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Hindi News भारत राष्ट्रीय जब बिना कुछ कहे Atal Bihari Vajpayee ने की थी चीन की 'बेइज्जती', 800 भेड़ों के साथ पहुंचे चीनी दूतावास, आगे जो हुआ वो जानकर करने लगेंगे तारीफ

जब बिना कुछ कहे Atal Bihari Vajpayee ने की थी चीन की 'बेइज्जती', 800 भेड़ों के साथ पहुंचे चीनी दूतावास, आगे जो हुआ वो जानकर करने लगेंगे तारीफ

Atal Bihari Vajpayee: चीन की तरफ से इस मामले में भारत सरकार को एक पत्र भेजा गया। ये पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम था और इसे उनके पास पहुंचाया गया। ये पत्र जन संघ के युवा नेता वाजपेयी को लेकर था।

Atal Bihari Vajpayee- India TV Hindi Image Source : INDIA TV Atal Bihari Vajpayee

Highlights

  • चीन ने भारत पर लगाए थे भेड़ चोरी के आरोप
  • अटल बिहारी वेजपेयी ने दिया था तगड़ा जवाब
  • 800 भेड़ लेकर चीन के दूतावास पहुंच गए थे

Atal Bihari Vajpayee: आज पूरा देश पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी चौथी पुण्यतिथि पर याद कर रहा है। भारत रत्न वाजपेयी एक ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं, जिन्हें दुनियाभर के नेता सम्मान की दृष्टि से देखते थे। वाजपेयी और पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ का जन्मदिन एक ही दिन 25 दिसंबर को आता है। वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी वाजपेयी को आज याद करते हैं क्योंकि उन्होंने भारत और रूस के रिश्तों को एक नई दिशा दी थी। जब वह 2003 में चीन गए तो दोनों देशों के रिश्ते को एक नई दिशा मिली। लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में युद्ध हुआ, तभी कुछ ऐसा हो गया, जिसके कारण चीन शर्मसार हुआ।  

अटल बिहारी वाजपेयी ने बिना कुछ कहे चीन को अच्छा सबक सिखाया था। दरअसल हुआ ये कि भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध हुआ था और चीन 1965 में एक और युद्ध करने की तैयारियों में जुट गया था। ये वो वक्त था, जब वेस्टर्न फ्रंट पर भारतीय सेना पाकिस्तान के साथ जंग लड़ रही थी। अगस्त-सितंबर के महीने में चीन भारत पर एक के बाद एक कई आरोप लगा रहा था। इन आरोपों के बीच ही चीन ने ये आरोप भी लगा दिया कि भारतीय सेना ने उसकी 800 भेड़ और 59 याक की चोरी की है। चीन जब इस तरह की नौटंकी कर रहा था, तब भारतीय सेना कश्मीर में पाकिस्तान को मुहंतोड़ जवाब देने में व्यस्त थी। 

चीन ने भारत सरकार को भेजा था पत्र

Image Source : India tvAtal Bihari Vajpayee

चीन की तरफ से इस मामले में भारत सरकार को एक पत्र भेजा गया। ये पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम था और इसे उनके पास पहुंचाया गया। ये पत्र जन संघ के युवा नेता वाजपेयी को लेकर था, जिन्होंने बिना कुछ किए न केवल चीन के बेतुके आरोपों का जवाब दिया, बल्कि उसकी बोलती बंद कर दी थी। दरअसल हुआ ये कि 26 सितंबर, 1965 के दिन वाजपेयी 800 भेड़ों के साथ चीन के दूतावास में एंटर हुए। 

ये कदम उन्होंने चीन के उन आरोपों का जवाब देने के लिए उठाया, जिसमें उसने कहा था कि भारतीय सैनिकों ने उसकी भेड़ और याक चुराए हैं। इन भेड़ों के गलों में प्लेकार्ड लटके हुए थे, जिनपर लिखा था, 'मुझे खा लो, लेकिन दुनिया को बचा लो।' 

वाजपेयी के इस तगड़े जवाब के बीच चीन ने शास्त्री के नाम पत्र लिखा था और इस बार उसने वाजपेयी के कदम को चीन का 'अपमान' बताया। चीन ने कहा कि वाजपेयी ने ये सब भारत सरकार के समर्थन के साथ किया है। इन आरोपों के जवाब में भारत सरकार ने भी मुहंतोड़ जवाब दिया। 

भारत सरकार ने कहा, 'दिल्ली के कुछ लोगों ने 800 भेड़ों का जुलूस निकाला है। भारत सरकार का इन प्रदर्शनों से कुछ लेना देना नहीं है। यह चीन के अल्टीमेटम और छोटे-छोटे मुद्दों पर भारत के खिलाफ युद्ध की धमकी दिए जाने के खिलाफ दिल्ली के लोगों की नाराजगी की एक सहज और शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति है।'

चीन को चिढ़ाए जाने की हुई खूब चर्चा

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उन दिनों वाजपेयी ने जिस तरह चीन को चिढ़ाया था, उसकी हर जगह चर्चा हुई। इस घटना के दो साल बाद चीन एक बार फिर भारत को सबक सिखाने के इरादे से आगे आया, लेकिन खुद नए सबक के साथ मुंह की खाकर गया। 1967 में भी चीन भेड़ चुराने का बहाना बनाकर भारत के साथ युद्ध करना चाहता था। 

लेकिन 1962 के युद्ध से अलग इस बार भारतीय सेना न केवल पूरी तरह तैयार थी, बल्कि उसने दुश्मन को धूल चाटने के लिए मजबूर भी कर दिया। चीनी विशेषज्ञ आज भी ये बात मानते हैं कि वाजपेयी एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत और चीन के रिश्तों को एक नई दिशा दी है। जब भारत ने 1988 में परमाणु परीक्षण किया था, तब चीन आगबबूला हो गया था। 
 
2003 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ भारत यात्रा पर आए थे। चीन ने भारत के परमाणु परीक्षण को खतरा करार दिया। हालांकि जियाबाओ के भारत आने पर वाजपेयी ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) मैकेनिज्म शुरू किया था।

यहां तक कि आज भी इसके अंतर्गत भारत और चीन के सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके अलावा जून 2003 में वाजपेयी भी चीन गए थे और उनकी इस यात्रा को आज भी एक जरूरी दौरा माना जाता है। वाजपेयी और उनके प्रतिनिधिमंडल ने उस समय चीन में हुआंगपो नदी पर नाव की सवारी की थी और कई इमारतों को करीब से देखा था।

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