मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल बिजली गिरेगी। तब से हर साल इस किले पर बिजली गिरती आ रही है। इस कारण किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।
भूगर्भशास्त्री ग्रामीणों की इस मान्यता से सहमत नहीं हैं। किले पर शोध कर चुके जाने-माने भूगर्भशास्त्री नितीश प्रियदर्शी इसके दूसरे ही कारण बताते हैं। उनके मुताबिक, यहां मौजूद ऊंचे पेड़ और पहाड़ों में मौजूद लौह अयस्कों की प्रचुरता दोनों मिलकर आसमानी बिजली को आकर्षित करने का एक बहुत ही सुगम माध्यम उपलब्ध कराती है। इस कारण बारिश के दिनों में यहां अक्सर बिजली गिरती है।
बहरहाल ग्रामीणों की मान्यता और भूगर्भशास्त्रियों की शोध के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन कई लोगों के लिए आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि यह किला जब दशकों तक आबाद रहा, तब क्यों नहीं बिजलियां गिरी थी? उस समय तो और ज्यादा पेड़ और लौह अयस्क रहे होंगे।
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