एक ऐसा हीरा जो जिसके पास गया वो हो गया बर्बाद!
इस हीरे के बारे में कहा जाता है कि इसकी चमक से कई सल्तनत के राजाओं के सिंहासन का सूर्यास्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है और यह मान्यता आज की नहीं, बल्कि तेरहवीं शताब्दी से प्रचलित है।
जब यह हीरा शाहजहां के पास आया तब उसने अपने सिंहासन में इसे जड़वा लिया और इसी के साथ ही उसका अंत भी करीब आ गया। शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज महल का इंतकाल, शासन का उसके बेटे औरंगजेब के हाथ में जाना, अपने ही बेटे द्वारा बंदी बनाया जाना, इसी हीरे के श्राप का परिणाम माना जाता है।
1739 ईसवी में फारसी आक्रमणकारी नादिर शाह ने मुगल सल्तनत का पतन कर इस हीरे को अपना बना लिया और वह इसे अपने साथ पर्शिया ले गया। नादिर शाह ने ही इस हीरे का नाम कोह-इ-नूर, यानि रोशनी का पहाड़ रखा। नादिर शाह की भी हत्या हो गई और फिर यह हीरा अफगानिस्तान के शहंशाह अहमद शाह दुर्रानी के पास पहुंच गया।
1813 ई. में अफ़गानिस्तान का अपदस्त शहंशाह शाह शुजा कोहिनूर हीरे के साथ भाग कर लाहौर पहुंचा और उसने कोहिनूर हीरे को पंजाब के राजा रणजीत सिंह को सौंप दिया। इस हीरे को हासिल करने के महज कुछ ही समय बाद रणजीत सिंह की भी मौत हो गई और उनकी गद्दी उनके उत्तराधिकारियों तक भी नहीं पहुंची।
रणजीत सिंह की मौत और उनके उत्तराधिकारियों की दुर्दशा देखने के बाद अंग्रेजी हुकूमत को भी यह बात समझ में आ गई कि वाकई इस हीरे के साथ कोई ना कोई श्राप जुड़ा हुआ है।
इस हीरे के श्राप का बस एक ही काट था कि अगर ईश्वर या फिर कोई महिला कोहिनूर को पहनती है तो यह श्राप विफल हो जाएगा। इसीलिए 1936 में जब कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लगा तो किंग जॉर्ज षष्टम की पत्नी क्वीन एलिजाबेथ के क्राउन में इसे जड़वा दिया गया और तब से लेकर आज तक यह हीरा ब्रिटिश राजघराने से संबंधित महिलाओं की ही शोभा बढ़ा रहा है।
पर कई इतिहासकारों का मानना है की महिला के द्वारा धारण करने के बावजूद भी इसका असर ख़त्म नहीं हुआ और ब्रिटेन के साम्राज्य के अंत के लिए भी यही ज़िम्मेदार है। ब्रिटेन 1850 तक आधे विश्व पर राज कर रहा था पर इसके बाद उसके अधीनस्थ देश एक-एक करके स्वतंत्र हो गए।
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