नई दिल्ली: 22 जनवरी को अयोध्या में नवनिर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होनी है। देशभर में इस कार्यक्रम की तैयारियां की जा रही हैं। हालांकि इस कार्यक्रम का कुछ लोग विरोध भी कर रहे हैं। इसमें शंकराचार्य भी शामिल हैं। प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का विरोध करने वालों में सबसे प्रमुख नाम उत्तराखंड ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का भी है।
'यह धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ होगा'
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने रविवार को बताया कि वह उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगे क्योंकि मंदिर का निर्माण अभी अधूरा है। यह धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ होगा। उन्होंने कहा कि मंदिर भगवान का शरीर है, मंदिर का शिखर भगवान की आंखों का प्रतिनिधित्व करता है और 'कलश' सिर का प्रतिनिधित्व करता है। शंकराचार्य ने कहा, मंदिर पर लगा झंडा भगवान के बाल हैं।
उन्होंने कहा कि बिना सिर या आंखों के शरीर में प्राण-प्रतिष्ठा करना सही नहीं है। यह हमारे शास्त्रों के खिलाफ है। इसलिए, मैं वहां नहीं जाऊंगा क्योंकि अगर मैं वहां जाऊंगा तो लोग कहेंगे कि आपके सामने ही शास्त्रों का उल्लंघन किया गया है।" उन्होंने कहा कि मैंने अयोध्या ट्रस्ट के सदस्यों के साथ यह मुद्दा उठाया है कि मंदिर के पूर्ण निर्माण के बाद प्राण प्रतिष्ठा की जानी चाहिए।
'अयोध्या में होने वाला पूरा प्रोग्राम सियासी'
वहीं इससे पहले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि अयोध्या में होने वाला पूरा प्रोग्राम सियासी है। क्योंकि आधे अधूरे मंदिर का उद्घाटन कर चुनावी फ़ायदा उठाने की कोशिश हो रही है। इसके साथ ही अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अयोध्या में नया मंदिर नहीं बन रहा ये पहले से मौजूद मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा है।
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