तवांग के बेहद करीब पहुंचा चीन, भारत ड्रैगन को उसी की भाषा में दे रहा जवाब
भारत एलएसी पर चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है। चीनी सैनिक अगर उकसाते हैं तो सेना उसका जवाब ऑन द स्पॉट देती है। चीन जिस तरह सड़कों का जाल तैयार कर रहा है, उसी तरह भारत भी चीन से सटी सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है। यही वजह है कि चीन चिढ़ा है।
India-China Tawang: चीन अपनी नापाक चाल से बाज नहीं आ रहा है। उसने गलवान वाली हिमाकत तवांग में भी दोहराने की कोशिश की लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मुंह की खाई। इस बीच एलएसी पर चीन की नई साज़िश का पर्दाफाश हुआ है। चीन ने भारत को मात देने के लिए इस इलाके में नए सैन्य और यातायात के आधारभूत संरचना बना लिए हैं जिससे वह बहुत तेजी से अपने सैनिकों को जब चाहे भेज सकता है। एलएसी से चीन की सड़क मात्र 150 मीटर तक पहुंच गई है। चीन के साथ भारत की करीब 3488 किलोमीटर की लंबी सीमा लगती है। सामरिक लिहाज से पाकिस्तान से कहीं ज्यादा चुनौती चीन से है और ये चुनौती पिछले 2 साल में और भी बढ़ गई है। गलवान के बाद तवांग में जिस तरह से चीनी सैनिकों की पिटाई हुई है, चीन उससे बौखलाया हुआ।
भारत ने चीन के ऊपर बनाई हुई है रणनीतिक बढ़त
सैटलाइट तस्वीरों के आधार पर ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों ने खुलासा किया है कि तवांग जिले के यांगत्से पठारी इलाके में भारत ने चीन के ऊपर अपनी रणनीतिक बढ़त बनाई हुई है। अरुणाचल के अलावा, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और लद्दाख में भारत की चीन के साथ सीमा लगती है। इन इलाकों में बीआरओ ने रोड का जाल बिछा दिया है। सिक्किम में पिछले 5 साल में बीआरओ ने 18 रोड बनाए जिनकी कुल दूरी करीब 663 किलोमीटर है। वहीं उत्तराखंड में 22 रोड का निर्माण किया जिनकी दूरी करीब 947 किलोमीटर है, हिमाचल प्रदेश में कुल 8 रोड बनाए जिसकी दूरी 739 किलोमीटर है जबकि सबसे ज्यादा रोड लद्दाख में बनाए हैं जिनकी दूरी 3140 किलोमीटर है।
रणनीतिक रूप से बेहद अहम है तवांग
इनमें तवांग रणनीतिक रूप से बेहद अहम माना जाता है। भारत तवांग से आसानी से चीन की भूटान सीमा में घुसपैठ की निगरानी कर सकता है।आस्ट्रेलियन स्ट्रेटजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार यांगत्से पठार जो समुद्र से 5700 मीटर की ऊंचाई पर है, रणनीतिक रूप से दोनों ही देशों के लिए अहम है क्योंकि इससे पूरे इलाके पर नजर रखना आसान है। इस पर भारत का कब्जा है जिससे वह सेला दर्रे को चीन से बचाए रखने में सक्षम है। सेला दर्रा ही तवांग को जोड़ने का एकमात्र रास्ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी सेना ने एलएसी के पास ही कैंप भी बना रखे हैं और इसी नई रोड की मदद से वो 9 दिसंबर को भारतीय सीमा चौकी पर कब्जा करने के लिए पहुंचे थे। चीनी सैनिकों की तादाद 200 से 600 के बीच थी। इस तरह से चीन ने भारत को मिली रणनीतिक बढ़त को कम करने के लिए अपनी जमीनी सेना को तेजी से तैनात करने की क्षमता हासिल कर ली है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक चलने वाली यातायात सुविधा और उससे जुड़ी क्षमता की मदद से चीनी सेना ने भारत के खिलाफ ऐसी क्षमता बना ली है जो संघर्ष के दौरान निर्णायक हो सकती है।
भारत चीन को उसी की भाषा में दे रहा जवाब
भारत एलएसी पर चीन को उसी की भाषा में जवाब दे रहा है। चीनी सैनिक अगर उकसाते हैं तो सेना उसका जवाब ऑन द स्पॉट देती है। चीन जिस तरह सड़कों का जाल तैयार कर रहा है, उसी तरह भारत भी चीन से सटी सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर रहा है। यही वजह है कि चीन चिढ़ा है। केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश में एक नया राजमार्ग बना रही है जो करीब 1748 किलोमीटर लंबा होगा। दावा किया जा रहा कि ये हाइवे 2027 तक बनकर तैयार हो जाएगा। ये हाईवे भारत-तिब्बत-चीन-म्यांमार सीमा के करीब से गुजरेगा और एलएसी से करीब 20 किलोमीटर अंदर होगा।
अरुणाचल प्रदेश का तवांग वो जगह है जो बौद्ध भिक्षुओं के लिए दुनिया में जाना जाता है। तवांग की 600 साल पुरानी बुद्ध मठ भी चीन को चुभती है। 1950 के दशक में जब चीन ने तिब्बत पर अवैध कब्जा करना शुरु किया तो 1959 में तिब्बतियों के धार्मिक गुरु दलाई लामा को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। तिब्बत के ल्हासा में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध मठ है जिसे चीन बर्बाद कर देना चाहता है। दलाई लामा ने भी साफ कहा कि वो कभी भी चीन नहीं लौटेंगे।