नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाज़ों के हमले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। कल साउथ कश्मीर में पत्थरबाज़ी की घटना में सीआरपीएफ के दो जवानों की जान चली गई। मारे गए दोनों जवान जम्मू-कश्मीर के ही रहने वाले थे। इस घटना के बाद अब ये सवाल फिर खड़ा हो गया है कि पत्थरबाज़ों के प्रति राज्य सरकार ने जो नरम रुख अपनाया है उसका कुछ फायदा हो भी रहा है या नहीं? बुधवार को जब सीआरपीएफ की एक टीम दिन भर की ड्यूटी कर वापस कैम्प की तरफ लौट रही थी तब रास्ते में यह घटना घटी। कुछ जवान मोटरसाइकिल पर थे बाकी टीम आर्मर्ड व्हीकल यानि एक ट्रक में आ रही थी।
आमतौर पर सुरक्षा बलों की वापसी के वक्त कुछ जवानों को सिविल ड्रेस में भेजा जाता है ताकि वो रास्ते की रेकी कर सकें और खबर दें सकें कि रास्ते में कुछ गड़बड़ होने की आशंका तो नहीं है। कल जम्मू-कश्मीर से ही ताल्लुक रखने वाले सीआरपीएफ के रियाज़ अहमद वानी और निसार अहमद वानी नाम के दो जवानों को रेकी के लिए भेजा गया। जैसे ही ये लोग साउथ कश्मीर के कोकेरनाग इलाके में पहुंचे पत्थरबाज़ों ने इन पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। कुछ पत्थर बाइक पर जा रहे जवानों को लगे। इनका बैलेंस बिगड़ गया और मोटरसाइकिल समेत ये लोग एक पेड़ से टकराए और गंभीर रूप से घायल होकर वहीं पडे रहे। कोई इन्हें उठाने नहीं आया।
उसी वक्त पीछे से सीआरपीएफ जवानों को लेकर आ रहा ट्रक आया। पत्थरबाज़ों ने इस पर भी हमला कर दिया। कुछ पत्थर ड्राइवर को लगे तो उसने ट्रक पर से अपना कंट्रोल खो दिया। ट्रक बेकाबू होकर सड़क किनारे पड़ी मोटरसाइकिल और उसके पास गिरे दो जवानों से जा टकराया। मोटरसाइकिल पर जा रहे रियाज़ और नासिर ज्यादा गंभीर रूप से घायल थे इसलिए उन्हें तुरंत स्थानीय अस्पताल ले जाया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका जबकि ट्रक ड्राइवर रूप सिंह को श्रीनगर के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
हमले के तुरंत बाद सुरक्षा बलों को कोकेरनाग इलाके में भेजा गया। सिक्योरिटी फोर्स ने हालात पर तो काबू पाया लिया लेकिन दो जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इस घटना के बाद एक बार फिर पत्थरबाज़ों को लेकर सरकार के रवैये पर सवाल खड़े हो गए हैं। कुछ महीने पहले जम्मू-कश्मीर की पीडीपी-बीजेपी सरकार ने हज़ारों पत्थरबाज़ों के ऊपर चल रहे मुकदमे वापस लिए थे ताकि इन्हें सुधरने का एक मौका दिया जा सके लेकिन कल कोकेरनाग में पत्थरबाज़ों के हमले में दो जवानों के शहीद होने की वारदात से साफ है कि ये पत्थरबाज़ सुधरने वाले नहीं हैं।
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