स्वयंभू बाबा ने कहा- सपने में 'दैवीय आदेश' मिला, लोगों ने डरकर बना दिया अवैध मंदिर; पवित्र कुंड को बना डाला स्विमिंग पूल
स्वयंभू बाबा की पृष्ठभूमि के बारे में भी जानकारी हासिल की जा रही है। मामले की जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बाबा बार-बार अपना नाम बदल रहे हैं और वह संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति लग रहे हैं। कभी वह अपने आपको चैतन्य आकाश बताते हैं और कभी आदित्य कैलाश।
देहरादून: एक स्वयंभू बाबा द्वारा उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में सुंदरढुंगा नदी घाटी में एक हिमनद से निकलने वाली पवित्र झील के पास अवैध रूप से मंदिर का निर्माण किए जाने से स्थानीय लोगों में नाराजगी है, जिन्होंने उस पर झील में नहाकर उसे अपवित्र करने का आरोप भी लगाया है। बागेश्वर की जिलाधिकारी अनुराधा पाल ने मंगलवार को बताया कि इस संबंध में स्थानीय लोगों से शिकायत मिलने के बाद मामले को जांच के लिए पुलिस को सौंप दिया गया है। उन्होंने बताया कि जिस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया है, वहां तक पहुंचने वाला मार्ग बहुत मुश्किलों भरा है और मानसून के दौरान बंद रहता है।
बाबा ने 'देवी कुंड' नाम की पवित्र झील में किया स्नान
बागेश्वर के पुलिस अधीक्षक अक्षय प्रह्लाद कोंडे ने कहा, ‘'लकड़ी और पत्थर से बनी संरचना एक छोटा सा मंदिर है। यह अवैध है और इसे लावारिस भूमि पर बनाया गया है।'’ कोंडे का मानना है कि स्थानीय लोगों ने ही डरकर बाबा की मंदिर को बनाने में मदद की, जब उसने उन्हें यह बताया कि उसे स्वप्न में मंदिर निर्माण किए जाने का ‘दैवीय आदेश’ मिला है। पुलिस अधिकारी ने कहा कि कथित स्वयंभू बाबा मंदिर में पिछले 10-12 दिन से ही रह रहा है और इसी दौरान उसने 'देवी कुंड' नाम की पवित्र झील में स्नान किया है। कोंडे ने कहा, ‘‘स्थानीय लोग झील को पवित्र मानते हैं और साल में एक बार उसमें अपने देवी-देवताओं की मूर्तियों को स्नान कराते हैं।’’
झील में स्नान करने से ग्रामीणों में नाराजगी
बाबा के झील में स्नान करने से आसपास के गांवों के लोगों में नाराजगी है, जिनका मानना है कि ऐसा करके उसने पानी को अपवित्र कर दिया है। कोंडे ने कहा कि जाहिर तौर पर बाबा ने कुछ स्थानीय लोगों को अपनी बात समझाई होगी, जिन्होंने उसकी मंदिर को बनाने में मदद की होगी, लेकिन कुछ अन्य लोगों ने उसकी ‘दैवीय आदेश’ वाली बात नहीं मानी और उसके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर प्रशासन तक पहुंच गए।
बार-बार अपना नाम बदल रहा है बाबा
पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस मामले की जांच कानून और व्यवस्था के नजरिए से कर रही है। हालांकि, उन्होंने कहा कि मंदिर का निर्माण पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र में लावारिस जमीन पर किया गया है, इसलिए अतिक्रमण के खिलाफ किसी भी कार्रवाई के लिए मामले में वन विभाग को भी शामिल करना होगा। कोंडे ने कहा कि मौके तक पहुंचना भी मुश्किल है, क्योंकि सुंदरढुंगा नदी घाटी में स्थित आखिरी दो गांवों- वानचम और जतोली से भी वहां पहुंचने में दो-तीन दिन लगते हैं।
उन्होंने बताया कि स्वयंभू बाबा की पृष्ठभूमि के बारे में भी जानकारी हासिल की जा रही है। मामले की जांच से जुड़े सूत्रों ने बताया कि बाबा बार-बार अपना नाम बदल रहे हैं और वह संदिग्ध चरित्र के व्यक्ति लग रहे हैं। एक सूत्र ने कहा, ‘‘कभी वह अपने आपको चैतन्य आकाश बताते हैं और कभी आदित्य कैलाश। यह कहना कठिन है कि इन दोनों में से कौन सा उनका असली नाम है।’’ एक अन्य सूत्र ने कहा कि वह राजनीतिज्ञों से भी मिलते रहते हैं और ऐसा लगता है कि जब उन्हें हरिद्वार और द्वाराहाट में रहने की अनुमति नहीं मिली, तो उन्होंने बागेश्वर में अपना ठिकाना बना लिया। (भाषा इनपुट्स के साथ)