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दुनियाभर में तबाही मचाने वाला कोरोना इसे छू तक नहीं पाया, यह है भारत का सबसे आत्मनिर्भर गांव

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले का पातालकोट गांव भारत के आत्मनिर्भर गांवों में से एक है। इस गांव के लोग बाहरी दुनिया से केवल नमक खरीदने के लिए संपर्क करते हैं, बाकी अन्य कार्यों और उत्पादों के लिए प्रकृति के साथ-साथ खुद पर निर्भर हैं।दुनियाभर में तबाही मचाने वाली कोरोना महामारी इस गांव को छू तक नहीं पाई।

Coronavirus, Patalkot, Chhindwara, Madhya Pradesh- India TV Hindi Image Source : FILE दुनियाभर में तबाही मचाने वाला कोरोना वायरस इस गांव में पहुंच ही नहीं पाया।

कोरोना महामारी एक बार फिर से दुनियाभर के देशों में दस्तक दे रही है। विदेशों के साथ ही भारत में भी कोरोना पीड़ितों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में भारत का एक गांव चर्चा में है। जब कोरोना वायरस पूरी दुनिया में तबाही मचा रहा था, तब इस गांव में कोरोना का एक भी मरीज नहीं मिला था।

भारत गांवों का देश है। यहां पर विभिन्न प्रकार के अनोखे और मौलिक गांव सुर्खियों में बने रहते हैं। एक गांव ऐसा है जो अपनी आत्मनिर्भरता के लिए भारत ही नहीं बल्कि विश्व में भी पहचान बना रहा है। मध्य प्रदेश राज्य के छिंदवाड़ा जिले में स्थित पातालकोट गांव मुख्य रूप से आदिवासी गांव है। धरातल से काफी नीचे बसा यह गांव कोरोना काल के दौरान भी कोरोना महामारी से पूर्णतः बचा रहा। सतपुड़ा की वादियों का यह गांव औषधियों का खजाना है। वैसे तो इस गांव के इर्द-गिर्द टोटल 21 गांव हैं लेकिन पातालकोट गांव की विशेषता ही कुछ और है। इस गांव में भूरिया जनजाति के लोग रहते हैं। ये लोग आपसी भाईचारा और शांतपूर्ण माहौल के लिए जाने जाते हैं। 

रहस्यमयी मिथक
धरातल से काफी नीचे बसे इस गांव में धूप नहीं आती है। इसलिए इस गांव के लोगों में एक मिथक है कि मां सीता इसी स्थान से धरती में समा गई थीं। दूसरा मिथक इस गांव के बारे में यह है कि हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को अहिरावण से बचाने के लिए इसी रास्ते से पाताल लोक लेकर गए थे। इन्हीं मिथकों के कारण यह गांव हिंदू श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है। 

रोटी, कपड़े और मकान के लिए किसी पर नहीं निर्भर
इस गांव के भूरिया जनजाति के लोग भोजन से लेकर सभी जरूरतों के लिए जंगल और कृषि पर निर्भर हैं। ये लोग बाहरी दुनिया से नमक के अलावा कुछ भी नहीं खरीदते हैं। पर्यावरण अनुकूल इनकी जीवन शैली दुनियाभर में सुर्खियां बटोर रही हैं। 

पेड़ काटना मना है
भूरिया जनजाति के लोग प्रकृति के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं, यही कारण है कि इस गांव के निवासी पेड़ों की कटाई नहीं करते हैं। पेड़ों और झाड़ियों का उपयोग केवल पारंपरिक दवाएं और जड़ी-बूटियों के लिए करते हैं। पातालकोट के ग्रामीण अपने घरों को बनाने के लिए आंधी तूफान में गिरे हुए पेड़ों का इस्तेमाल करते हैं। पेड़ के साथ इनके दोस्ताना व्यवहार को खूब सराहा जा रहा है। 

शांति और सद्भाव जीवन का आदर्श वाक्य
ज्यादातर आदिवासी बाहरी दुनिया के लोगों से संपर्क में आने पर हिंसक व्यवहार करते हैं लेकिन पातालकोट के आदिवासी शांतिपूर्ण जीवन शैली और भाईचारे में विश्वास रखते हैं। यही कारण है कि अब पातालकोट गांव को देखने के लिए भारी संख्या में पर्यटक आ रहे हैं। 

कोरोना के दौरान कमाया खूब नाम
दुनियाभर में तबाही मचाने वाली कोरोना महामारी इस गांव को छू तक नहीं पाई। कोरोना की दोनों लहरों के दौरान यहां एक भी कोरोना संक्रमित नहीं मिला। क्योंकि यहां बाहरी लोगों का पहुंचना बहुत ही मुश्किल है। वैसे भी यहां के लोग एक दूसरे की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। पर्यावरण और समाज के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी को बखूबी जानते हुए यहां के निवासी चुनौतियों का सामना बेहतर ढंग से कर लेते हैं। किसी भी खतरे से बचने के लिए पातालकोट के ग्रामीण हमेशा से सचेत रहे हैं।

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