क्या असंवैधानिक हैं बहुविवाह और निकाह हलाला? याचिकाओं की सुनवाई करेगी संवैधानिक बेंच
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ विचार करेगी...
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि मुस्लिम समुदाय में प्रचलित बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ विचार करेगी। इस बीच, कोर्ट ने इन याचिकाओं पर केंद्र और विधि आयोग से जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ की 3 सदस्यीय खंडपीठ ने समता के अधिकार का हनन और लैंगिक न्याय सहित कई बिन्दुओं पर दायर जनहित याचिकाओं पर सोमवार को विचार किया।
क्या है निकाह हलाला?
पीठ ने इस दलील पर भी विचार किया कि 2017 में 5 सदस्यीय संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक करार देने वाले प्रकरण से बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे बाहर रखे गए थे। पीठ ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला के मुद्दे पर विचार के लिए 5 सदस्यीय संविधान पीठ का गठन किया जाएगा। बहुविवाह की प्रथा के तहत मुस्लिम समुदाय में मुस्लिम व्यक्ति को 4 बीवियां रखने की इजाजत है जबकि निकाह हलाला तलाक देने वाले शौहर से तलाकशुदा बीवी के दुबारा निकाह के संबंध में है। निकाह हलाला वह प्रथा है जिसमे शौहर द्वारा तलाक दिए जाने के बाद उसी शौहर से दुबारा निकाह करने से पहले महिला को एक अन्य व्यक्ति से निकाह करके उससे तलाक लेना होता है।
जानें, किसने डाली है याचिका
बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा के खिलाफ अधिवक्ता और दिल्ली बीजेपी प्रवक्ता अश्चिनी कुमार उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में दावा किया कि मुस्लिम महिलाओं को उनके बुनियादी अधिकार दिलाने के लिये इन प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाना वक्त की जरूरत है। याचिका में कहा गया है कि ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथाओं की वजह से मुस्लिम महिलाओं को बहुत अधिक नुकसान हो रहा है और इससे उनके संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। याचिका में यह घोषित करने का अनुरोध किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए सभी नागरिकों पर लागू होती है और ट्रिपल तलाक इस धारा के तहत महिला के प्रति क्रूरता है। इसी तरह, निकाह हलाला को भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार और बहुविवाह को धारा 494 के अंतर्गत अपराध घोषित करने का भी अनुरोध किया गया है। धारा 494 के अंतर्गत पति या पत्नी के जीवन काल में यदि कोई भी दूसरी शादी करता है तो यह अपराध है।
मुस्लिम महिला ने अपनी याचिका में कही ये बातें
एक मुस्लिम महिला ने भी 14 मार्च को शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से पति या पत्नी के जीवन काल में ही दूसरी शादी को अपराध के दायरे में लाने संबंधी भारतीय दंड संहिता की धारा 494 इस समुदाय के लिए निरर्थक है और कोई भी शादीशुदा मुस्लिम महिला ऐसा करने वाले अपने शौहर के खिलाफ शिकायत दायर नहीं कर सकती है। इस महिला ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि मुस्लिम विवाह विच्छेद कानून 1939 को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 ,21 और 25 के प्रावधानों का हनन करने वाला घोषित किया जाए। याचिकाकर्ता महिला का दावा है कि वह खुद इन प्रथाओं की पीड़ित है और उसका आरोप है कि उसका पति और परिवार उसे दहेज के लिए यातनाएं देते थे और उसे उसके वैवाहिक घर से दो बार बाहर निकाला गया है।
बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि उसके शौहर ने कानूनी तरीके से तलाक दिए बगैर ही एक और औरत से शादी कर ली और पुलिस ने धारा 494 और धारा 498-ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने से भी इंकार कर दिया। इसी तरह, 18 मार्च को हैदराबाद के एक वकील ने बहुविवाह प्रथा को चुनौती देते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत इस तरह की सारी शादियां मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन करती हैं। याचिका में तर्क दिया गया है कि मुस्लिम कानून आदमियों को तो अस्थाई शादियों या बहुविवाह के जरिये कई बीवियां रखने की इजाजत देता है लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए यह प्रावधान नहीं है। याचिकाकर्ता ने निकाह हलाला की प्रथा का भी विरोध किया है।