नई दिल्ली: दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल को लेकर शुरू हुआ विवाद अभी थमा भी नहीं था कि दिल्ली के हुमायूं के मकबरे का मामला उठ गया है। शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे एक खत में मांग की है कि हुमायूं के मकबरे की जमीन को दिल्ली के मुसलमानों के कब्रिस्तान के लिए दे दी जाए क्योंकि दिल्ली में मुसलमानों के पास दफनाने के लिए जमीन नहीं बची है।
करीब 35 एकड़ में फैला ये पूर्ण रूप से मुगल शैली में बना पहला ऐतिहासिक धरोहर है लेकिन ताजमहल के बाद अब ये ऐतिहासिक धरोहर भी विवादों में आ गया है। यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी ने हुमायूं के मकबरे को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है जिसमें मकबरे की जमीन को कब्रिस्तान के लिए देने की अपील की है। रिजवी का कहना है कि दिल्ली के मुसलमानों के पास दफनाने को जमीन नहीं बची है।
हुमायूं के मकबरे का इतिसाह
- हुमायूं की मौत 1556 में हुई थी और उसकी विधवा हाजी बेगम ने इसे बनवाया था
- 1565 में इस मकबरे का निर्माण शुरू हुआ जो 1572 में पूरा हुआ.
- लाल बलुआ पत्थर से बने मकबरे का निर्माण 15 लाख रूपए में हुआ था
- इस्लामी वास्तुकला से प्रेरित ये मकबरा पूर्ण मुगल शैली का पहला उदाहरण है
- आखिर मुगल शासक बहादुरशाह जफर भी अपने तीन शहजादों के साथ यहीं दफ्न हैं
संगमरमर के दोहरे गुम्बद इसके आकर्षण के केंद्र हैं जिनके मुरीद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी हैं। अपनी भारत यात्रा के दौरान वो पत्नी मिशेल ओबामा के साथ इसे निहारने पहुंचे थे लेकिन अब कहा जा रहा है कि इस धरोहर पर फिजूल खर्च किया जा रहा है इससे कोई कमाई नहीं होती है।
हुमायूं के मकबरे को तोड़कर कब्रिस्तान बनाने की मांग से भूचाल आ सकता है। अब तक हिंदूवादी संगठनों पर इस्लामिक धरोहरों पर सवाल उठाने के आरोप लगते रहे हैं लेकिन ये पहला मौका है जब एक मुस्लिम संगठन ही हुमायूं के मकबरे पर सवाल उठा रहा है और इसे तोड़ने की मांग कर रहा है।
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