जिनेवा. World Health Organisation ने कहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण के इलाज के लिये रोगमुक्त हो गए लोगों के प्लाज्मा का इस्तेमाल अब भी एक 'प्रायौगिक' थेरेपी के तौर पर देखा जा रहा है और इसके जो प्रारंभिक परिणाम आये हैं उससे यह पता चलता है कि यह अभी 'अनिर्णायक' है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि पिछली सदी में विभिन्न संक्रामक बीमारियों के इलाज के लिये बीमारी से उबरे लोगों के प्लाज्मा का इस्तेमाल किया गया था और इसका परिणाम मिला जुला रहा था। स्वामीनाथन ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन प्लाज्मा थेरेपी को अब भी प्रायोगिक ही मानता है, और इसका लगातार मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
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सौम्या ने कहा कि इस उपचार को मानकीकृत करना कठिन है क्योंकि लोगों में अलग अलग स्तर का एंटीबॉडी बनता है और प्लाज्मा केवल उन्हीं लोगों से लेना होता है जो बीमारी से ठीक हो चुके हैं । उन्होंने कहा कि छोटे स्तर पर अध्ययन हुए हैं और इनसे निम्न कोटि के साक्ष्य मिले हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ ब्रूस एलवार्ड ने कहा कि प्लाज्मा थेरेपी के अनेक दुष्प्रभाव हो सकते हैं जिनमें हल्का बुखार और सर्दी से लेकर फेफड़ा संबंधी गंभीर बीमारी शामिल है।
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