जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट की केंद्र सरकार पर सख्त टिप्पणी-'कहने को तो बहुत कुछ है मगर...'
जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर तीखी टिप्पणी की है, जिससे एक बार फिर कार्यपालिका और न्यायपालिका आमने-सामने हैं। जानिए क्या है पूरा मामला-
दिल्ली: न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक बार फिर से टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने आज सवाल किया कि केंद्र ने अभी तक उच्च न्यायालयों की सिफारिशें कॉलेजियम को क्यों नहीं भेजी हैं।
नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि वे मामले की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं। न्यायमूर्ति कौल ने केंद्र को संबोधित करते हुए कहा, "उच्च न्यायालय के 80 नाम 10 महीने की अवधि से लंबित हैं। यह तो केवल एक बुनियादी प्रक्रिया है, इसमें आपका दृष्टिकोण जानना होगा ताकि कॉलेजियम इस बारे में निर्णय ले सके।"
पीठ ने कहा कि 26 न्यायाधीशों का ट्रांसफर और "संवेदनशील उच्च न्यायालय" में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति पेंडिंग पड़ी हुई है। जस्टिस कौल ने कहा, "मेरे पास इस बात की जानकारी है कि कितने नाम लंबित हैं, जिनकी सिफारिश उच्च न्यायालय ने की है लेकिन कॉलेजियम को अबतक इसकी जानकारी नहीं मिली है।"
"मुझे बहुत कुछ कहना है, लेकिन मैं खुद को रोक रहा हूं
इसे लेकर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा है और पीठ ने उन्हें दो सप्ताह का समय दिया और केंद्र की दलील के साथ कोर्ट में आने को कहा है। अब इस मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। सख्त टिप्पणी में जस्टिस कौल ने कहा, "मुझे बहुत कुछ कहना है, लेकिन मैं खुद को रोक रहा हूं। मैं चुप हूं क्योंकि ए-जी ने जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा है, लेकिन अगली तारीख पर मैं चुप नहीं रहूंगा।"
न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय और कार्यपालिका के बीच विवाद का एक प्रमुख मुद्दा रही है। केंद्रीय मंत्रियों का तर्क है कि जजों के चयन में सरकार की भूमिका होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति अधिनियम को रद्द कर दिया था, जो न्यायाधीशों की नियुक्तियों में कार्यपालिका को बड़ी भूमिका देता था।
कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच विवाद पिछले साल उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की उस टिप्पणी से बढ़ गया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि कैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने कानून को "निष्प्रभावी" कर दिया है। इसके तुरंत बाद, अदालत ने कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली "देश का कानून" है, जिसका "पूरी तरह पालन" किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि सिर्फ इसलिए कि समाज के कुछ वर्ग कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ विचार व्यक्त करते हैं, यह देश का कानून नहीं रहेगा। कॉलेजियम प्रणाली के तहत, भारत के मुख्य न्यायाधीश और वरिष्ठतम न्यायाधीश उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिए न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश करते हैं। नाम केंद्र को भेजे जाते हैं और उसकी मंजूरी के बाद राष्ट्रपति द्वारा नियुक्तियां की जाती हैं।
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