नई दिल्ली. ईवीएम से पार्टियों के चुनाव चिह्न् हटाने से लोकतांत्रिक राजनीति को नई दिशा मिलेगी। इससे राजनीति में साफ-सुथरी छवि के लोगों के आने का न केवल रास्ता खुलेगा बल्कि वे अपने दम पर चुनाव जीत भी सकेंगे। भारतीय जनता पार्टी के नेता और जाने-माने वकील अश्वनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हलचल मचा दी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से ईवीएम से राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न् हटाने की मांग के पीछे दस अहम कारण गिनाए हैं।
अश्वनी उपाध्याय का कहना है कि जब एक साफ-सुथरी छवि का प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव लड़ता है और दूसरी तरफ कोई दागी प्रत्याशी किसी बड़े दल के सिंबल से चुनाव लड़ता है तो समान प्रतियोगिता नहीं हो पाती। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है। सिंबल के कारण दागी प्रत्याशियों को भारी तादाद में ऐसे लोगों को वोट मिल जाता है, जो उसके चाल-चरित्र से वाकिफ नहीं होते। ऐसे में चुनाव चिन्ह हटाने से पार्टी देखकर नहीं बल्कि व्यक्ति देखकर लोग वोट देंगे।
भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि जब उन्हें एडीआर की रिपोर्ट से पता चला कि इस वक्त 43 प्रतिशत सांसद आपराधिक पृष्ठिभूमि के हैं तो उन्होंने ऐसे लोगों के जीतने के कारणों की पड़ताल की। पता चला कि बड़ी पार्टियों के टिकट हथिया लेने के कारण उनके समर्थकों के एकमुश्त वोट से दागी प्रत्याशी जीत गए।
अश्वनी उपाध्याय ने IANS से कहा कि भारत का लोकतंत्र सात तरह के संकटों से जूझ रहा है। करप्शन, क्रिमिनलाइजेशन, जातिवाद, संप्रदायवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद और भाई-भतीजावाद से तभी मुक्ति मिलेगी, जब राजनीति में सुधार होगा। इसके लिए ईवीएम से चुनाव चिह्न् हटना जरूरी है।
ईवीएम से सिंबल हटने के दस लाभ
- इससे वोटर्स को बुद्धिमान और ईमानदार जनप्रतिनिधियों को चुनने में मदद मिलेगी।
- बगैर चुनाव चिह्न् के ईवीएम और बैलट से चुनाव पर न केवल जातिवाद और सांप्रदायवाद की समस्या खत्म होगी, बल्कि लोकतंत्र में कालाधन का इस्तेमाल भी रुकेगा।
- इससे पार्टियों की तानाशाही रुकेगी। टिकट बंटवारे में खेल नहीं होगा। पार्टी प्रमुख, उन उम्मीदवारों को टिकट देने को मजबूर होंगे, जिनकी क्षेत्र में अच्छी पहचान होगी।
- चुनाव चिह्न् के धंधे पर रोक लगेगी। इससे देश का लोकतंत्र राजनीतिक दलों के प्रमुखों का निजी जागीर नहीं बनेगा।
- बैलट और ईवीएम पर सिंबल न होने से राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा। टिकट दिलाने में सत्ता के दलालों पर अंकुश लगेगी।
- सिंबल व्यवस्था बेअसर होने से समाजिक कार्यकतार्ओं और ईमानदारों लोगों का राजनीति में आना आसान हो जाएगा।
- अच्छे, कर्मठ और ईमानदार जनप्रतिनिधियों के संसद और विधानसभाओं में जाने से जनहित में अच्छे कानूनों का निर्माण संभव होगा।
- ईमानदार सांसद, जब संसद में पहुंचेंगे तो अपनी निधि का सही तरह से इस्तेमाल करेंगे।
- इससे भाषावाद और क्षेत्रवाद पर भी अंकुश लगेगा। जो कि लोकतांत्रिक राजनीति के लिए सबसे बड़े खतरे हैं।
- अगर सही लोग चुनकर सदन में पहुंचेंगे तो देश में लंबे समय से लंबित इलेक्शन, जुडिशियल, एजूकेशन, प्रशासनिक आदि सुधार जल्द से जल्द हो सकेंगे।
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