राजस्थान: जानिए कौन हैं आपके मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री, अशोक गहलोत और सचिन पायलट की 'राजनीतिक कुंडली'
17 तारीख को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट शपथ लेंगे। लेकिन, उनके शपथ लेने से पहले आप कम से कम उनके बारे में कुछ जरूरी बातें तो जान लीजिए।
17 तारीख को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट शपथ लेंगे। लेकिन, उनके शपथ लेने से पहले आप कम से कम उनके बारे में कुछ जरूरी बातें तो जान लीजिए। ताकी आप ये समझ सकें कि आपके होने वाले नए मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री हैं कौन?
मुख्यमंत्री होंगे अशोक गहलोत, स्कूल के दिनों में दिखा चुके हैं जादूगरी के तमाशे
कांग्रेस पार्टी ने शुक्रवार को आखिरकार जादूगर पिता के पुत्र अशोक गहलोत को राजस्थान का नया मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लिया। यह फैसला न तो आसान था और न ही जल्दबाजी में हुआ। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कार्यकर्ताओं, विधायकों व पर्यवेक्षकों के साथ लंबे विचार विमर्श के बाद अंतत: जमीनी नेता की छवि रखने वाले गहलोत पर विश्वास जताया।
राजस्थान की राजनीति के जातीय मिथकों को तोड़कर शीर्ष तक पहुंचे गहलोत को राज्य के शीर्ष नेताओं में से एक माना जाता है। वह तीसरी बार मुख्यमंत्री बन रहे हैं और अब तक की उनकी छवि 'छत्तीस कौमों' यानी समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाले नेता की रही है।
स्कूली दिनों में जादूगरी करने वाले गहलोत को ‘राजनीति का जादूगर’ भी कहा जाता है जो कांग्रेस को विकट से विकट हालात से निकाल लाते रहे हैं। अपनी इसी खासियत व निष्ठा के चलते वह गांधी परिवार के बहुत करीबी माने जाते हैं और जरूरत पड़ने पर पार्टी ने उन्हें कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी हैं।
दरअसल साल 2013 के विधानसभा और फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बावजूद गहलोत ने राज्य में कांग्रेस की प्रासंगिकता न केवल बनाए रखी बल्कि उसे नये सिरे से खड़ा होने में बड़ी भूमिका निभाई। इस बार राज्य के विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस बहुमत के जादुई आंकड़े के पास पहुंची तो उसमें गहलोत की राजनीतिक सूझबूझ व कौशल का बड़ा योगदान माना गया है।
पिछले कुछ समय से कांग्रेस के महासचिव (संगठन) का पदभार संभाल रहे गहलोत को जमीनी नेता और अच्छा संगठनकर्ता माना जाता है। मूल रूप से जोधपुर के रहने वाले गहलोत (67) 1998 से 2003 और 2008 से 2013 तक राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। गहलोत पहली बार 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। उस समय कांग्रेस को 150 से ज्यादा सीटें मिली थीं और गहलोत पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष थे। तब परसराम मदेरणा नेता प्रतिपक्ष थे। उस समय भी पार्टी आलाकमान ने गहलोत पर भरोसा जताया था।
दूसरी बार दिसंबर 2008 में कांग्रेस फिर सत्ता में लौटी। उस समय भी कई नेता मुख्यमंत्री पद की होड़ में थे। अंतत: जीत गहलोत की ही हुई थी और वह मुख्यमंत्री बने। तीन मई 1951 को जन्मे गहलोत ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1974 में एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में की थी। वह 1979 तक इस पद पर रहे। गहलोत कांग्रेस पार्टी के जोधपुर जिला अध्यक्ष रहे और 1982 में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने।
उसी दौरान 1980 में गहलोत सांसद बने। इसके बाद वे लगातार पांच बार जोधपुर से सांसद रहे। गहलोत ने 1999 में जोधुपर की ही सरदारपुरा सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और लगातार पांचवीं बार वहां से जीते हैं। वह केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं तथा पार्टी के संगठन में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं।
उप मुख्यमंत्री होंगे सचिन पायलट, फारूक अब्दुल्ला के हैं जमाई, जानिए राजनीतिक सफर
राजनीति में वंशवाद से उपजा एक युवा, आज अपना जनाधार खड़ा कर चुका है। जिस दौर में कांग्रेस एक-एक कर तमाम राज्यों से गायब हो रही थी उसी दौर में वो युवा राजस्थान कांग्रेस का नायक बन गया। नाम है- सचिन पायलट। पायलट सिर्फ कांग्रेस के ही नायक नहीं बने हैं, इससे पहले वो अपनी लव स्टोरी के नायक भी हैं। जिस देश में आए दिन धर्म और जातियों के नाम पर तलवारें खिंचती हों और तमाम मोहब्बत की कहानियों जातिवाद की स्याह अंधेरों संकरी गलियों में दम तोड़ देती हों, उसी देश में पायलत ने अपनी प्रेम कहानी को पंख लगाए।
15 जनवरी 2004, दुल्हन का नाम- सारा अब्दुल्ला, पिता का नाम- फारूक अब्दुल्ला, दूल्हे का नाम- सचिन पायलट, पिता का नाम, राजेश पायलट, मंडप की जगह- कांग्रेस सांसद रमा पायलट का घर। शादी हो गई, लेकिन वधू पक्ष की ओर से कोई शादी में नहीं पहुंचा। सारा के पिता फारूक अब्दुल्ला लंदन में थे, उमर अब्दुल्ला अंपेडिसाइटस का इलाज दिल्ली के बत्रा हास्पिटल में करा रहे थे। लेकिन, क्या फर्क पड़ता है? प्यार के पंछी एक दूसरे के सहारे ही जीवन बिता दिया करते हैं, फिर ये तो शुरुआत थी। दोनों की पहली मुलाकात लंदन में एक पारिवारिक क्रार्यक्रम के दौरान हुई थी।
खैर ये तो पायलट के प्रेम की बातें थी। अब राजनीति की बात भी हो जाए। पायलट यहां भी नायक ही सिद्ध हुए हैं। अमेरिका में पेंसिलवानिया विश्वविद्यालय के व्हॉर्टन स्कूल से MBA करने वाले पायलट ने बिजनेस मैनेजमेंट कितना सीखा और कितना नहीं, इसे छोड़ दीजिए। लेकिन, ये तय हो गया है कि वो पॉलिटिक्स को मैनेज करना बखूबी सीख गए हैं।
लगता है कल की ही तो बात थी जब सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट अपना 57वां जन्मदिन मना रहे थे। बेटा अमेरिका से बिजनेस मैनेजमेंट पढ़कर लौटा था और पिता ने उसके अंदर राजनीति में सफलता की संभावनाएं तलाश ली थीं। वो तारीख 10 फरवरी थी और साल था 2002, जब पिता के जन्मदिन के मौके पर सचिन पायलट ने कांग्रेस पार्टी का ‘पंजा’ थामा था। आज 16 साल बाद पायलत राजस्थान में कांग्रेस का मजबूत ‘हाथ’ बन गए हैं।
राजनीति में सचिन पायलट की एंट्री के वक्त किसान सभा का आयोजन किया गया था। वहीं से पायलट लोगों के साथ जुड़ते चले गए। अपना जनाधार तैयार किया, 2 साल पर परिणाम मिला, जनता ने दौसा सीट से पायलट को अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए लोकसभा का पथप्रदान कर दिया था। ये वो दौर था, जब हर तरफ अटर बिहारी वाजपेयी की सरकार को गिराना मुश्किल माना जा रहा था। लेकिन, कांग्रेस ने उनकी सत्ता में सेंध कर सेंट्रल की सियासत पर खुद को पुनर्स्थापना किया था, पीएम बनाए गए थे मनमोहन सिंह।
26 साल की उम्र में सांसद बनकर पायलत ने भारत के सबसे युवा सांसद होने का तमगा भी हालिस कर लिया था। 2004 से 2008 तक पायलत शांति से सियासत को देखते और समझते रहे। इस दौरान वो पार्टी में अपना कद इतना ऊंचा कर चुके थे कि जब काग्रेस ने 2008 में लगातार दूसरी बार केंद्र में सरकार बनाई तो उन्हें साल 2009 में केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया। फिलहाल, वो राजस्थान में कांग्रेस अध्यक्ष और नवनिर्वाचित विधायक हैं।