चांद के और करीब आएगा चंद्रयान-3, आज होगी विक्रम लैंडर की डी-ऑर्बेटिंग; 4 दिन बाद ISRO बनाएगा इतिहास
चंद्रयान-2 के दौरान हुई गलतियों से सबक सीखकर ISRO ने इस बार कई सुधार किए हैं इसलिए दिल की धड़कनें जरूर तेज हैं लेकिन भरोसा भी है कि हम 5 दिन बाद चांद की सतह को चूम कर ही दम लेंगे।
इसरो के मिशन चंद्रयान-3 में अब तक सब कुछ ठीक चल रहा है। प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग होने के बाद विक्रम लैंडर चांद की कक्षा में अकेला चक्कर लगा रहा है। आज विक्रम लैंडर की डि-ऑर्बिटिंग की जाएगी। इसके बाद 20 अगस्त को भी डि-ऑर्बिटिंग होगी इसका मतलब है कि लैंडर को चंद्रमा की निचली कक्षा में लाकर उसके और करीब लाया जाएगा जहां से 23 अगस्त को चांद पर लैंडिग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। 23 अगस्त को शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रमा पर लैंडिग के साथ ही इतिहास बना देगा।
इसरो ने अपने ट्विटर हैंडल से तस्वीर जारी की है जिसमें आगे प्रोपल्शन मॉड्यूल है जबकि पीछे लैंडर विक्रम के अलग होने की प्रक्रिया है। गुरुवार 17 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर विक्रम लैंडर अपने प्रोपल्शन मॉड्यूल से अलग हो गया है। अब लैंडर जहां चांद का रुख करेगा। वहीं प्रोपल्शन मॉड्यूल अगले एक साल तक चांद के चक्कर लगाकर धरती पर इसकी जानकारी भेजता रहेगा। अब लैंडर अकेला चांद की 100 किलोमीटर की कक्षा में चक्कर लगाएगा। आज और फिर 20 अगस्त को इसे चांद की सतह के और करीब लाया जाएगा। इसके बाद आएगा 23 अगस्त का वो ऐतिहासिक दिन जब चंद्रयान-3 चांद की सतह को चूम लेगा।
चन्द्रमा की कक्षा में घूम रहा है विक्रम लैंडर
चंद्रमा की सतह से लैंडर विक्रम 150 किमी ऊपर घूम रहा है उसे डिबूस्ट किया जाएगा ताकि वो न्यूनतम दूरी को तय कर सके। अब चंद्रयान के रोवर का लैंडिंग का काउंटडाउन भी शुरू हो चुका है। अब लैंडर की रफ्तार धीमी की जाएगी। जब चंद्रमा से रोवर की दूरी सिर्फ 30 किलोमीटर रह जाएगी तो लैंडिंग का प्रोसेस शुरू होगा। इसरो को उम्मीद है कि 23 अगस्त शाम को 5 बजकर 47 मिनट पर रोवर की लैंडिंग की यात्रा शुरू होगी। उसे परिक्रमा करते हुए 90 डिग्री कोण पर चंद्रमा की तरफ चलना शुरू करना होगा। लैंडिंग की प्रक्रिया की शुरुआत में चंद्रयान-3 की रफ्तार करीब 1.68 किमी प्रति सेकेंड होगी। इसे थ्रस्टर की मदद से कम करते हुए सतह पर सुरक्षित उतारा जाएगा।
चंद्रयान-3 लैंडर के पास 4 वैज्ञानिक उपकरण
बता दें कि ये लैंडिंग चंद्रमा के उस हिस्से में हो रही है जहां आज तक कोई नहीं पहुंच पाया है। इसे मून का डार्क साइड कहते हैं। ये चंद्रमा का वो इलाका है जहां पानी, बर्फ और कई तरह के मिनरल्स हो सकते हैं। चंद्रयान-3 लैंडर के पास 4 वैज्ञानिक उपकरण हैं, जो अलग-अलग काम करेंगे जिनमें से पहला उपकरण चंद्रमा के भूकंपों की स्टडी करेगा। जबकि दूसरा उपकरण ये स्टडी करेगा कि चंद्रमा की सतह गर्मी को गुजरने कैसे देती है। तीसरा चंद्रमा की सतह के पास प्लाज्मा एनवॉयरमेंट की स्टडी करेगा और चौथे उपकरण की मदद से वैज्ञानिक चांदर और पृथ्वी की दूरी को एक्यूरेसी से नाप सकेंगे। इसके अलावा लैंडर और रोवर एक दूसरे के साथ डायरेक्ट कॉन्टेक्ट में होंगे।
चंद्रयान-2 के दौरान हुई गलतियों से सबक सीखकर इसरो ने इस बार कई सुधार किए हैं इसलिए दिल की धड़कनें जरूर तेज हैं लेकिन भरोसा भी है कि हम 5 दिन बाद चांद की सतह को चूम कर ही दम लेंगे।
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