एक ऐसा हीरा जो जिसके पास गया वो हो गया बर्बाद!
इस हीरे के बारे में कहा जाता है कि इसकी चमक से कई सल्तनत के राजाओं के सिंहासन का सूर्यास्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है और यह मान्यता आज की नहीं, बल्कि तेरहवीं शताब्दी से प्रचलित है।
नई दिल्ली: प्राचीन भारत की शान इस हीरे की खोज वर्तमान भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के गुंटूर जिले में स्तिथ गोलकुंडा की खदानों में हुई थी जहां से दरियाई नूर और नूर-उन-ऐन जैसे विशव प्रसिद्द हीरे भी निकले थे। पर यह हीरा खदान से कब बाहर आया इसकी कोई पुख्ता जानकारी इतिहास में नहीं है। इस हीरे के बारे में कहा जाता है कि इसकी चमक से कई सल्तनत के राजाओं के सिंहासन का सूर्यास्त हो गया। ऐसी मान्यता है कि यह हीरा अभिशप्त है और यह मान्यता आज की नहीं, बल्कि तेरहवीं शताब्दी से प्रचलित है।
हम बात कर रहे हैं कोहिनूर की जिसका अर्थ होता है रोशनी का पहाड़। इतिहास के कुछ सबसे महंगे हीरों में से एक हीरा भारत की सरजमीं पर विख्यात हुआ और आज अंग्रेजी राजघराने की शोभा बढ़ा रहा है। लेकिन इसका इतिहास इसकी खूबियों से भी कहीं ज्यादा खौफनाक है।
इस हीरे का प्रथम प्रमाणिक वर्णन बाबरनामा में मिलता है जिसके अनुसार 1294 के आस-पास यह हीरा ग्वालियर के किसी राजा के पास था हालांकि तब इसका नाम कोहिनूर नहीं था। पर इस हीरे को पहचान 1306 में मिली जब इसको पहनने वाले एक शख्स ने लिखा कि जो भी इंसान इस हीरे को पहनेगा वो इस संसार पर राज करेगा, पर इसी के साथ उसका दुर्भाग्य शुरू हो जाएगा।
हालांकि तब उसकी बात को उसका वहम कह कर खारिज कर दिया गया, पर यदि हम तब से लेकर अब तक का इतिहास देखें, तो कह सकते हैं कि यह बात काफी हद तक सही है। कई साम्राज्यों ने इस हीरे को अपने पास रखा, लेकिन जिसने भी रखा वह कभी भी खुशहाल नहीं रह पाया।
14वीं शताब्दी की शुरुआत में यह हीरा काकतीय वंश के पास आया और इसी के साथ 1083 ई. से शासन कर रहे काकतीय वंश के बुरे दिन शुरू हो गए और 1323 में तुगलक शाह प्रथम से लड़ाई में हार के साथ ही इस राजवंश का शासन समाप्त हो गया।
काकतीय वंश के बाद यह हीरा मोहम्मद बिन तुगलक के पास आ गया। इसके बाद 16वीं शताब्दी के मध्य तक रोशनी का यह पहाड़ अलग-अलग सुल्तानों के पास रहा, लेकिन जिस-जिस के भी पास यह रहा, उन सबका अंत बेहद दर्दनाक रहा।
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