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दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में क्यों पड़ रही है कड़ाके की सर्दी? वैज्ञानिकों ने समझाया

दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में जमा देने वाली ठंड पड़ रही है। दिसंबर में इस बार जो शीतलहर जारी है वह ऐतिहासिक है। यह दिसंबर पिछले 100 सालों के दौरान दूसरा सबसे ठंडा दिसंबर बनने जा रहा है।

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नई दिल्ली: दिल्ली समेत पूरे उत्तर भारत में जमा देने वाली ठंड पड़ रही है। दिसंबर में इस बार जो शीतलहर जारी है वह ऐतिहासिक है। यह दिसंबर पिछले 100 सालों के दौरान दूसरा सबसे ठंडा दिसंबर बनने जा रहा है। दिल्ली में आज सुबह का न्यूनतम तापमान 4.2 दर्ज किया गया है जो इस सीजन का सबसे कम तापमान है।​ मैदानी इलाकों में ठंड इसलिए बढ़ रही है क्योंकि पहाड़ी इलाकों में लगातार बर्फबारी हो रही है। कश्मीर में विश्व प्रसिद्ध डल लेक जम चुकी है। पहाड़ों से गिरने वाले झरने जम चुके हैं। हर तरफ का बर्फीला मंजर देखकर लगता है कि उत्तर भारत में जैसे हिमयुग आ चुका है।

भूमध्य सागर में उत्पन्न होने वाले असमान्य व शक्तिशाली 'पश्चिमी विक्षोभ' ने हिंदी पट्टी सहित समूचे उत्तर भारत को बीते पखवाड़े से ठिठुरने को मजबूर किया है। दुर्भाग्य से यह स्थिति चार से पांच दशकों में एक बार पैदा होती है, जो लोगों को नव वर्ष की पूर्व संध्या पर भी कंपकंपाएगी।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र जेनामणि ने कहा, "यह लंबी अवधि है, जिसकी प्रकृति अनोखी है और यह पूरे उत्तरपश्चिम भारत पर असर डालेगी।"

गंगा के मैदानी क्षेत्रों में घना कोहरा और हिंद महासागर की असामान्य वार्मिग पश्चिमी विक्षोभ के लिए जिम्मेदार हैं। इसके साथ ही भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले उष्णकटिबंधीय तूफान से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरपश्चिम भाग में अचानक से ठंड के मौसम में बरसात हुई, जिससे देश के कुछ शहरों में दिन का तापमान 12 डिग्री से नीचे हो गया।

शीर्ष वैज्ञानिकों को आशंका है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की बेरुखी सामने आई है और अप्रत्याशित मौसम की यह स्थिति लोगों को परेशान करती रहेगी।

पुणे के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च (सीसीसीआर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. भूपिंदर बी.सिंह ने कहा, "जलवायु परिवर्तन पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता व आवृत्ति को प्रभावित कर रहा है, और यह आने वाले सालों में पारे को नीचे ला सकता है, जबकि मध्य व दक्षिण भारतीय क्षेत्र ज्यादा गर्म हो सकते हैं।"

डॉ. सिंह का अनुमान है कि आने वाले सालों में हिमालयी क्षेत्र व गंगा के मैदानी क्षेत्र जिसमें पूरा उत्तर भारत शामिल है, मौसम को लेकर ज्यादा संवेदनशील हो सकते हैं और यहां के लोगों को मौसम की बेरुखी झेलनी पड़ सकती है।

डॉ. सिंह ने कहा, "ध्यान देने की बात है कि अगर ज्यादा प्रदूषण होगा तो ज्यादा धुंध होगा। इसी तरह से पश्चिमी विक्षोभ अत्यधिक तीव्र होगा और हमें मौसम की मार का सामना करना होगा।"

आईएमडी के वैज्ञानिक भी इस बात से सहमत हैं कि गंगा के मैदानी इलाकों में स्मॉग (धुंध) का असर मौसम पर पड़ रहा है। उनके शोध से संकेत मिलता है कि पिछले कुछ वर्षो में तापमान में बदलाव का एक अप्रत्याशित पैटर्न चल रहा है। यह पैटर्न जारी रहेगा और निकट भविष्य में इसका मौसम पर ज्यादा गंभीर असर पड़ेगा।

डॉ जेनामणि ने कहा, "आम तौर पर ज्यादा ठंड की अवधि 5 या 6 दिनों होती है। लेकिन इस साल 13 दिसंबर से तापमान में गिरावट जारी है .. यह अप्रत्याशित है। हालांकि, अब ऐसा लगता है कि 31 दिसंबर के बाद ही राहत मिल सकती है।" वैज्ञानिकों का मानना है कि 16 से 17 दिनों से अधिक समय तक इस तरह के ठंडे मौसम का होना असामान्य है।

भीषण शीतलहर से उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में सामान्य जीवन प्रभावित हुआ है। उत्तर प्रदेश में बीते 48 घंटों में 38 लोगों के मौत की सूचना है। हालांकि विभिन्न जिलों से कुल मौतों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

राज्य स्वास्थ्य निदेशालय के अधिकारी ने कहा, "सरकार ने अलाव व आश्रय इंतजाम किए है। मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को सभी सरकारी अस्पतालों में चौबीसों घंटे मरीजों को भर्ती करने का निर्देश दिया गया है। जहां तक हताहतों की बात है, इसके बारे में कहना मुश्किल है कि कोई ठंड से मरा है या दूसरी बीमारी की वजह से।" शीतलहर ने बिहार को भी चपेट में ले लिया है, जहां पटना, गया, भागलपुर और पूर्णिया जिलों में पारे में असामान्य गिरावट की वजह से कई मौतें हुईं हैं।

(Input IANS)

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