Ahmedabad-Mumbai Bullet Train Project: इस कंपनी ने लगा दिया ये अजीबोगरीब अड़ंगा
Ahmedabad-Mumbai Bullet Train Project: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना को अमली जामा पहनाने की तैयारियों के बीच एक कंपनी ने बाधा डाल दिया है। इससे प्रोजेक्ट पर बेजवजह की देरी होने की आशंका बढ़ गई है।
Highlights
- पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना है अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन
- गोदरेज कंपनी ने 2019 से कोर्ट में कर रखा है केस
- महाराष्ट्र सरकार के अनुसार मुआव्जा देने के बाद भी कंपनी डाल रही रोड़ा
Ahmedabad-Mumbai Bullet Train Project: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना को अमली जामा पहनाने की तैयारियों के बीच एक कंपनी ने बाधा डाल दिया है। इससे प्रोजेक्ट पर बेजवजह की देरी होने की आशंका बढ़ गई है। कंपनी ने इस मामले में रोड़ा बनते हुए इसे कोर्ट तक पहुंचा दिया है। इससे प्रोजेक्ट में विलंब होना तय माना जा रहा है। एक तरह से इस कंपनी ने सीधे पीएमओ को चुनौती दे दी है। आइए अब आपको हम बताते हैं कि पूरा मामला क्या है, जिसकी वजह से पीएम मोदी की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना अधर में फंसती दिख रही है।
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को बम्बई उच्च न्यायालय को बताया कि गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड ने अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए कंपनी के स्वामित्व वाली भूमि के अधिग्रहण में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें परियोजना के वास्ते भूमि अधिग्रहण के लिए राज्य सरकार द्वारा मुआवजा देने संबंधी 15 सितंबर, 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी। कंपनी ने अपनी याचिका में अनुरोध किया कि उच्च न्यायालय राज्य सरकार को मुआवजा देने की प्रक्रिया और कब्जे की कार्यवाही शुरू नहीं करने का निर्देश दे।
राज्य सरकार ने कंपनी के आरोपों को बताया निराधार
राज्य सरकार ने डिप्टी कलेक्टर (भूमि अधिग्रहण) जगतसिंह गिरासे द्वारा दायर अपने हलफनामे में कंपनी के आरोपों को ‘‘बेबुनियाद, निराधार, अनुचित और निराधार’’ करार दिया। इसने अदालत को यह भी बताया कि राज्य सरकार के अधिग्रहण निकाय ने 17 अक्टूबर को मुआवजे के रूप में लगभग 264 करोड़ रुपये की राशि पहले ही जमा कर दी है। राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने पीठ को बताया कि अभी तक जमीन पर कब्जा लेने के लिए कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है। अदालत ने इसके बाद मामले की अगली सुनवाई की तिथि 10 नवंबर तय की और कहा कि अगर और जब इस तरह का नोटिस जारी किया जाता है, तो वह याचिकाकर्ता कंपनी को अदालत का रुख करने के लिए उचित समय देगी।
कंपनी जानबूझकर पैदा कर रही बाधा
राज्य सरकार ने यह भी आरोप लगाया कि कंपनी ने ‘‘अधिग्रहण की कार्यवाही के हर चरण में अनावश्यक बाधाएं उत्पन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’’ हलफनामा में कहा गया, ‘‘प्रतिवादी प्राधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं कि परियोजना को निजी व्यक्तियों से बाधाओं का सामना न करना पड़े और यहां तक कि याचिकाकर्ता कंपनी की इच्छाओं को पूरा करने का भी प्रयास किया गया। फिर भी, याचिकाकर्ता की अनुचित मांगें उनके रुख के अनुसार लगातार बदल रही हैं और इससे परियोजना की लागत लगभग 1,000 करोड़ रुपये से अधिक बढ़ गई है।
बुलेट ट्रेन परियोजना पर खर्च होंगे कुल एक लाख करोड़ रुपये
राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में बुलेट ट्रेन परियोजना के महत्व पर जोर दिया और कहा कि अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड रेल कॉरिडोर परियोजना भारत सरकार की प्राथमिकता वाली परियोजना है। हलफनामे में कहा गया, ‘‘यह भारत की पहली हाईस्पीड रेल लाइन होगी और जनता के लाभ के लिए देश की यात्री परिवहन प्रणाली को अत्याधुनिक तकनीक के साथ बदल देगी।’’ इसमें कहा गया कि कार्यात्मक होने के बाद ट्रेन से प्रतिदिन 17,900 यात्रियों को लाभ होगा। हलफनामे में कहा गया, ‘‘परियोजना की कुल लागत लगभग 1 लाख करोड़ रुपये है। यह परियोजना अत्यधिक उच्च मूल्य की अत्यधिक विशेषीकृत और तकनीकी परियोजना है और इसे निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर पूरा करने की आवश्यकता है।
तीन वर्षों से कंपनी ने पैदा कर रखी है बाधा
राज्य सरकार ने कहा कि भूमि के अधिग्रहण संबंधी एक सौहार्दपूर्ण प्रस्ताव पर पहुंचने के लिए कई संवाद किये गए, लेकिन जब ये विफल हो गए, तो सरकार के पास कंपनी के स्वामित्व वाली वैकल्पिक भूमि के अधिग्रहण के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। बुलेट ट्रेन परियोजना के लिए उपनगरीय विक्रोली में कंपनी के स्वामित्व वाली जमीन के अधिग्रहण को लेकर कंपनी और सरकार 2019 से कानूनी विवाद में उलझे हुए हैं। मुंबई और अहमदाबाद के बीच कुल 508.17 किलोमीटर रेल पटरी में से लगभग 21 किलोमीटर भूमिगत होगी। भूमिगत सुरंग के प्रवेश बिंदुओं में से एक विक्रोली में (गोदरेज के स्वामित्व वाली) भूमि पर पड़ता है।