हैं। डॉक्टर उनकी समस्या का निदान कर सकते हैं और अगर मरीज का हमारे यहां पंजीकरण है तो हम उन्हें सेंटर में भर्ती होने तथा सर्जरी का वक्त दे सकते हैं।’’ डॉ. टिटियाल ने बताया कि इसके अलावा इस ऐप से उन मरीजों पर भी नजर रखने में मदद करेगी, जिन्होंने सर्जरी करा ली है। 

नियमित जांच कराना होगा आसान

उन्होंने कहा कि प्रतिरोपण सर्जरी के बाद नियमित जांच कराना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर प्रतिरोपण कराने वाले व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली उसके प्रतिरोपित अंग पर हमला करती है तो इसका कुछ दिनों के भीतर इलाज किया जाना होता है। अगर मरीज एक या दो हफ्ते बाद आता है तो इसका इलाज नहीं किया जा सकता। अगर ऐसे मरीज पर नजर रखी जाती है तो उसे नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया जा सकता है।’’ इस ऐप के छह महीनों में शुरू होने की उम्मीद है। 

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