Corona Nasal Vaccine: अनुसंधानकर्ताओं ने कोविड-19 के लिए नाक से दी जाने वाली एंटी-वायरल दवा विकसित की है, जो संक्रमित पशुओं से सार्स-सीओवी2 के प्रसार को कम और इसके संक्रमण को सीमित कर सकती है। जब लोगों की जांच में कोविड-19 होने का पता चलता है, तब तक वायरस उनके श्वसन तंत्र में पैठ बना चुका होता है। वहीं लोग हर सांस के साथ अदृश्य संक्रामक तत्वों को शरीर से बाहर निकालते हैं। इस समय कोविड-19 के उपचार वाली दवाएं वायरस के प्रकोप से होने वाले लक्षणों पर केंद्रित हैं लेकिन उनसे संक्रमण को फैलने से रोकने की दिशा में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिलती है।
अमेरिका के ग्लैडस्टोन इंस्टीट्यूट के अनुसंधानकर्ताओं ने पूर्व में संक्रामक रोगों के उपचार के लिए अनोखा तरीका इजाद किया, जिसमें एक खुराक में नाक से दवा दी जाती है, जो सार्स-सीओवी2 के गंभीर संक्रमण से बचाव करती है। ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेस’ पत्रिका में प्रकाशित एक नए अध्ययन में वे दर्शाते हैं कि ‘थेरप्यूटिक इंटरफियरिंग पार्टिकल’ (टीआईपी) नामक यह उपचार संक्रमित पशुओं से वायरस के संक्रमण को कम करता है और इसके प्रसार को सीमित भी करता है। अनुसंधानकर्ता लियोर वीनबर्गन ने कहा, ‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो एंटीवायरल और वैक्सीन के लिए सांस के जरिए फैलने वाले वायरस के संक्रमण को सीमित करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण रहा है।’
पशुओं से वायरस के प्रसार को कम करती है
उन्होंने कहा, ‘यह अध्ययन दिखाता है कि टीआईपी की एक खुराक में नाक से दी जाने वाली दवा पशुओं से वायरस के प्रसार को कम करती है।’ वीनबर्गर और अनुसंधानकर्ता सोनाली चतुर्वेदी ने सार्स-सीओवी2 से ग्रस्त चूहों का उपचार एंटीवायरल टीआईपी से किया और फिर उनकी नाक में रोजाना वायरस की संख्या मापी। उन्होंने देखा कि जिन चूहों का उपचार नहीं किया गया है, उनकी तुलना में उपचार वाले चूहों की नाक में हर बार वायरस कम गिने गए हैं।
वायरस के स्वरूपों की कमजोर नब्ज को पकड़ा गया
इससे पहले खबर आई थी कि भारतीय मूल के एक अनुसंधानकर्ता के नेतृत्व में एक टीम ने हाल ही में सामने आए बीए.1 और बीए.2 सहित सार्स-कोव-2 के सभी प्रमुख स्वरूपों की ‘कमजोर नब्ज’ का पता लगाया है। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि वायरस की इस कमजोरी को एंटीबॉडी के जरिए निशाना बनाया जा सकता है और संभावित रूप से उस उपचार का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है, जो सभी स्वरूपों पर प्रभावी हो।
कमजोर स्थान पर हुआ क्रायो-ईएम का इस्तेमाल
नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में गुरुवार को प्रकाशित अध्ययन में क्रायो-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) का उपयोग वायरस के स्पाइक प्रोटीन के कमजोर स्थान पर किया गया था। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि वायरस के खोजे गए कमजोर स्थान को एंटीबॉडी के जरिए निशाना बनाया जा सकता है, जिससे ऐसे उपचार का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, जो सभी स्वरूपों पर कारगर हो। यह अध्ययन भारतीय मूल के अनुसंधानकर्ता श्रीराम सुब्रमण्यम के नेतृत्व वाली टीम ने किया था।
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