नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली में अनधिकृत और अवैध निर्माण को सील करने गये अधिकारियों को धमकी देने वालों को चेताते हुए कहा कि इस तरह की ‘‘दादागीरी’’ नहीं चलेगी। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें ‘फॉरम आफ एमसीडी इंजीनियर्स’ ने आरोप लगाया कि नजफगढ क्षेत्र की वार्ड समिति के अध्यक्ष ने यहां अनधिकृत निर्माण को सील करने गये अधिकारियों को धमकी दी। अदालत ने कहा कि नजफगढ क्षेत्र की वार्ड समिति के अध्यक्ष मुकेश सुरयान का हलफनामा ‘‘बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं’’ है क्योंकि वह एक तरफ बिना शर्त माफी मांग रहे हैं जबकि दूसरी तरफ अपने कदम को सही ठहरा रहे हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘यह तरह की ‘दादागीरी’ नहीं चलेगी। वह यह नहीं कह सकते कि वह लोगों के लिए लड़ रहे हैं। वह कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकते। वह ‘दादा’ नहीं हैं कि वह यह सब कर लें।’’अदालत में मौजूद रहे सुरयान ने पीठ से माफी मांगी और उनके वकील ने कहा कि वह ऩया हलफनामा दायर करके बिना शर्त माफी मांगेंगे। पीठ ने उनसे तीन दिन में दूसरा हलफनामा दायर करने के लिए कहते हुए कहा, ‘‘नजफगढ की वार्ड कमेटी के चेयरमैन मुकेश सुरयान अदालत में मौजूद हैं और उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी है। हालांकि, हमें उनके हलफनामे से पता चला कि वह अपने कदम को सही ठहराने का भी प्रयास कर रहे हैं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’
पीठ ने नजफगढ जोन के उपायुक्त विशवेंद्र सिंह के स्थानान्तरण के मुद्दे पर भी गौर किया जिन्हें कथित रूप से सुरयान के इशारे पर ‘‘कुछ घंटों के भीतर’’ स्थानान्तरित कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने दक्षिण दिल्ली नगर निगम के अतिरिक्त आयुक्त् द्वारा दायर हलफनामे को पढने के बाद कहा कि सिंह के स्थानान्तरण में ‘‘कुछ बहुत गड़गड़’’ है। पीठ ने कहा कि यह निर्देश दिया जाता है कि विशवेंद्र को आज से 24 घंटे के भीतर नजफगढ जोन के उपायुक्त के पद पर बहाल किया जाए और वह इस पद पर अपना सामान्य कार्यकाल पूरा करें। इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए अदालत ने छह अगस्त की तारीख तय की।
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