हालांकि यह भी सच है कि भारतीयों को ऐसी किसी योजना के लिए राजी करवाना टेढ़ी खीर है। परिवार में सोने की परंपरा कई वंशों से चली आने का रिवाज है, जहां पिछली पीढ़ियां सोने के रूप में वंश परंपरा अगली पीढ़ी को सौंपती हैं। कुल मिलाकर सोना उनकी कई पीढ़ियों की थाती समझा जाता है।
भारत में सोने के लिए जुनून का आलम यह है कि बैंकिंग संस्थाओं के इस दौर में भी तकरीबन 70% ग्रामीण आबादी के लिए अब भी सोना ही निवेश और बचत का आधार है। सोने की खरीद मनोवैज्ञानिक तौर पर उनके लिए आर्थिक सुरक्षा का भरोसा है। इसी योजना से मिलती-जुलती एक योजना 1999 में भी लागू की गई थी, लेकिन वह योजना इसलिए सफल नहीं हो पाई क्योंकि सरकार की तरफ से बैंकों को जिस ब्याज दर की पेशकश की गई थी वह मंदिरों की उम्मीद से काफी कम थी।
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