Ashoka inscription Controversy: अशोक के शिलालेख को कब्जा कर बना दी मजार, पुरातत्व विभाग भी कुछ नहीं कर पाया
Ashoka inscription Controversy: बिहार की राजधानी पटना से 165 किलोमीटर की दूरी पर रोहतास जिला स्थित है। अपनी इतिहास को लेकर रोहतास भारत में प्रसिद्ध है। इसी इतिहास की कड़ी में एक मामला ऐसा है, जो कई दशकों से राजनीति का शिकार हो चुका है।
Highlights
- शिलालेख पर चादर चढ़ाई गई थी
- शिलालेख से अतिक्रमण नहीं हट सका
- पहले शिलालेख को अतिक्रमण नहीं किया गया था
Ashoka inscription Controversy: बिहार की राजधानी पटना से 165 किलोमीटर की दूरी पर रोहतास जिला स्थित है। अपनी इतिहास को लेकर रोहतास भारत में प्रसिद्ध है। इसी इतिहास की कड़ी में एक मामला ऐसा है, जो कई दशकों से राजनीति का शिकार हो चुका है। आपको बता दें कि सासाराम की चंदन पहाड़ी पर स्थित महान मौर्य सम्राट अशोक के एक ऐतिहासिक शिलालेख को मजार के रूप में बदलने का प्रयास किया गया। पूरे देश में अशोक के ऐसे 8 शिलालेख हैं, जिनमें से एक मात्र बिहार में यह शिलालेख है। अब सवाल उठ रहा है कि अचानक से इस शिलालेख को लेकर क्यों बात होने लगी?
आखिर किसने फिर से किया मुद्दा गर्म
बीजेपी अब शिलालेख के मुद्दे पर वर्तमान की महागठबंधन सरकार को घेरने की योजना बना रही है। विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट विजय चौधरी 1 अक्टूबर को जिले में महाधरना देने का ऐलान किया है। विपक्षी पार्टी के नेताओं की मांग है कि जल्द से जल्द इस शिलालेख को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाए। अगर ऐसा नहीं होता है तो अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू किए जाएंगे। उन्होंने आगे कहा कि पिछले 2300 साल से शीलालेख था लेकिन जब लालू नीतीश की सरकार बनी, तब से शिलालेख पर तालाबंदी कर दी गई। सम्राट ने बताया कि इन्हीं की शह पर आज दूसरे समुदाय के लोगों ने शिलालेखों पर कब्जा कर तालाबंदी करने का काम किया है, जिससे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
स्थानीय पूर्व बीजेपी विधायक ने क्या कहा?
पूर्व विधायक और बीजेपी के वरिष्ठ नेता जवाहर प्रसाद ने बताया कि हमने कई मर्तबा अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए इस शिलालेख के लिए विधानसभा में आवाज उठाई लेकिन मेरी आवाज को अनदेखा किया गया। हमने कई बार जिलास्तर पर धरना देने का प्रयास किया तो तत्कालीन जिला अधिकारी ने धरना नहीं देने दिया। वहीं उन्होंने आरोप लगाते हुए बताया कि जब हमने इसकी आवाज उठाई थी तो उसी समय एक मुस्लिम जिला अधिकारी थे, जिन्होंने मेरे बातों को अनदेखी की। इसके अलावा एक अन्य अधिकारी थे जिन्होंने मुझे चुनौती दी थी। उन्होंने आगे बताया कि पहले कुछ नहीं था लेकिन अब इसे पूरी तरह से मजार में तब्दील कर दिया गया। इससे पहले भी शिलालेख पर चादर चढ़ाई गई थी तो हमने जाकर हटाया भी था। हमारी लाख कोशिशों के बावजूद भी शिलालेख से अतिक्रमण नहीं हट सका।
चाबी किसके पास है?
इस संबंध में पूर्व विधायक जवाहर प्रसाद बताते हैं कि पहले शिलालेख को अतिक्रमण नहीं किया गया था लेकिन बाद में इसे पूरी तरह से कब्जा कर लिया गया और गेट लगा दिया गया। अब शिलालेख पूरी तरह से गेट के अंदर कैद है। उन्होंने बताया कि उसकी चाबी कांग्रेस के कार्यकर्ता जी एम अंसारी उर्फ टुन्नु के पास है। इस शिलालेख पर तालाबंदी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने ही किया है। बीजेपी नेता ने बताया कि हम चाहते हैं कि जीएम अंसारी से जाकर इस संबंध में बातचीत करके कोई हल निकाले लेकिन डर लगता है कि कहीं संप्रदायिक दंगा ना हो जाए। इसलिए अब हम कुछ बोलते नहीं है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
इस संबंध में सासाराम के रहने वाले कौशल सिन्हा ने बताया कि कैमूर पहाड़ी श्रृंखला पर्यटन के दृष्टिकोण से पूरे बिहार का केंद्र बन सकता है लेकिन सरकार की अनदेखी के वजह से आज यह क्षेत्र वंचित है। अगर इस क्षेत्र में विकास होता है तो स्थानीय लोगों को ना सिर्फ रोजगार मिलेगी बल्कि पूरे देश को यह देखने को मिलेगा कि बिहार के प्रकृति में खूबसूरती का भंडार है जैसे कि अशोक का शिलालेख यह सब ऐसी चीजें हैं जो हमारे इतिहास को दर्शाती है लेकिन सरकार की बेरुखी के कारण आज आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास को देखने के लिए तरस रही है और भटक रही है। सरकार की लापरवाही के कारण ही आज एक विरासत मजार बन चुकी है।
क्या-क्या हुआ अब तक?
साल 2008, 2012 और 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण मुक्त करने के लिए तत्कालीन डीएम ने एसडीएम सासाराम को निर्देश दिया था। स्थानीय प्रशासन के मुताबिक, एसडीएम ने मरकाजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी लौटाने की बात कही तो कमेटी ने एसडीएम की बातों को अनदेखी कर चाबी नहीं लौट आई। वर्तमान में शिलालेख के ऊपर एक बड़ी इमारत बना दी गई है। शिलालेख के प्रवेश द्वार पर भारी भरकम लोहे का गेट भी लगवा दिया गया है। अगर कोई पर्यटक स्थल पर शिलालेख देखना भी चाहता होगा तो उसकी इच्छा धरी की धरी रह जाएगी।
क्या है इस शिलालेख का इतिहास?
साल 1917 में एएसआई के अधीक्षक गौतम भट्टाचार्य ने इस महत्वपूर्ण लघु शिलालेख को संरक्षित किया था। साल 2008 में पुरातत्व विभाग ने इस शिलालेख को संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया। आपको बता दें कि कैमूर पहाड़ी पर चंदन शहीद मजार से लगभग 20 फीट नीचे पश्चिम दिशा में 10 फीट लंबाई 49 फीट चौड़े गुफ्फे में यह लघु शिलालेख स्थित है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस शिलालेख को मजार में बदलने की पूरी कोशिश की गई और और वह सफल भी हुए। वहीं उन्होंने बताया कि यहां पर एएसआई के द्वारा एक बोर्ड भी लगाया गया था। अब बोर्ड का नामोनिशान नहीं है। वही इसकी इतिहास के बारे में बताएं तो इतिहासकार डॉ श्याम सुंदर तिवारी बताते हैं कि ईसा पूर्व 256 ई में देश भर में 8 स्थानों पर तीसरे मौर्य सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख लगवाए थे। इनमें से एक सासाराम की चंदन पहाड़ी पर है जिससे अब मजार बना दिया गया है। उन्होंने आगे बताया कि कलिंग विजय युद्ध में हुए रक्तचाप से विचलित होकर बुद्ध की शरण में आए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के संदेशों के प्रचार प्रसार के लिए जगह-जगह ऐसे शिलालेख खुदवाया था।