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Hindi News भारत राष्ट्रीय उत्तराखण्ड में बकरियों के स्वयंवर पर आपस में भिड़े मंत्री, मामला पहुंचा सीएम के पास

उत्तराखण्ड में बकरियों के स्वयंवर पर आपस में भिड़े मंत्री, मामला पहुंचा सीएम के पास

गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने बकरी स्वयंवर को यहां की संस्कृति के विपरीत करार दिया था। माना जा रहा कि इसी के चलते सोमवार को पशुपालन राज्यमंत्री को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस रद करनी पड़ी।

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नई दिल्ली: उत्तराखंड की सियासत एक बकरी की वजह से गरमा गई है। मामला खून-खराबे का नहीं बल्कि मुहब्बत का है। इस बार बकरी स्वयंवर को लेकर दो मंत्री आमने-सामने आ गए हैं। अगले महीने धनोल्टी में बकरी स्वयंवर होना है जिसका आयोजन पशुपालन विभाग करवा रहा है। पशुपालन मंत्री रेखा आर्य इसमें ख़ासी दिलचस्पी ले रही हैं और इस कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उन्होंने मंत्रोच्चार के साथ बकरियों का स्वयंवर करवाने का ऐलान किया है लेकिन यही बात राज्य के संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज को चुभ गई। उन्होंने मंत्रोच्चार के साथ बकरियों के स्वयंवर को संस्कृति से खेल बताया।

पशुपालन विभाग की ओर से 23 व 24 फरवरी को धनोल्टी में बकरी स्वयंवर का आयोजन प्रस्तावित है। इस सिलसिले में सोमवार को देहरादून में विधानसभा भवन में पशुपालन राज्यमंत्री रेखा आर्य का पत्रकारों से बातचीत का कार्यक्रम निर्धारित किया गया। रविवार शाम बाकायदा इसकी सूचना दी गई। सोमवार को सुबह साढ़े ग्यारह बजे पत्रकार वार्ता होनी थी, लेकिन वहां पहुंचे पत्रकारों को यह जानकारी दी गई कि अब यह शाम चार बजे होगी। फिर शाम को भी पत्रकार वार्ता स्थगित होने की जानकारी दी गई।

गौरतलब है कि कुछ दिन पूर्व पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने बकरी स्वयंवर को यहां की संस्कृति के विपरीत करार दिया था। माना जा रहा कि इसी के चलते सोमवार को पशुपालन राज्यमंत्री को प्रेस कॉन्‍फ्रेंस रद करनी पड़ी। हालांकि, इस बारे में पूछे जाने पर राज्यमंत्री रेखा आर्य ने कहा कि यह आयोजन नया नहीं है, बल्कि पिछले साल भी हुआ था।

लेकिन रेखा आर्य इस मामले पर अकेली पड़ती दिख रही हैं। राजपुर के विधायक खजानदास भी इस मामले पर सतपाल महाराज के साथ आ गए हैं और उन्होंने रेखा आर्य को सलाह दी है कि इस पर सोच-विचार कर फिर फ़ैसला करें। हालांकि रेखा आर्य ने अपने छोटे से राजनीतिक करियर में यह साबित किया है कि वह जल्द ही दबावों में नहीं आतीं। देहरादून से हरिद्वार तक हाइवे पर साइकिल यात्रा की उनकी योजना का भी काफ़ी विरोध हुआ था लेकिन उन्होंने यह यात्रा निकाली भी और वह भी सफलतापूर्वक।

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