विजय दिवस: जब भारतीय सेना ने पाकिस्तान को नाकों चने चबवाया
जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने पडोसी पकिस्तान से अच्छे सम्बन्ध बनाने के विचार से फरवरी 1999 में बस द्वारा नई दिल्ली से लाहोर तक की एतिहासिक यात्रा की तो उन्हें इसका तनिक भी आभास नहीं था कि करगिल युद्ध की नीव उसी समय पड़ गई थी।
नई दिल्ली: करगिल युद्ध की जीत के तौर पर हर वर्ष ‘विजय दिवस’ मनाया जाता है। सेना 25 जुलाई से दो दिनों तक विजय दिवस मनाती है। आज से 19 वर्ष पहले भारतीय सेना ने 26 जुलाई, 1999 के ही दिन नियंत्रण रेखा से लगी करगिल की पहाड़ियों पर कब्ज़ा जमाए आतंकियों और उनके वेश में घुस आए पाकिस्तानी सैनिकों को मार भगाया था। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यह पूरा युद्ध ही था, जिसमें पांच सौ से ज़्यादा भारतीय जवान शहीद हुए थे। इन वीर और जाबांज जवानों को पूरा देश '26 जुलाई' के दिन याद करता है और श्रद्धापूर्वक नमन करता है। सेना धार्मिक गुरूओं की मौजूदगी में करगिल युद्ध स्मारक में शहीद सैनिकों की याद में विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन करती है।
करगिल युद्ध के कुछ चौंकाने वाले राज़
करगिल की लड़ाई अपने आप में कई राज छुपाए हुए है। उस समय क्या हुआ था ये कोई नहीं जानता। हर कोई अलग-अलग अंदाजा लगाता है। करगिल की लड़ाई में हमारे सैनिकों ने पाकिस्तानी फौज का जमकर मुकाबला किया था। पाकिस्तानी घुस्पैठियों ने लगातार गोलियां चलाई और हमारे सैनिकों ने उन्हें सामने से जवाब दिया। भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में करगिल युद्ध हुआ था। इसकी शुरुआत हुई थी 8 मई 1999 से जब पाकिस्तानी फौजियों और कश्मीरी आतंकियों को करगिल की चोटी पर देखा गया था।
कारगिल युद्ध का घटनाक्रम
जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने पडोसी पकिस्तान से अच्छे सम्बन्ध बनाने के विचार से फरवरी 1999 में बस द्वारा नई दिल्ली से लाहोर तक की एतिहासिक यात्रा की तो उन्हें इसका तनिक भी आभास नहीं था कि करगिल युद्ध की नीव उसी समय पड़ गई थी। पकिस्तान का बदनाम जासूसी संघठन ISI जिसका रिश्ता वहां की फ़ौज के साथ जगजाहिर है यह कभी नहीं चाहता था कि भारत के साथ अच्छे सम्बन्ध कायम हो। इसी वजह से इस बनते हुए रिश्ते को बिगड़ने के लिये ISI ने करगिल युद्ध का षडयंत्र रचा।
जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा याद करो कुर्बानी
करगिल युद्ध में लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए, जिनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नही देख पाए थे। इन शहीदों ने भारतीय सेना की शौर्य व बलिदान की उस सर्वोच्च परम्परा का निर्वाह किया, जिसकी सौगन्ध हर सिपाही तिरंगे के समक्ष लेता है। यह दिन है उन शहीदों को याद कर अपने श्रद्धा-सुमन अर्पण करने का, जो हँसते-हँसते मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। यह दिन समर्पित है उन्हें, जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया।
कारगिल युद्ध के मास्टरमाइंड परवेज मुशर्रफ
करगिल में घुसपैठ की पाकिस्तान की बहुत सोची-समझी साजिश थी जिसका मास्टरमाइंड जनरल परवेज मुशर्रफ थे जिन्होंने युद्ध के ठीक पहले एक रात भारतीय सीमा में भी गुजारी थी। करगिल के समय मुशर्रफ और पाक सेना वहां तक इसलिए पहुंच सकी, क्योंकि उस वक्त भारी बर्फबारी होने की वजह से भारतीय फौज वहां पर मौजूद नहीं थी। मुशर्रफ को उम्मीद थी कि जून तक भारतीय फौज को पाक सेना के वहां होने की जानकारी नहीं मिलेगी। पर भारतीय सेना को इस बात का पता चल गया और बाद में पाक को मुशर्रफ ने एक युद्ध में धकेल दिया।