नई दिल्ली: जबसे पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ को लेकर अपना दावा ठोका गया है, तबसे हरियाणा और पंजाब की राजनीति गरमाई हुई है। 1 अप्रैल को भगवंत मान सरकार ने पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ पर अपने अधिकार को लेकर प्रस्ताव पास किया गया अब इसके बाद खट्टर सरकार ने भी 5 अप्रैल को हरियाणा विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है।
वहीं राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए नियम 267 के तहत नोटिस दिया और पंजाब विधानसभा के प्रस्ताव को असंवैधानिक बताया। वहीं चंडीगढ़ को पंजाब स्थानांतरित करने वाले पंजाब के प्रस्ताव पर हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि हम चंडीगढ़ को कहीं नहीं जाने देंगे। चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी थी, है और रहेगी। जब तक हरियाणा के लोग हमारे साथ हैं, कुछ नहीं हो सकता।
पंजाब का दावा-
शुक्रवार को पंजाब विधानसभा ने चंडीगढ़ को तत्काल राज्य को हस्तांतरित करने की मांग करने वाला प्रस्ताव पारित कर दिया। प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘पंजाब पुनर्गठन कानून, 1966 के जरिये पंजाब का पुनर्गठन किया गया, जिसमें पंजाब राज्य का, हरियाणा राज्य, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में पुनर्गठन किया गया और पंजाब के कुछ हिस्से तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए। चंडीगढ़ शहर को पंजाब की राजधानी के तौर पर बनाया गया। पूर्व में जब भी किसी राज्य को विभाजित किया गया तो राजधानी मूल राज्य के पास रही है। इसलिए पंजाब चंडीगढ़ को पूरी तरह पंजाब को हस्तांतरित करने के लिए अपना दावा पेश कर रहा है।"
हरियाणा का पक्ष-
इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी है और बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भी कई मुद्दे हैं, जिन पर बातचीत होनी चाहिए। हरियाणा सरकार का कहना है कि सिर्फ चंडीगढ़ ही नहीं बल्कि हिंदी भाषी क्षेत्र देने और सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर को लेकर भी बात होनी चहिए। अपने विशेष सत्र में अगर हरियाणा सरकार ने इन मुद्दों पर चर्चा की तो फिर पंजाब सरकार की मुश्किल बढ़ सकती है। SYL मुद्दा पंजाब में काफी संवेदनशील है। खट्टर भी कह चुके हैं अरविंद केजरीवाल पंजाब में पानी रोक रहे हैं और दिल्ली में मांग रहे हैं। इस पर उन्हें स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। इतना ही नहीं चंडीगढ़ के मुद्दे को लेकर खट्टर ने राजीव-लोंगोवाल समझौते का भी जिक्र किया।
इतिहास में क्या है दर्ज-
1 नवंबर 1966 को पंजाब पुनर्गठन एक्ट पास किया गया था। इस एक्ट के पारित होने के बाद पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ अस्तित्व में आए। पंजाब पुनर्गठन एक्ट के करीब 20 साल बाद 1985 में राजीव-लोंगोवाल समझौता हुआ। इस समझौते के तहत चंडीगढ़ पंजाब को सौंपने की लगभग पूरी तैयारी की जा चुकी थी। लेकिन ठीक वक्त पर राजीव गांधी ने इस समझौते से हाथ पीछे खींच लिए। रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1970 में केंद्र सरकार ने हरियाणा को 5 साल में अपनी राजधानी बनाने को कहा था, जिसके लिए राज्य को 10 करोड़ रुपये की मदद भी दी गई थी। लेकिन राजधानी नहीं बन सकी। यही कारण है कि पंजाब और हरियाणा में चंडीगढ़ को लेकर लगातार खींचतान जारी है।
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