Anti-Defection Law: कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने गुरुवार को राज्यसभा को सूचित किया कि दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान समय और कई न्यायिक जांच की कसौटी पर खरे उतरे हैं और फिलहाल इसमें संशोधन करने की कोई जरूरत नहीं है। रिजीजू ने एक सवाल के लिखित जवाब में यह बात कही। कानून मंत्री से पूछा गया था कि क्या दलबदल विरोधी कानून अपने मौजूदा स्वरूप में दलबदल को रोकने के लिए पर्याप्त है? जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि इसके प्रावधान समय और कई न्यायिक जांच की कसौटी पर खरे उतरे हैं, लिहाजा इसमें बदलाव करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
कानून मंत्री ने की संशोधन न करने की वकालत
कानून मंत्री किरेन रिजीजू मंत्री ने कहा, ‘‘चूंकि, दसवीं अनुसूची (जिसे दलबदल विरोधी कानून कहा जाता है) के प्रावधान समय और कई न्यायिक जांच की कसौटी पर खरे उतरे हैं इसलिए फिलहाल इसमें संशोधन करने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’ एक अन्य सवाल में पूछा गया कि क्या अदालतों की ओर से दलबदल विरोधी कानून की अलग-अलग व्याख्याएं की गई हैं? इस पर रीजिजू ने कहा कि किहोतो होलोहोन बनाम जाचिल्हू मामले में सुप्रीम कोर्च की सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने दसवीं अनुसूची के सातवें पैराग्राफ को छोड़ कर पूरे प्रावधानों को बरकरार रखा था। सातवां पैराग्राफ स्पीकर या विधायिकाओं के अध्यक्षों के निर्णयों की न्यायिकता से संबंधित है। उन्होंने कहा ‘‘हालांकि, कुछ अदालतों ने अतीत में प्रावधानों की जांच की है, लेकिन संशोधन के लिए कोई विशेष निर्देश नहीं दिया गया है।’’
उपराष्ट्रपति ने की थी दल-बदल रोधी कानून में संशोधन की वकालत
गौरतलब है कि बीते महीने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने दल-बदल रोधी कानून में खामियों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि इन खामियों की वजह से बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि एक साथ दल-बदल करते हैं। उन्होंने इस कानून को प्रभावी बनाने के लिए इसमें संशोधन की वकालत की थी। नायडू ने प्रेस क्लब में 'नए भारत में मीडिया की भूमिका' पर व्याख्यान देते हुए कहा था कि दल-बदल रोधी कानून में कुछ खामियां हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है, ताकि जनप्रतिनिधियों के दल-बदल को रोका जा सके। उन्होंने कहा था, ‘‘यह एक साथ बड़ी संख्या में दल बदलने की अनुमति देता है, लेकिन थोड़ी संख्या में दल-बदल की इजाजत नहीं देता। इसलिए लोग संख्या जुटाने की कोशिश करते हैं।’’
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