नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस व्यक्ति की कानूनी उत्तराधिकारी के बीमा दावे को खारिज कर दिया जिसकी मौत अत्यधिक शराब पीने से दम घुटने के कारण हुई थी। इसने कहा कि मामले में बीमा कंपनी का दायित्व पूरी तरह या प्रत्यक्ष तौर पर किसी दुर्घटना से पहुंची चोट के मामले में मुआवजा देने का है। न्यायमूर्ति एम एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के आदेश को बरकरार रखा जिसने कहा था कि मृत्यु किसी दुर्घटना की वजह से नहीं हुई और बीमा नीति के तहत ऐसे मामले में मुआवजा देने का कोई सांविधिक दायित्व नहीं है।
पीठ ने कहा, ‘‘मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर हमें राष्ट्रीय आयोग के 24 अप्रैल 2009 के आदेश में हस्तक्षेप का कोई कारण दिखाई नहीं देता।’’ शीर्ष अदालत ने यह आदेश हिमाचल प्रदेश राज्य वन निगम में तैनात एक चौकीदार की कानूनी उत्तराधिकारी नर्बदा देवी की याचिका पर दिया।
1997 में हुई थी मौत
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में इस चौकीदार की मृत्यु वर्ष 1997 में सात-आठ अक्टूबर की मध्य रात्रि हो गई थी और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उसकी मौत का कारण अतयधिक शराब पीने से दम घुटने को बताया गया था। न्यायालय ने कहा कि इस तरह की मृत्यु दुर्घटना से होने वाली मृत्यु की श्रेणी में नहीं आती और संबंधित बीमा नीति के तहत ऐसे मामलों में मुआवजा देने का बीमा कंपनी का दायित्व नहीं बनता।
शराब पीने की उम्र को घटाकर 21 साल करना प्रगतिशील, व्यावहारिक कदम: एनआरएआई
उद्योग संगठन नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) ने सोमवार को दिल्ली सरकार द्वारा शराब पीने के लिए न्यूनतम उम्र को 25 साल से कम करके 21 साल करने के फैसले का स्वागत किया। एनआरएआई के अध्यक्ष अनुराग कटिरियार ने एक बयान में कहा कि शराब पीने की वैधानिक उम्र (एलडीए) को घटाकर 21 करना एक प्रगतिशील और व्यावहारिक कदम है तथा इससे अवैध खपत में कमी होगी, साथ ही उपभोक्ताओं की संख्या भी बढ़ेगी। कटिरियार ने आगे कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि भारत के दूसरे राज्य भी जल्द ही इसका पालन करेंगे और अपने उत्पाद शुल्क कानूनों के पुराने प्रावधानों में जरूरी संशोधन करेंगे।
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