चंडीगढ़। इराक में 2014 में अगवा हुए और मार डाले गये 39 भारतीय कामगारों का पता लगाने के लिए तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा चार साल तक की गई कड़ी मेहनत को याद करते हुए यहां की एक महिला ने कहा, ‘‘उन्होंने हमारे प्रिय जनों का पता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’’
इराक में अपने सगे-संबंधियों को खोने वाले परिवारों ने कहा कि स्वराज ने उनकी लगातार मदद की और उनके प्रियजनों के शव वापस लाने में उनकी सहायता की। स्वराज को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए गुरपिंदर कौर ने कहा, ‘‘अन्यथा, हमें उनके बारे में जानने के लिए पूरा जीवन इंतजार करना पड़ता।’’ गुरपिंदर ने इराक में अपने 26 वर्षीय भाई मनजिंदर सिंह को खो दिया था।
उल्लेखनीय है कि दिल का दौरा पड़ने के बाद स्वराज का नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मंगलवार रात निधन हो गया। इराक में मारे गये कपूरथला के मुरार गांव निवासी गोविन्दर के छोटे भाई दविन्दर ने कहा, ‘‘सुषमा जी के निधन के बारे में सुन कर हम बहुत स्तब्ध हैं।’’
गुरपिंदर ने कहा कि स्वराज महज एक फोन कॉल भर दूर थी और हमेशा ही मिलनसार थी। युद्ध प्रभावित इराक में लापता भारतीयों का पता लगाने के सिलसिले में वह स्वराज से नौ-दस बार मिली थी। उन्होंने कहा, ‘‘उनसे आसानी से संपर्क किया जा सकता था।’’
स्वराज 2014 से 2019 तक विदेश मंत्री थी। वह विदेशों में संकट में फंसे भारतीय नागरिकों की स्वदेश वापसी के लिए हमेशा ही तत्पर रहती थी। कई लोग ट्विटर के जरिए उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराते थे।
गौरतलब है कि अपनी आजीविका के लिए इराक गये 39 भारतीय नागरिक 2014 में लापता हो गये थे। उनमें से कई लोग पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर, होशियारपुर, कपूरथला और जलंधर से थे। भारतीय अधिकारियों ने जब यह विषय इराकी अधिकारियों के समक्ष उठाया, तब यह पता चला कि जून 2014 में मोसुल से आतंकी संगठन आईएसआईएस ने उन्हें अगवा कर लिया और उन्हें बदूश ले जा गया, जहां उनकी हत्या कर दी गई।
दविन्दर ने कहा, ‘‘सुषमा जी ने जो कुछ किया उसे हम कभी भूल नहीं सकते। हमारे रिश्तेदारों का पता लगाने के लिए उन्होंने चार साल तक लगातार अपनी सर्वश्रेष्ठ कोशिश की और फिर उनके शवों को भारत लाया गया।’’
गुरपिंदर ने कहा, ‘‘वह हमेशा ही विनम्र रहती थी और हमें कभी यह महसूस नहीं कराया कि वह मंत्री हैं।’’ हम उनके हमेशा ही आभारी रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, वे लोग जीवित नहीं लौटे लेकिन उन्होंने (स्वराज ने) कम से कम हमें नतीजा तो दिया। अन्यथा हमें जीवन भर इंतजार करना पड़ता। ’’
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