अफगानिस्तान से सदियों पुराना है सिख धर्म का रिश्ता, गुरु नानक भी गए थे काबुल
आज अफगानिस्तान में सिख समुदाय के जहां गिने-चुने लोग रह गए हैं, वहीं कुछ दशक पहले ही इस मुल्क में उनके हजारों परिवार आबाद थे।
नई दिल्ली: 15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के साथ ही यहां से लोकतांत्रिक सरकार की विदाई तय हो गई थी। इसके साथ ही यह भी तय हो गया था कि पिछले 20 सालों में इस मुल्क में बेहतरी की जितनी भी कोशिशें हुई हैं, उनपर पानी फिर जाएगा। काबुल पर तालिबान के कब्जे ने इस मुल्क में रह रहे अल्पसंख्यकों को सपनों को भी चकनाचूर कर दिया। अफगानिस्तान में रह रहे हिंदू और सिख अब किसी तरह वहां से निकलना चाहते हैं, और भारत सरकार भी उन्हें सुरक्षित निकाल लाने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रही है।
1970 के दशक में लाखों सिखों का घर था अफगानिस्तान
आज अफगानिस्तान में सिख समुदाय के जहां गिने-चुने लोग रह गए हैं, वहीं कुछ दशक पहले ही इस मुल्क में उनके हजारों परिवार आबाद थे। एक अनुमान के मुताबिक, 1970 के दशक में इस देश में सिखों की आबादी 2 लाख से 5 लाख के बीच थी। 1978 में अफगानिस्तान की लड़ाई शुरू होने के बाद उनकी तादाद में तेजी से कमी आई और 2013 में इनकी संख्या घटकर 8,000 के आसपास रह गई। तालिबान के बढ़ते खतरों के बीच 2020 में सिखों की आबादी 700 रह गई। अब काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान में गिनती के सिख बचे हैं।
15वीं सदी में काबुल गए थे गुरु नानक देव
सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के 10 गुरुओं में पहले गुरु नानक देव 15वीं सदी में काबुल गए थे। बाद में कुछ खत्री सिखों ने व्यापार के लिए अफगानिस्तान में कॉलोनियां बनाई थीं। सिख व्यापारी उस दौर में काफी फले-फूले लेकिन बाद में उन्हें संघर्षों में कूदना पड़ा। 18वीं सदी में सिखों की कई मिस्लों (राज्य) और सिख साम्राज्य का अफगानिस्तान स्थित दुर्रानी साम्राज्य से टकराव शुरू हो गया। इन दोनों के बीच कई लड़ाइयां हुईं जो 1751 से लेकर 1837 तक चलीं। इस दौरान भी सिख अफगानिस्तान के कई इलाकों में काफी प्रभावशाली रहे।
मोहम्मद जहीर शाह के शासन में खूब फले-फूले सिख
1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त पाकिस्तानी मुस्लिमों द्वारा किए जा रहे हमलों से बचने के लिए बड़ी संख्या में सिख अफगानिस्तान पहुंचे थे। 1933 से 1973 तक अफगानिस्तान के राजा रहे मोहम्मद जहीर शाह के समय में सिख वहां खूब फले-फूले। लेकिन 1980 के दशक में सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान कई अफगान सिख भारत चले आए, और 1992 में नजीबुल्ला के शासन के खात्मे के बाद तो अफगानिस्तान की बहुत बड़ी सिख आबादी भारत आ गई। 1989 में हुई जलालाबाद की लड़ाई में गुरुद्वारा करते परवान को छोड़कर अफगानिस्तान के सभी गुरुद्वारे और मंदिर तबाह हो गए। और अब 2021 में तालिबान की वापसी के बाद हालात बदतर हो गए और सिखों को भारत आना पड़ रहा है।