NDA में 38 पार्टियों का मोदी के नेतृत्व में लड़ने का ऐलान, प्रधानमंत्री ने की लोकसभा चुनाव की तस्वीर साफ
एनडीए के खेमे में 38 राजनीतिक दलों ने नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व फेस पर एक साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। पीएम मोदी ने कहा कि NDA मजबूरी वाला नहीं बल्कि मज़बूती वाला गठबंधन है।
नई दिल्ली: 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक शंखनाद हो चुका है। दिल्ली से लेकर बेंगलुरू तक शक्ति प्रदर्शन का सिलसिला चलता रहा। दिल्ली में एनडीए के खेमे में 38 राजनीतिक दलों ने एक सुर से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में मिल कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में विपक्षी एकता पर जमकर हमला बोला है। पीएम मोदी ने कहा कि NDA मजबूरी वाला नहीं बल्कि मज़बूती वाला गठबंधन है। एनडीए में कोई छोटा बड़ा नहीं है। पीएम ने विपक्षी एकता पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट, और केरल में लेफ्ट और कांग्रेस एक दूसरे के खून के प्यासे हैं लेकिन बेंगलुरू में दोस्ती दिखा रहे हैं। पीएम ने कहा कि विपक्षी एकता छोटे-छोटे दलों के स्वार्थ का गठबंधन है जो किसी भी कीमत पर केवल सत्ता हासिल करना चाहते हैं।
NDA बनाम 'INDIA' होगी चुनावी लड़ाई
मंगलवार को दो खेमों की कश्मकश को पूरे देश ने देखा। बेंगलुरु में विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन को इंडिया नाम दे दिया तो दिल्ली में हुए शक्ति प्रदर्शन में 38 पार्टियों के साथ NDA ना केवल आगे निकला, बल्कि उनके नेता के तौर पर नरेन्द्र मोदी के नाम का ऐलान हो गया। दिल्ली में हुई बैठक में NDA की तरफ से प्रस्ताव महाराष्ट्र के सीएम और शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने रखा जबकि AIADMK से के पलानीस्वामी और असोम गण परिषद के अरुण बोहरा ने समर्थन किया। NDA के प्रस्ताव में कहा गया कि एनडीए के घटक दल पूरी तरह एकजुट और प्रतिबद्ध हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस विकास यात्रा में भागीदार के रूप में हम एक हैं, हम एकजुट हैं और हम एकमत हैं। मोदी के नेतृत्व में 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे लोगों से जो आशीर्वाद मिला, वह 2019 के आम चुनाव में कई गुना बढ़ गया। विपक्ष पहचान और प्रासंगिकता के संकट से गुजर रहा है। भारत ने विपक्ष की ओर से फैलाए गए झूठ और अफवाहों को खारिज किया है और एनडीए में भरोसा जताया है।
सीट शेयरिंग पर कोई फैसला नहीं कर सके विपक्षी दल
प्रधानमंत्री मोदी ने NDA की मीटिंग में 50 फीसदी से ज्यादा वोट पाने का दावा किया और इस दावे के पीछे अपने तर्क दिए। लेकिन बेंगलुरु में विरोधी दलों ने जो दावे किए उसके लिए वो कोई ठोस तर्क नहीं दे सके। उसकी वजह भी है, वजह ये कि विरोधी दल मोदी विरोध में एक मंच पर आ तो गए लेकिन सीट शेयरिंग पर कोई फैसला नहीं कर सके। वो ये भी तय नहीं कर सके हैं कि सालों से एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले अब एक-दूसरे में अपने वोट कैसे ट्रांसफर कराएंगे। मतलब ये कि विरोधी दलों के गठबंधन INDIA के सामने चैलेंज सिर्फ मोदी नहीं, बल्कि कई दूसरे चैलेंज भी हैं जिन्हें पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा।
बेंगलुरु की मीटिंग में जीतेगा इंडिया और चक दे इंडिया के नारों के बीच कोआर्डिनेशन कमेटी बनाने, दिल्ली में गठबंधन का दफ्तर बनने और कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने पर सहमति तो बन गई लेकिन सबसे जरूरी सीट शेयरिंग पर कोई बात नहीं हुई। NDA में सीट शेयरिंग उतना बड़ा मसला नहीं है क्योंकि वहां बीजेपी अकेले अपने दम पर ही 300 से ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी है, लेकिन INDIA में ये बड़ी समस्या है। यहां सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी कांग्रेस सिर्फ 52 सीटें ही जीत पाई थी, ऐसे में राहुल का NDA को हराने का दावा कितना मजबूत है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
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