पाकिस्तानियों को जम्मू-कश्मीर में बसाने वाले कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगा जवाब
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मामले में पेश वकीलों से कानून में प्रयुक्त वंशज शब्द के मायने को लेकर अनेक तरह के सवाल किये। द्विवेदी ने कहा कि इस मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध् करते हुये एक पत्र लिखा गया है
नयी दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानियों को बसाने के लिए राज्य के विधानसभा ने 35 साल पहले एक कानून बनाया था, जिस पर विवाद है। दरअसल, यह कानून 1947 से 1954 के बीच जम्मू-कश्मीर से पलायन कर पाकिस्तान जाने वाले लोगों को पुनर्वास की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरूवार को राज्य सरकार से जानना चाहा कि राज्य से पलायन करने वाले कितने लोगों ने पाकिस्तान से लौटने के लिये आवेदन किया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की पीठ ने राज्य सरकार के वकील से कहा कि इस बारे में आवश्यक निर्देश प्राप्त कर लें।
पीठ ने इसके साथ ही इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका 22 जनवरी के लिये सूचीबद्ध कर दी। राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि वह सक्षम प्राधिकार से आवश्यक निर्देश प्राप्त करके इस कानून के तहत वापस लौटने का आवेदन करने वाले विस्थापितों और उनके दस्तावेज का विवरण पेश करेंगे। शीर्ष अदालत जानना चाहती थी कि कितने विस्थापितों और उनके वंशजों ने आवेदन किया है और क्या ये आवेदन स्थाई निवासियों, जम्मू कश्मीर संविधान के तहत विशेष अधिकार पाने वाले व्यक्तियों, ने दिये हैं। शीर्ष अदालत को इस कानून के प्रावधानों से अवगत कराया गया। यह कानून 1947 में पाकिस्तान पलायन कर गये लोगों के बारे में है जो अब लौटना चाहते हैं।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मामले में पेश वकीलों से कानून में प्रयुक्त वंशज शब्द के मायने को लेकर अनेक तरह के सवाल किये। द्विवेदी ने कहा कि इस मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध् करते हुये एक पत्र लिखा गया है जिसमें राज्य विधान सभा को ‘स्थाई नागरिक’ के तहत विशेष अधिकार देने की शक्ति प्रदान करने वाले अनुच्छेद 35-ए और राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने संबंधी अनुच्छेद 370 से संबंधित याचिकाओं के बाद इस पर सुनवाई की जाये। शीर्ष अदालत में संविधान के अनुच्छेद 35-ए और अनुच्छेद 370 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकायें लंबित हैं।
जम्मू कश्मरी पुनर्वास कानून, 1982 की वैधानिकता को सबसे पहले पैंथर पार्टी के तत्कालीन विधायक हर्ष देव सिंह ने 1982 में चुनौती दी थी और तत्कालीन राज्यपाल बी के नेहरू ने इसे मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद नवगठित भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने भी शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी थी। संविधान पीठ ने 2001 में इस विषय को राष्ट्रपति द्वारा राय मांगे जाने पर सवाल का जवाब दिये बगैर ही लौटा दिया था।
सिंह ने 2014 में याचिका दायर कर इस कानून को निरस्त करने का अनुरोध किया था। न्यायालय ने यह याचिका विचारार्थ स्वीकार करते हुये इस कानून के कार्यान्वयन पर 2001 में रोक लगा दी थी। बाद में 2008 में यह मामला संविधान पीठ के पास भेज दिया गया था। जम्मू कश्मीर पुनर्वास कानून भारत के विभाजन के बाद 1947 से 1954 के दरम्यान जम्मू कश्मीर से पलायन कर पाकिस्तान जाने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को पुनर्वास की अनुमति प्रदान करता है।
पार्टी के मुखिया और वरिष्ठ अधिवक्ता भीम सिंह ने बहस करते हुये कहा कि यह मामला लंबे समय से लंबित है और इस पर निर्णय की आवश्यकता है। शीर्ष अदालत ने 16 अगस्त, 2016 को संकेत दिया था कि वह इस पर सुनवाई करेगी और यदि उसे महसूस हुआ कि इसमें सांविधानिक मुद्दा निहित है तो इसे संविधान पीठ को सौंपा जा सकता है।