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Hindi News भारत राष्ट्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 'आप की अदालत' में कहा, 'आप हमारे बजट को लोकप्रिय कह सकते हैं लेकिन लोकलुभावन नहीं'

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 'आप की अदालत' में कहा, 'आप हमारे बजट को लोकप्रिय कह सकते हैं लेकिन लोकलुभावन नहीं'

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट को लेकर उन आलोचनाओं को खारिज कर दिया जिसमें कहा जा रहा है कि किसानों और समाज के गरीब तबकों के वोट को ध्यान में रखकर यह बजट पेश किया गया है।

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नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट को लेकर उन आलोचनाओं को खारिज कर दिया जिसमें कहा जा रहा है कि किसानों और समाज के गरीब तबकों के वोट को ध्यान में रखकर यह बजट पेश किया गया है। शनिवार रात इंडिया टीवी पर प्रसारित हुए  शो 'आप की अदालत' में रजत शर्मा के सवालों का जवाब देते हुए जेटली ने कहा, 'कई बार अच्छी इकोनॉमिक्स अच्छी राजनीति भी हो सकती है और यह आवश्यक नहीं है कि दोनों का अंतरविरोध हो। यह स्वाभाविक है कि अच्छी आर्थिक नीति वही है जिसमें कि समाज के जिन वर्गों को सरकार की सबसे अधिक सहायता की आवश्यकता है, आप उसको दीजिए। और वह वर्ग अगर उठता है, अगर उसकी आर्थिक क्षमता बढ़ती है, तो पूरी अर्थव्यवस्था को उसका लाभ होता है..उसका राजनीतिक परिणाम भी हो सकता है। पॉपुलिस्ट और पॉपुलर में बहुत अंतर होता है...पॉपुलिस्ट वो होता है, जो केवल सस्ती लोकप्रियता के लिए किया जाए। पॉपुलर वो होता है, जिसका आधार भी मजबूत हो और लोगों को स्वीकृत भी हो।

जब इस बात का जिक्र किया गया कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों में किसानों ने हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी का समर्थन नहीं किया, इस वजह से सरकार को किसानों के हित का बजट पेश करने के लिए बाध्य होना पड़ा, जेटली ने कहा, 'ये वास्तविकता नहीं है, लेकिन मान लीजिए आपका ये आरोप सच है, तो यह तो लोकतंत्र में अच्छी बात है। अगर जनता ने कोई संदेश दिया है, उस पर सोचना-समझना और उसके अनुकूल कार्य करना चाहिए। आज कारण क्या था..देश के वो हिस्से थे, जहां किसान की आय बहुत कम थी, वहां पानी पहुंचा, फसल ज्यादा हो गई, उसको खरीदने वाले लोग नहीं थे इसलिए दाम नहीं मिल रहा था। अगर राजनीतिक व्यवस्था को किसान यह संदेश भेजता है कि मुझे अपनी फसल का दाम मिलना चाहिए और राजनीतिक व्यवस्था उसके अनुकूल नीति बनाती है, तो लोकतंत्र में ये सही तकाजा है। बजाय इसके कि ये कहें आपका संदेश हमको मिल गया, हम उसकी परवाह नहीं करते हैं। आपको रिस्पॉन्सिव होना पड़ता है।'

वित्त मंत्री ने कहा, 'देखिए, - देखिए, इसमें पूरा एक मैकेनिज्म है भारत सरकार में, जो कृषि उद्योग की जितनी भी चीजें है, उसका मूल्य तय करता है। एक पूरी संस्था है, वो बहुत प्रोफेशनल आधार पर चलती है। उसके इनपुट कॉस्ट कितने हैं, वो केवल लोकप्रियता पर तय नहीं करते, वो आर्थिक आधार पर उसकी कीमत निकालते हैं। उसमें एग्रीकल्चरल इकोनॉमिस्ट होते हैं, अन्य अनुभवी लोग होते हैं, वो बैठकर उसको निकालते हैं।'

कुल लागत पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के डॉ. एम.एस स्वामीनाथन कमीशंस की रिपोर्ट पर जेटली ने कहा, - 'स्वामीनाथन ने तो सिफारिश कई वर्ष पहले की थी। उसके बाद सरकारों की आर्थिक क्षमता की भी एक सीमा होती है। एक युग वो था, जब इस देश में फसल बहुत कम होती थी। आज हमारी समस्या ज्यादा की है। जो चीजें अधिक पैदा कर रही हैं, उसका दाम गिर जाता है, तो हम कैसे ये सुनिश्चित करें कि किसान को अच्छा समर्थन मूल्य मिल जाए। उसका असर क्या होता है। केवल किसान के घर की समस्या हल नहीं होती कि उसके पास पैसा आता है। आज जो समाज में असमानता है, उसमें स्वाभाविक है कि ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है। इसलिए आप अगर वहां के जीवन स्तर को सुधार सकते हैं फॉर्म और नॉन फॉर्म इनकम दोनों के माध्यम से तो जो शहर की बड़ी-बड़ी कंपनियां सामान भी बनाती है, तो उसकी खरीदारी करने वाले मिलते हैं। जो आपने कहा कि इकोनॉमिक्स का पॉलिटिक्स से संबंध क्या है...इससे अगर अच्छी इकोनॉमिक्स होती है, किसान उसमें संतुष्ट होता है, रूरल डिमांड बढ़ती है, तो उसका अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। 

किसान संगठनों की तरफ से यह सवाल उठाए जाने पर कि सरकार जानबूझकर वास्तविक लागत को कम दिखा देगी, जेटली ने कहा, 'कोई भी डेमोक्रेसी अविश्वास के आधार पर नहीं चल सकती। अगर कोई भी सरकार इस तरह की बात करती है, तो सरकारों की जवाबदेही बहुत ज्यादा होती है। आप सरकारों को अदालत में खड़ा कर देते हो। मीडिया रोज खड़ा कर देता है। संसद के सामने जवाबदेही होती है और चुनाव होते हैं। तो इसलिए सरकारों की जवाबदेही होती है। केवल यही करना कि फिगर्स में हेराफेरी कर दो और कह दो कि दाम बहुत कम है और थोड़ा सा दाम दे दो, एक-आध बार आप ऐसी हरकत कर सकते हो, लेकिन दूसरी बार आपको अवसर नहीं मिलेगा। यह एक पारदर्शी प्रक्रिया है, जिसमें किसान को एक अच्छी आमदनी हो, इसका उद्देश्य यही है।

वित्त मंत्री ने कहा कि नया न्यूनतम समर्थन मूल्य वास्तविक लागत मू्ल्य का डेढ़ गुना होगा और इस साल जब अप्रैल में गेहूं की फसलें आएंगी तो इसे लागू किया जाएगा। .'ये फसल पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश में आएगी। इसमें दो राज्य ऐसे हैं, जिनमें कोई चुनाव नहीं है। इसलिए स्वाभाविक है कि हम लोगों को इन राज्यों में ही इसका पहला अनुभव करके दिखलाना पड़ेगा।'

जेटली ने कृषि के लिए लोन माफी की मांग को खारिज करते हुए कहा कि वह एक 'बैड इकोनॉमिक्स' था। 'उनकी पार्टी तो 55-60 साल सरकार में रही। उनको लगता था कि उस वक्त बहुत अच्छा दाम मिला करता था...लेकिन वो जो नहीं कर पाए, वो आज हो रहा है। ये उसी का बैकलॉग चला आ रहा है कि इस देश के अंदर accumulated backwardness इन क्षेत्रों के अंदर है। कभी -कभी उनको (राहुल गांधी) अपनी सरकारों की ऑडिट लेना चाहिए। उनके परिवार के लोगों ने जो सरकारें चलाई हैं और जो नारे लगाए थे वह पूरे किए होते तो शायद पचास साल पहले इस देश से गरीबी हट चुकी होती।

'देखिए, एक बार कर्ज माफ कर दो और अगले साल की फसल पर किसान को फिर कर्ज लेना पड़ जाएगा। क्या देश की अर्थव्यवस्था इस प्रकार की नीतियों के साथ चलेगी? आप व्यवस्था ऐसी बना दो रूरल इंफ्रास्ट्र्क्चर के माध्यम से...फार्म इनकम, नॉन फार्म इनकम को बढ़ाकर, मछली पालन, डेरी फार्मिंग की इनकम। बजट के अंदर बांस से लेकर मछली पालन, दूध तक, गाय तक आमदनी के जो अलग-अलग जरिए किसान के हो सकते हैं। जैसे तीन सब्जियां हैं, ज्यादा आती हैं, तो किसान को सड़क पर फेंकनी पड़ती है...टमाटर, आलू, प्याज...इनकी कमी आती है, तो सौ रुपए किलो कीमत बढ़ जाती है। अब 60 साल उन्होंने (कांग्रेस) तो कोई व्यवस्था नहीं बनाई..लेकिन हमने पहली बार पैसा दिया है और व्यवस्था बनाई।

जेटली ने कहा, 'मैंने तीन साल पहले जो मुद्रा योजना शुरू की थी, उसमें 74 परसेंट जिन लोगों को लोन दिए गए...एससी, एसटी और वो भी महिलाएं। सेल्फ इंटरपेन्योर बनाने की सबसे सफल योजना वो थी। इस बजट में भी मैंने प्रावधान रखा कि वो जो ईपीएफ में योगदान देंगी, वो चार परसेंट कम कर दिया...ताकि महिला रोजगार को प्रोत्साहन मिले। पिछले साल टेक्सटाइल मिनिस्ट्री को इनसेंटिव देने के लिए साढ़े 6 हजार करोड़ रुपए गारमेंट इंडस्ट्री को दिया था, जिसमें महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है। इस बार फिर साढ़े 7 हजार करोड़ के करीब दिया।'

वित्त मंत्री ने कहा कि घरेलू शौचालयों की संख्या में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा, ‘2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत में टॉयलेट बनाने की मुहिम प्रधानमंत्री ने शुरू की थी। उस दिन 36 पर्सेंट घरों में टॉयलेट थे, आज 76 पर्सेंट हैं, तो साढ़े तीन साल में 40 पर्सेंट उसको बढ़ाया है। इस साल फिर पैसा दे रहा हूं कि 2 करोड़ और बनें इस साल और ये संख्या आगे बढ़े। महिला सशक्तिकरण पर सबसे अधिक असर पड़ता है ग्रामीण इलाकों में, तो इन योजनाओं का पड़ता है। इसका तो वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध है, चाहें किसी की भी सरकार हो, लेफ्ट की, कांग्रेस की हो या किसी रीजनल पार्टी की, जिले के बाद जिले और गांव के बाद गांव ‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित किए जा रहे हैं।

जेटली ने गुरुद्वारों में चलाए जा रहे ‘लंगर’ पर GST लगाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा, ‘बिलकुल नहीं लगा, ये भी सोशल मीडिया कैंपेन था। GST लगता है उस प्रॉडक्ट पर, जो बेचा जाता है। सिख धर्म की महानता ये रही है कि जो गुरु परंपरा थी, उसके तहत कोई आदमी भूखा न मरे, इसलिए हर गुरुद्वारे में मुफ्त में खाना खा सके। वो बिकता नहीं है, इसलिए उस पर GST नहीं लगता। अब उस पर आटा लगता है, चावल लगता है, उस पर तो GST नही हैं। लेकिन कोई कहे कि मंदिर के लिए घी खरीद रहा हूं, तो GST माफ कर दो, मुझे क्या पता कि आप मंदिर के लिए खरीद रहे हो या हल्दीराम की दुकान के लिए। जब गुरुद्वारे, मस्जिद या मंदिर की बिल्डिंग बनी थी, तो जो सीमेंट लगा था, उस पर एक्साइज ड्यूटी लगी थी ना। क्योंकि मंदिर में प्रसाद या गुरुद्वारे में लंगर बिकता नहीं है, इसलिए इस पर कोई GST नहीं है।’

वित्त मंत्री ने खुलासा किया कि पब्लिक पर नीति आयोग द्वारा बजट के पहले किए गए प्रेजेंटेशन के दौरान राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा योजना को यूनिवर्सल बनाने का प्रस्ताव किया गया था। उन्होंने कहा, ‘नीति आयोग में जो पब्लिक हेल्थ के एक्सपर्ट हैं, जब उन्होंने पीएम और मुझे प्रेजेंटेशन दी, तो उन्होंने आरंभ में ये कल्पना की थी कि यूनिवर्सल हो, कि दुनिया के इतने देश हैं, जो ये आकांक्षा रखते हैं। इस साल शायद हम पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएं, इसलिए इस पर सोचना शुरू करें, ये उनका उद्देश्य था। हर परिवार में कोई हर साल हॉस्पिटल नहीं जाता, लेकिन जीवन में कभी एक या दो सदस्यों को जाना पड़ जाए, तो प्राइवेट हेल्थ सिस्टम की जो कॉस्ट है, वो अफोर्ड कर पाना बहुत कम लोगों के लिए सीमित होता है और सरकारी अस्पतालों में भीड़ होती है। इसलिए हम लोगों ने प्रयोगात्मक तौर पर कहा कि इसे आंरभ करें 40 प्रतिशत आबादी के साथ, जो 10करोड़ परिवार हैं। आर्थिक आधार पर इसकी एक सूची है। इसमें ट्राइबल होंगे, दलित होंगे, अल्पसंख्यक होंगे। इसके प्रीमियम पर होने वाले खर्चे का अंदाजा लिया जा रहा है। कुछ लोग कहते हैं कि 6-7 हजार करोड़ आएगा, कुछ कहते हैं 10 हजार करोड़ रुपये तक जाएगा। जो एक फेल सरकार के फेल प्रतिनिधि हैं, उसके ऊपर टिप्पणी करना आवश्यक नहीं है (चिदंबरम की पतंग वाली टिप्पणी पर), लेकिन अगर 24-25 लाख करोड़ के बजट में से इसके लिए नॉमिनल अमाउंट में मैं 2,000 करोड़ रुपये रख रहा हूं और इसके लिए जितने साधन चाहिए होंगे, वो मैं दूंगा।’

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स पर 10 प्रतिशत टैक्स लगाने पर वित्त मंत्री ने कहा, ‘ये जो दो योजनाओं पर आप विशेष पूछ रहे हैं मुझसे, एक MSP पर और एक हेल्थेकयर पर, मैंने इस बार एक टैक्स लगाया है, जिसको लेकर स्टॉक मार्केट में एक बहस भी है, लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन। ये क्या है, मैं इसके साथ जोड़कर आपको बताता हूं। जो व्यक्ति शेयर मार्केट में ट्रांजैक्शन करते हैं, जो खरीदते है-बेचते हैं और पहले एक साल में मुनाफा कमा लेते हैं, उन पर 15 पर्सेंट टैक्स लगता है, लेकिन जो एक साल से ज्यादा रखते थे, लॉन्ग टर्म रखने के बाद बेचते थे, उनको टैक्स से मुक्त किया हुआ था। इसमें कौन लोग हैं, वे छोटे निवेशक नही हैं, इसलिए मैंने कहा कि जो 1 लाख रुपये तक कमाएगा, उस पर टैक्स नहीं लगेगा। लेकिन इसमें फॉरेन फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशंस हैं, लॉर्ज कॉर्पोरेट्स हैं। पिछले साल जो छूट मिली, 3 लाख 67 हजार करोड़ रुपये। हर सरकार डरती थी और जो समाज के सबसे अमीर लोग हैं, वे ये पैसा कमा रहे थे और उनको टैक्स से पूर्ण मुक्ति थी। आप इस पर टैक्स लगाओगे, दो-चार दिन के लिए बाजार में उथल-पुथल होगी, लेकिन हिम्मत नहीं थी। हमारा सौभाग्य है कि प्रधानमंत्री को मुश्किल निर्णय लेने में आनंद भी आता है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे अब लॉजिक क्या है, आज जब बाजार 36 हजार पर पहुंचा हुआ है, तो आज नहीं लगाओगे, तो कब लगाओगे।’

जब रजत शर्मा ने बताया कि स्टॉक मार्केट सेंसेक्स में 800 अंकों से ज्यादा की गिरावट आई है, जेटली ने जवाब दिया, ‘ठीक है, मुझे लगता है कि अगर वो एक कॉस्ट है, जो उससे कलेक्शन होगा, वो अपने आप में इन दोनों बड़ी योजनाओं को फंड करने के लिए पर्याप्त है। आज तक क्या आर्थिक प्लानिंग थी, हमने उसको छोड़ा हुआ था। 3 लाख 67 हजार करोड़ का 10 पर्सेंट आ जाए, तो वो देश में यू्निवर्सल हेल्थकेयर के लिए बहुत पर्याप्त है, लेकिन जो आलोचना कर रहे हैं, उनके तो हाथ कांपते थे, ऐसे निर्णय लेते हुए।’

यही तो मैं पूछ रहा हूं कि आपमें और प्रधानमंत्री में हिम्मत कहां से आ गई? रजत शर्मा के इस सवाल के जवाब में जेटली ने कहा, ‘मैं ये कहूंगा प्रधानमंत्री जी के बारे में कि कठिन निर्णय लेना और कई बार कठोर निर्णय लेना भी, उसमें रिस्क भी होता है, उसकी क्षमता उनमें हैं। आज कुछ लोग कहेंगे कि बाजार हजार-दो हजार प्वॉइंट नीचे होगा, लेकिन बाजार तो ऊपर-नीचे तो होता रहता है, पंद्रह दिन बाद दोबारा उठ सकते हैं। लेकिन क्या अमीर पर टैक्स न लगाएं और कहें कि हमारे पास साधन नहीं है।’

यह पूझे जाने पर कि हेल्थकेयर स्कीम को लागू करने के लिए सरकार को डॉक्टर और अस्पताल कहां से मिलेंगे, जेटली ने जवाब दिया, ‘पिछले 15-20 साल में जो हॉस्पिटल नेटवर्क बना है, उसमें टियर-1, टियर-2 शहरों के आसपास ज्यादा अस्पताल बने हैं। आज जरूरत ये है कि छोटे शहरों में जिलों में 4-5 सौ बेड के हॉस्पिटल हो। एक बार अगर फंडिंग मैकेनिज्म तय हो जाता है, तो ये तो सेवा भी है, व्यवसाय भी है हॉस्पिटल के लिए।’

वित्त मंत्री अरुण जेटली के साथ 'आप की अदालत' का प्रसारण इंडिया टीवी पर शनिवार रात 10 बजे हुआ। इस शो को 4 फरवरी, रविवार सुबह 10 बजे और रात 10 बजे फिर से प्रसारित किया जाएगा।

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