Abortion law in india: अमेरिका में गर्भपात कानून बदलने को लेकर विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। दरअसल, 1973 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि- 'गर्भपात कराना है या नहीं, ये तय करना महिला का अधिकार है।' इस फैसले को 'रो वर्सेज वेड' के नाम से जाना जाता है, लेकिन अब खबर है कि सुप्रीम कोर्ट अपने 50 साल पुराने फैसले को बदल सकता है। यानी 50 साल पहले महिलाओं को मिला अधिकार अब छिन सकता है।
बता दें, भारत सहित दुनिया के कई देशों में एक निश्चित समय सीमा के भीतर और कुछ शर्तों के साथ गर्भपात कराने का नियम है। भारत में भी हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अक्सर गर्भपात की इजाजत को लेकर मामले आते रहते हैं। 20-25 हफ्ते से भी ज्यादा की प्रेग्नेंसी की वजह से मामले काफी जटिल भी होते हैं। कभी कोई रेप पीड़ित गर्भपात के लिए अदालत आता है, तो कभी गर्भ में पल रहे बच्चे को गंभीर बीमारी की वजह से अबॉर्शन के लिए अनुमति मांगनी पड़ती है।
भारत में गर्भपात को लेकर क्या है कानून? भारत में कोई भी डॉक्टर तभी गर्भपात करा सकता है जब भ्रूण 12 सप्ताह से अधिक का ना हो। लेकिन इसके लिए ठोस वजह जरूरी है। यदि गर्भवती की जान को खतरा हो, या उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर खतरा पहुंचने की आशंका हो तो 24 सप्ताह तक गर्भपात किया जा सकता है। इससे अधिक का समय बीत जाने पर गर्भपात के लिए राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाता है, जिसे आवेदन और मेडिकल रिपोर्टों के आधार पर तीन दिन में फैसला लेना होता है कि गर्भपात कराना जरूरी है या नहीं।
MPT Act की धारा 3 (4) अनुसार किसी भी महिला का गर्भपात उसकी इच्छा के बिना नहीं किया जा सकता। यदि गर्भवती 18 साल से कम उम्र की है, या फिर मानसिक रूप से कमजोर है तो गर्भपात के लिए उसके माता-पिता कि सहमति ज़रूरी है।
भारत में गर्भपात कराने के लिए किसी ठोस वजह का होना ज़रूरी है। भारतीय दंड संहिता की धारा-312 के मुताबिक यदि कोई ठोस कारण नहीं है तो डॉक्टर और गर्भपात कराने वाली महिला अपराध के दायरे में आएंगे। इन्हें तीन साल तक की सज़ा हो सकती है। यदि गर्भपात महिला की सहमति के बिना कराया जाता है तो दोषी को 10 साल या फिर उम्र कैद तक की सज़ा हो सकती है।
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