इलेक्टोरल बॉन्ड को बंद करवाने के पीछे कौन? इस NGO का है बहुत बड़ा हाथ
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक करार दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया है कि चुनावी बॉन्ड बेचने वाली बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया तीन हफ्ते में चुनाव आयोग के साथ सभी जानकारियां साझा करे।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को गैरकानूनी करार दिया है। अब कोई भी पार्टी इस माध्यम से चंदा नहीं ले पाएंगी। इसके साथ ही कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी साझा करने को कहा है। इसके साथ ही कोर्ट ने आयोग को 31 मार्च तक इससे जुड़ी सभी जानकरियां अपनी वेबसाइट पर साझा करने को कहा है। वहीं इस चुनावी बॉन्ड को बंद करवाने के पीछे एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) का बहुत बड़ा हाथ है।
बता दें कि एडीआर ही वह संस्था है, जिसने कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर याचिका दाकिल की थी। एनजीओ ADR चुनावी सुधार को लेकर कई तरह के काम कर रहा है। इस समय वोटिंग के दौरान जो NOTA का विकल्प आपको मिला है, वह भी इसी एनजीओ की ही देन है। इसके साथ ही उम्मीदवारों के चुनावी हलफनामें में अपनी संपत्ति और अपराधिक रिकॉर्ड का ब्यौरा भी इसी संस्थान के बदौलत भरा जाता है। इसके लिए एडीआर ने सुप्रीम कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की।
इससे कालाधन को मिल रहा था बढ़ावा- अनिल वर्मा
ADR के प्रमुख मेजर जनरल (रिटायर्ड) अनिल वर्मा ने इंडिया टीवी से बातचीत में बताया कि चुनावी बॉन्ड भारतीय राजनीतिक और चुनावी व्यवस्था पर बहुत बड़ा धब्बा था। इससे कालाधन को भी बढ़ावा मिल रहा था। वहीं इससे आरटीआई कानून का भी पालन नहीं हो पा रहा था। उद्योग घराने सरकार में बैठी पार्टियों को जमकर चंदा दे रहे थे और सरकारें उनके हित में काम करती थीं और वह यह जानकारी देने के लिए बाध्य भी नहीं थीं कि वह अपने दानकर्ता के बारे में बताएं।
अनिल वर्मा ने बताया कि हमने कोर्ट में याचिका दाखिल की तो इस विषय को प्रमुखता को रखा। इस मामले में चुनाव आयोग और आरबीआई का भी यही मानना था। ADR के याचिका दाखिल करने के बाद लेफ्ट पार्टियों और कांग्रेस ने भी कोर्ट में याचिका दाखिल की। वह कहते हैं कि चुनावी बॉन्ड रद्द होने से अब चंदा देने की प्रक्रिया में कुछ पारदर्शिता आएगी और पार्टियों को बताना होगा कि वह किससे और कितना चंदा ले रही हैं।
चुनाव से पहले लोगों को मिल जाएगी जानकारी
वहीं ADR ने कोर्ट के फैसले और उसमें समय को लेकर दिए निर्देशों की भी तारीफ़ की। अनिल वर्मा ने बताया कि कोर्ट ने अपने आदेश में स्टेट बैंक को बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारियां तीन हफ़्तों में साझा करने को कहा है। इसके साथ ही चुनाव आयोग को भी बॉन्ड की सभी जानकारियां 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर साझा करने को कहा है। वह कहते हैं कि उम्मीद है कि मार्च में लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाए और अप्रैल से चुनाव शुरू हो जाएं। इससे पहले ही मतदाताओं को मालूम हो जायेगा कि किसने किस पार्टी को और कितना चंदा दिया है।
क्या है चुनावी बॉन्ड स्कीम?
केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 से इस योजना को लागू किया था। इस योजना के तहत भारत का कोई भी नागरिक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के ब्रांच से इसे खरीद सकता था। इसके साथ ही कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉण्ड खरीद सकता है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत ऐसे राजनीतिक दल चुनावी बॉण्ड के पात्र हैं। शर्त बस यही है कि उन्हें लोकसभा या विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों। चुनावी बॉण्ड को किसी पात्र राजनीतिक दल द्वारा केवल अधिकृत बैंक के खाते के माध्यम से भुनाया जाएगा।
एसबीआई इन बॉन्ड को 1,000, 10,000, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपए के समान बेचता है। इसके साथ ही दानकर्ता दान की राशि पर 100% आयकर की छूट पाता था। इसके साथ ही इस नियम में राजनीतिक दलों को इस बात से छूट दी गई थी कि वे दानकर्ता के नाम और पहचान को गुप्त रख सकते हैं। इसके साथ ही जिस भी दल को यह बॉन्ड मिले होते हैं, उन्हें वह एक तय समय के अंदर कैश कराना होता है।