चंद्रयान-3: क्या होती है डीबूस्टिंग, कैसे चांद के करीब आएगा चंद्रयान? जानें सबकुछ
चंद्रयान के लैंडर को चंद्रम की सतह पर उतरने से पहले अभी कुछ और अहम पड़ाव पार करने हैं। इसी के तहत आज डीबूस्टिंग होगी जिससे यह चंद्रमा के और करीब आ जाएगा।
नई दिल्ली: चंद्रमा की सतह पर उतरने के लक्ष्य को लेकर श्रीहरिकोटा के प्रक्षेपण केंद्र से उड़ान भरने के बाद चंद्रयान-3 अब धीरे-धीरे अपने अंतिम पड़ाव की ओर कदम बढ़ा रहा है। आज शाम करीब 4 बजे विक्रम लैंडर की पहली डीबूस्टिंग होगी यानी उसे चांद की सतह के और करीब लाया जाएगा। आज की डीबूस्टिंग के दौरान पहली बार लैंडर के इंजन की भी जांच होगी जो 14 जुलाई से अब तक बंद थे।
चंद्रमा के और करीब आएगा लैंडर
लैंडर को चांद की सतह के और करीब लाने के लिए लैंडर में लगे एक इंजन को कुछ सेकेंड्स के लिए इस तरह फायर किया जाएगा ताकि लैंडर की दिशा बदल जाए और वह थोड़ा चंद्रमा की सतह की ओर झुक जाए। इस तरह से लैंडर की कक्षा बदल जाएगी और वो चांद की सतह के और करीब पहुंच जाएगा। ऐसी ही एक डीबूस्टिंग 20 अगस्त को भी होगी जिसके बाद विक्रम लैंडर चांद की 30KM x 100KM की कक्षा में पहुंच जाएगा। यानी चांद के चक्कर लगाते हुए लैंडर की चांद की सतह से अधिकतम दूरी 100 KM और न्यूनतम दूरी 30 KM रह जाएगी।
23 अगस्त को होगी सॉफ्ट लैंडिंग
30 KM की न्यूनतम दूरी को हांसिल करने के बाद 23 अगस्त को प्रस्तावित सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। इसके लिए चंद्रयान 2 मिशन का ऑर्बिटर जो कि पहले से ही चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है उस ऑर्बिटर से की गई मून मैपिंग की तस्वीरों को लैंडर के कंप्यूटर्स में फीड किया जाएगा ताकि विक्रम लैंडर को चंद्रमा के साथ-साथ सॉफ्ट लैंडिंग स्पॉट की सारी जानकारी मिल जाए। लैंडिंग के समय चंद्रमा के वातावरण, वहां के रेडियेशन और अन्य क्रिटिकल पहलुओं की स्टडी की जाएगी ताकि 23 अगस्त को सॉफ्ट लैंडिंग से पहले विक्रम लैंडर को वो सारा महत्वपूर्ण डाटा मिल जाए और लैंडर विक्रम खुद ही ऑन बोर्डिंग सिस्टम की मदद से आसानी से सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए।
इस बार पिछली गलती की गुंजाइश नहीं
चंद्रयान मिशन- 2 के दौरान सॉफ्ट लैंडिंग से ठीक पहले यानी सतह से सिर्फ 2.1 KM दूर ग्राउंड स्टेशन से यान का सम्पर्क टूट गया और यान की क्रैश लैंडिंग हो गई। इस बार यह गलती न हो इसके लिए लैंडर के पूरे सॉफ्टवेयर तकनीक को बदला गया है। लैंडर के पायों यानि लेग्स को इतना मजबूत बनाया गया है ताकि अगर किसी बड़े गड्ढे में भी लैंडिंग करनी पड़े तो वो मजबूती से लैंडिंग कर सके। साथ ही इस बार लैंडर पर बाहर की ओर एक खास कैमरा लगाया गया है जो लैंडर की तीसरी आंख की तरह काम करेगा। इसे लेसर डॉपलर वेलोसीमीटर कहा जाता है, इस कैमरे से निकलने वाली लेसर किरणें लगातार चांद की सतह से टकराती रहेंगी जिससे कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों को इस बात का पता चलता रहेगा की लैंडर का वेग कितना है और उसे समय रहते कंट्रोल किया जा सकेगा। चंद्रयान मिशन 2 में ये उपकरण नहीं लगाया गया था जिसके चलते सतह के करीब पहुंचने पर जब यान का वेग तय मानकों से कम हो गया था तो ऑन बोर्ड सिस्टम ने ऑटोमेटिकली यान के वेग को बढ़ा दिया जिससे वो क्रेश लैंड कर गया।इस बार इस तरह की गलती होने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है।