नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज केन्द्र सरकार पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या हम बंदरों से कहें कि सरकार द्वारा नसबंदी का तरीका लाने तक बच्चे पैदा मत करो या लोगों को मत काटो। अदालत ने नसबंदी संबंधी परीक्षण करने की मंजूरी लिए बिना बंदरों पर परीक्षण हेतु टीके आयात करने पर केन्द्र की खिंचाई की।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि अमेरिका से मंगाए गए टीके मुख्य रूप से घोड़ों की नसबंदी के लिए प्रयुक्त हुए हैं और विश्व में उनका बंदरों पर कहीं प्रयोग नहीं हुआ। अदालत से सरकार से सवाल किया, ‘‘अगर परीक्षण के लिए अनुमति नहीं मिली तो आपने टीके आयात क्यों किए?’’
अदालत ने कहा, ‘‘जब तक आपको (केन्द्र) अनुमति नहीं मिलती, तब तक क्या हम बंदरों से कहें कि बच्चे पैदा मत करो और लोगों को मत काटो?’’ पीठ ने कहा कि बंदरों की संख्या नियंत्रित करने का मुद्दा 2001 से लंबित है और केन्द्र ने अब तक उनकी संख्या कम करने के लिए कोई तंत्र विकसित नहीं किया है।
अदालत 2001 में अधिवक्ता मीरा भाटिया द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें शहर में बंदरों और कुत्तों की बढती संख्या से पैदा समस्याओं से निपटने के लिए कदम उठाने हेतु अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई थी।
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