नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती पर चीफ जस्टिस बोबडे की अगुआई वाली बेंच ने आज सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस कानून पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। लेकिन इस मामले में दायर की गई 59 याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है। इस मामले में अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी। बता दें कि कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, जयराम रमेश के अलावा असदुद्दीन ओवैसी समेत बीस से ज्यादा नेताओं ने इस कानून को चुनौती दी है। उनका कहना है कि सीएबी संविधान के विरुद्ध है। उन्होंने इस क़ानून के माध्यम से देश का सामाजिक सौहार्द ख़राब करने का आरोप लगाया।
इन नेताओं का यह भी मानना है कि धर्म के आधार पर नागरिकता देना संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि यह कानून धर्मनिरपेक्षतावाद का उल्लंघन है क्योंकि इसमें धार्मिक समूहों के खिलाफ भेदभाव की दुर्भावना के साथ नागरिकता मुहैया कराने में कुछ लोगों को बाहर रखा गया है।
मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की। उसने कहा कि यह कानून संविधान के बुनियादी मूल्यों का उल्लंघन करता है और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात पर बल दिया कि इसके क्रियान्वयन से पीछे हटने का सवाल ही नहीं है।
उन्होंने विपक्ष पर इस कानून को लेकर झूठा प्रचार अभियान में शामिल होने का आरोप लगाया। शाह ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह संशोधित नागरिकता अधिनियम को लेकर झूठा अभियान चला रहा है और हिंदू-मुसलमानों के बीच खाई पैदा कर रहा है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और विपक्षी दलों के नेताओं को चुनौती दी कि वे बयान जारी करें कि वे चाहते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के सभी मुसलमानों को भारत की नागरिकता दी जाए।
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