बच्चों की पढ़ाई रूक ना जाए, इसके लिए अनूठे तरीके अपना रहे हैं शिक्षक और अभिभावक
महाराष्ट्र के भदोले गांव में शिक्षकों ने ऐसे बच्चों की पहचान की है जिनके पास या उनके अभिभावकों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट हैं। उन्होंने ऐसे बच्चों के साथ अन्य बच्चों के छोटे-छोटे समूह बना दिए हैं।
नई दिल्ली. हरियाणा के झामरी गांव में आजकल रोज एक लाउडस्पीकर वाली गाड़ी आती है जिसका बच्चों को बड़ी बेसब्री से इंतजार होता है। यह कोई आइसक्रीम वाले या मिठाई वाले की नहीं बल्कि स्कूल की गाड़ी होती है। ऐसे में जबकि कोरोना वायरस के कारण सभी स्कूल करीब चार महीने से बंद हैं, गांव के एक शिक्षक ने लाउडस्पीकार के जरिए बच्चों की शिक्षा जारी रखने का अनोखा तरीका निकाला है।
वैसे तो शहरों में सभी स्कूल ऑनलाइन क्लास ले रहे हैं, लेकिन देश के छोटे-छोटे सुदूर गांवों में जहां इंटरनेट की स्पीड बहुत कम है, सभी के पास स्मार्टफोन नहीं हैं, माता-पिता और शिक्षक मिलकर अजब-अनूठे तरीके से पढ़ाई में अपने बच्चों की रुचि बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। राज्य के झज्जर जिले में एक स्कूल चलाने वाले शिक्षक सत्यनारायण शर्मा ने दो गज की दूरी के नियम का पालन करते हुए बच्चे घर में रहकर भी शिक्षा से दूर ना हों, यह सुनिश्चित करने के लिए एक गाड़ी में लाउडस्पीकर लगाया है और उसी से शिक्षक बारी-बारी से अपनी कक्षाएं लेते हैं।
शर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, 'बड़ा मुद्दा बच्चों की पढ़ाई के स्तर में हो रहे नुकसान का नहीं है, बल्कि यह है कि वे कहीं स्कूल आना ही बंद ना कर दें।'
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने एक गाड़ी पर लाडस्पीकर लगवाया है। शिक्षकों से कहा गया है कि वे बारी-बारी से गाड़ी लेकर जाएं, उसे किसी उचित स्थान पर खड़ी करें और वहां से बच्चों को पढ़ावें। यह कक्षा में बैठकर पढ़ने जैसा नहीं होगा, लेकिन कुछ तो पढ़ाई होगी।’’
ग्रामीण भारत में बच्चों को इस माध्यम से शिक्षा देने की प्रथा कोई अनोखी बात नहीं है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, देश में 35 करोड़ से ज्यादा छात्र हैं, लेकिन यह पता नहीं है कि कितनों के पास इंटरनेट सेवा और उसके उपयोग के लिए उपकरण हैं। गुजरात के जनान गांव के शिक्षक घनश्याम भाई, ग्राम पंचायत में उद्घोषणा के लिए लगायी गयी प्रणाली का उपयोग कर कहानियां, गीत और माता-पिता के लिए दिशा-निर्देश साझा करते हैं कि इस लॉकडाउन के दौरान वे अपने बच्चों के साथ कैसे रहें, व्यायाम करने का क्या महत्व है आदि।
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘इस चुनौती भरे समय में हम बच्चों से यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि वे माता-पिता से सब कुछ सीख लेंगे।’’ उनका कहना है कि इस तरह से बच्चों को गणित और अन्य मुश्किल विषय तो नहीं पढ़ाए जा सकते, लेकिन कम से कम इतना सुनिश्चित किया जा सकता है कि वे पढ़ाई जारी रखें।
घनश्याम भाई ने बताया, ‘‘मैं इसकी घोषणा भी करता हूं कि कितने बजे पंचायत भवन में रहूंगा ताकि छात्र या अभिभावक, जो अपनी समस्याएं सुलझाना चाहते हैं, या मुझसे बात करना चाहते हैं, वहां आकर दो गज की दूरी का पालन करते हुए मिल सकते हैं।’’
महाराष्ट्र के भदोले गांव में शिक्षकों ने ऐसे बच्चों की पहचान की है जिनके पास या उनके अभिभावकों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट हैं। उन्होंने ऐसे बच्चों के साथ अन्य बच्चों के छोटे-छोटे समूह बना दिए हैं। शिक्षकों के इस समूह में शामिल शानो देवी ने बताया कि यह इस तरह से काम करता है, जैसे एक बच्चे के पास फोन है और कई अन्य बच्चों के घर उसके घर के पास हैं।
शिक्षक उस फोन पर पाठ भेजते हैं, और सभी बच्चे बारी-बारी से उसे कॉपी करते हैं, फिर अपने घर जाकर उसे पढ़ते और पूरा करते हैं। अंत में जांच के लिए उसी फोन का इस्तेमाल करते हुए अपना पाठ शिक्षक को भेजते हैं। देवी ने बताया, ‘‘शिक्षकों ने अपनी जेब से कुछ पैसा भी जमा किया है ताकि जिसका भी फोन है, उसमें डेटा रीचार्ज करराया जा सके और किसी को खर्च के कारण यह बोझ ना लगे।’’ विशेषज्ञों की मानें तो देश के एक हिस्से में इंटरनेट होना और बहुत बड़े हिससे में नहीं होना, इसके कारण डिजिटल शिक्षा संभव नहीं है।