SC/ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं पलटा फैसला, जानिए कोर्ट की 10 बड़ी बातें
कोर्ट ने साफ कहा कि SC/ST एक्ट का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और बेगुनाह लोगों को बेवजह सज़ा नहीं दी जा सकती...
नई दिल्ली: एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने जो बदलाव किए हैं वो जारी रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला बदलने से इनकार कर दिया है। फैसले के बाद केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि SC/ST एक्ट का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए और बेगुनाह लोगों को बेवजह सज़ा नहीं दी जा सकती। इस मामले पर अब अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी
कोर्ट की 10 बड़ी बातें-
1, SC/ST को लेकर अपने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट कायम
2. अपने फैसले में कोई बदलाव करने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
3. SC/ST कानून के किसी भी प्रावधान को प्रभावित नहीं किया- कोर्ट
4. केवल CRPC के कुछ नियमों के बारे में गाइड लाइन बनाई- SC
5. दोनों पक्षों से 2 दिन के अंदर लिखित में दलीले मांगी
6. 10 दिन बाद मामले पर होगी अगली सुनवाई
7. फैसले के खिलाफ सरकार ने दायर की थी पुनर्विचार याचिका
8. सुप्रीम कोर्ट ने कहा- SC/ST एक्ट का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए
9. सुप्रीम कोर्ट ने एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी
10. पूरी जांच, SSP की मंजूरी के बाद ही गिरफ्तारी के आदेश दिए थे
क्या था पुराना कानून
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम,(The Scheduled Castes and Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989) को 11 सितम्बर 1989 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया था। जिसके बाद 30 जनवरी 1990 से सारे भारत ( जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) में लागू किया गया। यह अधिनियम उस प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य नही हैं तथा वह व्यक्ति इस वर्ग के सदस्यों का उत्पीड़न करता हैं। इस अधिनियम मे 5 अध्याय एवं 23 धाराएं हैं। ये कानून यह अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों के सजा तय करता है। साथ ही पीड़ित को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है। जरूरत पड़ने पर इस कानून के तहत विशेष अदालतों की भी व्यवस्था की जा सकती है।
इस कानून के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के विरुद्ध होने वाले क्रूर और अपमानजनक अपराधों के लिए सजा का प्रावधान है। किसी भी अनुसूचित जाति और जनजाति के व्यक्ति को जबरन अखाद्य पदार्थ (मल, मूत्र इत्यादि) खिलाना या उनका सामाजिक बहिष्कार करना इस कानून के तहत अपराध माना गया है। इस कानून के तहत पीड़ित की लिखित शिकायत पर उसका हस्ताक्षर लेने से पहले पुलिस को उसके बयान को पढ़ कर सुनाना होगा। एफआईआर दर्ज करने के 6० दिन के अन्दर अपराध की जांच करना और चार्जशीट/ आरोप पत्र पेश करना होगा। दस्तावेज तैयार करना और दस्तावेजों का सटीक अनुवाद करना होगा। साथ ही पुलिस के पास केस दर्ज होने के बाद तुरंत गिरफ्तारी करने का प्रावधान भी है। इस कानून के तहत अग्रिम जमानत पर रोक थी साथ ही जमानत सिर्फ हाई कोर्ट से हो सकती थी।